भारत की ब्यूरोक्रेसी "गैंग ऑफ क्रिमिनल्स" है : पूर्व डीजीपी

भारत की ब्यूरोक्रेसी गैंग ऑफ क्रिमिनल्स है : पूर्व डीजीपी
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आईपीएस एशोसिएशन ने मैथिलीशरण गुप्त को समूह से हटाया

ग्वालियर। ब्यूरोक्रेसी डरे हुए चरित्र के लोगों का गिरोह है अपनी पोस्टिंग, प्रमोशन और लाभ से आगे इनका कोई मानस नहीं है। यूरोक्रेसी को स्टील फ्रेम ऑफ डेमोक्रेसी कहना भी एक धोखा है। अफसरशाही अंग्रेजी बोलने वाले बाबुओं का सबसे कमजोर झुंड है। जिसकी संलिप्तता के चलते भारत की राजनीति और प्रशासन में अक्षय पाप हुए हैं। मप्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक मैथिलीशरण गुप्त ने आज यह बात स्वदेश के साथ विशेष बातचीत में कही।


हाल ही में श्री गुप्त इसलिए चर्चा में हैं मप्र आईपीएस एशोसिएशन के व्हाट्सग्रुप से उन्हें इसलिए हटा दिया गया है क्योंकि उन्होंने ग्रुप पर पूर्व प्रधानमंत्री श्री नेहरू की तत्कालीन भूमिका से असहमति केंद्रित एक पोस्ट साझा कर दी थी। मप्र के डीजीपी विवेक जौहरी ने इस पोस्ट पर आपत्ति लेते हुए श्री गुप्ता से इसे हटाने के लिए कहा लेकिन पूर्व डीजीपी अपनी बात पर कायम रहे। इस मामले पर आज स्वदेश ने श्री गुप्त का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने न केवल पूर्व प्रधानमंत्री श्री नेहरू और कांग्रेस की भूमिकाओं को कटघरे में खड़ा किया बल्कि नौकरशाही को लेकर भी बेहद तल्ख और चुभने वाली बातें कही। श्री गुप्त ने अपने सुदीर्ध अनुभव के आधार पर दावा किया कि देश की 'ब्यूरोक्रेसी गैंग ऑफ क्रिमिनल्स है और अधिकांश अफसर केवल अपनी चमकदार पोस्टिंग, प्रमोशन और पुनर्वास के स्तर से ऊपर उठकर नहीं सोचते हैं अफसरशाही का पूरा पराक्रम इसी स्वार्थसिद्धि तक सीमित रहते हैं।

भारत विभाजन एक संगठित अपराध था -

श्री गुप्त ने अपनी उस पोस्ट के कथ्य को स्वदेश के साथ दोहराते हुए कहा कि 'मुस्लिम लीग उन स्थानों से जीती थी जो आज हिंदुस्तान का हिस्सा है और यह सब लोग (मुस्लिम) पाकिस्तान जाने की बजाय यहीं रह गए यदि इन्हें हिन्दुस्तान प्रिय था तो पाकिस्तान बनाने में क्यों वोट डाले। हमारे दुष्ट काले अंग्रेजों ने उन्हें यहीं रह जाने दिया और उन्हें हमारे सिर पर बिठाया। उन्हें कानून में हमसे ज्यादा अधिकार दिए, यही राजनैतिक दुष्टता हमारी समस्याओं की जड़ है। उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया। उन्होंने तुहारा इतिहास ही बदल दिया, हम कितने नादान हैं समझो व जागो।

स्टील फ्रेम ऑफ डेमोक्रेसी के अंनत पाप श्री गुप्त ने कहा कि वह मप्र आईपीएस एशोसिएशन ग्रुप विवाद को आगे बढ़ाना नहीं चाहते हैं बल्कि बुनियादी महत्व की बात विमर्श में लाना चाहता हूं वह यह कि यूरोक्रेसी कभी भी संवैधानिक प्रावधानों के साथ नहीं खड़ी रही है अगर ऐसा होता तो या यह संभव था कि कोई राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से हमारे संविधान में 35ए जैसा प्रावधान जोड़ दे और अफसर बुत बने रहे। उन्होंने सवाल उठाया कि खुद को मजबूत बताने वाले अफसर इस बात का जबाब दें कि उनके रहते हुए या देश में बूथ कैप्चरिंग, फर्जी मतदान या दूसरी चुनावी गड़बड़ी नही होती हैं? आखिर यह सब किसके लिए होती है? उन्होंने कहा कि देश के अफसर जनता के हित के लिए नही बल्कि खुद के लिए सोचते है लक्षित सम्प्रदाय कानून का निर्माण हो या वर्शिप प्लेस एट जैसे कानून बनते हैं और सर्वाधिक प्रज्ञावान अफसर चुप बने रहे।

नेहरू ने ऐतिहासिक पाप किए -

श्री गुप्त ने आईपीएस एशोसिएशन में साझा की गई पोस्ट को दोहराते हुए सवाल उठाया कि लोकतंत्र और मर्यादाओं की बात करने वाले लोग बताएं कि जिन पंडित नेहरू को राज्यों ने नहीं चुना जिनके जीरो वोट थे वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री कैसे बने? श्री गुप्त के अनुसार ट्रांसफर ऑफ पावर के तहत नेहरू जी ने अंग्रेजी राजव्यवस्था को आगे बढ़ाया और भारतीय स्वत्व को दरकिनार करने का काम किया।

हर्ष मन्दर पर लज्जा आती है -

भारत की अफसरशाही में हर्ष मन्दर जैसे लोग हैं जिन्होंने सांप्रदायिक लक्षित हिंसा कानून जैसे अधिनियम बनाते हैं। यह छोटे हितों के लिए जीने वाले लोग हैं इन पर हमें शर्म आती है। सेवानिवृत्ति विशेष पुलिस महानिदेशक श्री गुप्त के इस बयान पर जब आईपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन कुमार महेश्वरी से प्रतिक्रिया चाही तो उन्होंने कहा कि एसोसिएशन के मामले आंतरिक होते हैं, एसोसिएशन की ओर से ऐसे किसी भी विषय पर सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया वे नहीं दे सकते।

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