History of 18 May: आज ही के दिन भारत ने रचा था इतिहास, अमेरिका समेत कई देशों में मची थी खलबली, जानें 18 मई 1974 का इतिहास
History of 18 May 1974: भारत, अपने आजादी से लेकर अब तक कई क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। अंतरिक्ष से लेकर पाताल तक भारत ने वो कर दिखाया जो शायद ही कोई और देश कर पाए हों। हिंदुस्तान कम संसाधनों में बेहतर से बेहतर काम करने के लिए जाना जाता है। इतिहास के पन्नों में वो तमाम सारी तारीखें दर्ज हैं, जब-जब भारत ने नई उपल्ब्धि हासिल की। उन्हीं तारीखों में से एक 18 मई (1974) भी शामिल है। जब भारत न्यूक्लियर संपन्न देश बना था।
'स्माइलिंग बुद्धा' के नाम से प्रसिद्ध
बता दें देश 18 मई यानी आज ही के दिन राजस्थान के पोखरण में पहली बार न्यूक्लियर टेस्ट किया गया था। यह टेस्ट पोखरण-1 के नाम से विश्व भर में मशहूर है। भारत ने ये कामयाबी इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए हासिल की थी। इंदिरा गांधी ने इस टेस्ट को 'स्माइलिंग बुद्ध' कहा था। जानकारी के लिए बता दें कि टेस्ट का नाम 'स्माइलिंग बुद्धा' इसलिए रखा गया, क्योंकि उसी दिन बुद्ध पूर्णिमा था। इसके अलावा पोखरण-1 न्यूक्लियर टेस्ट को 'हैप्पी कृष्ण' के नाम से भी जाना जाता है।
भारत ने ये उपलब्धि परमाणु अनुसंधान संस्थान भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के निदेशक राजा रमन्ना की देखरेख में हासिल की थी। रमन्ना ने इस टेस्ट में अहम भूमिका निभाई थी। यह कामयाबी बहुत बड़ी थी क्योंकि इससे पहले यह कीर्तिमान युनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल के पांच सदस्य देशों के अलावा भारत ने हासिल की थी। इस टेस्ट के बाद प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की लोकप्रियता देश से के अलावा पूरी दुनिया में बढ़ गईं।
न्यूक्लियर टेस्ट पर दुनिया में मचा हड़कंप
वहीं इस टेस्ट के बाद दुनिया में इसे लेकर नया बहस छिड़ गया। न्यूक्लियर टेस्ट को लेकर तब भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने 'शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट' करार दिया था। वहीं इसके बाद साल 1998 में पोखरण-II के नाम से विस्फोट किया गया, और फिर सिलसिलेवार परमाणु परीक्षण किए गए। इनमें पांच टेस्ट अकेले पोखरण में किए गए। हालांकि, पोखरण परीक्षण में इस्तेमाल किए गए परमाणु बम के वजन को लेकर बहस छिड़ गई। कहा जाता है कि इसका वजन 8-12 किलोटन टीएनटी था।
अमेरिका समेत पूरी दुनिया को नहीं थी भनक
इस टेस्ट के बारे में ऐसा कहा जाता है कि अमेरिका समेत किसी भी खुफिया एजेंसी को इसकी जानकारी नहीं थी। बकायदा भारतीय वैज्ञानिकों ने दो साल तक इस प्रोजेक्ट पर काम किया था। इंदिरा गांधी ने वैज्ञानिकों को साल 1972 में स्वेदशी न्यूक्लिर डिवाइस बनाने का निर्देश दिया था। हालांकि, टेस्ट के बाद भारत को प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ा था। न्यूक्लियर टेस्ट पर अमेरिका ने आरोप लगाया कि इस तरह के टेस्ट से परमाणु टेस्ट को बढ़ावा मिलेगा।
होमी जहांगीर भाभा का बड़ा योगदान
भारत में परमाणु प्रोग्राम साल 1944 में होमी जहांगीर भाभा के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना के साथ शुरू हुआ। परमाणु अनुसंधान कार्य 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक शुरू हुआ। भौतिक विज्ञानी राजा रमन्ना का परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी में बड़ा योगदान था। उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान तेज किया और शक्तिशाली हथियार बनाने और सफल परीक्षण करने में सफलता प्राप्त की। अंग्रेजों से आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का जिम्मा होमी भाभा को सौंपा था।