क्या भारत में संभव है 'एक देश-एक चुनाव' ? देश वासियों को क्या होंगे लाभ, क्या पड़ेगा असर, जानिए सबकुछ

क्या भारत में संभव है एक देश-एक चुनाव ?  देश वासियों को क्या होंगे लाभ, क्या पड़ेगा असर, जानिए सबकुछ
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नईदिल्ली। मोदी सरकार ने गुरुवार को संसद के विशेष सत्र बुलाने का ऐलान किया है। इसी बीच आज शुक्रवार को सरकार ने एक देश एक चुनाव के लिए कमेटी गठित कर दी है। जिसका अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है। जिसके बाद से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

माना जा रहा है की मोदी सरकार इस विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव से जुड़ा विधेयक संसद में पेश कर सकती है। बता दें कि देश के अंदर समय-समय पर इसकी मांग उठती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसके सबसे बड़े समर्थक है। वे कई मौकों पर इसकी पैरवी कर चुके है। साल 2019 में जब संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा हुई, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर बात की थी और उन्होंने खुले दिल से विपक्ष से इस पर चर्चा की अपील की थी।

प्रधानमंत्री ने तब कहा था, ‘1952 से लेकर आजतक चुनाव में रिफॉर्म होते रहे हैं और होते रहने चाहिए. इसको लेकर चर्चा भी जरूरी है. लेकिन एक देश एक चुनाव को सीधा नकार देना गलत है, हर नेता इस बात की चर्चा करता है कि एक देश एक चुनाव होना चाहिए, ताकि 5 साल में एक बार चुनाव हो और काम चलता रहे।'

 ये मुद्दा अब ऐसे समय में उठा है जब अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होने है।आइए जानते है की आखिर एक देश-एक चुनाव क्या है?इसकी देश को क्या जरुरत है?क्या भारत में एक देश-एक चुनाव संभव है?

क्या है एक देश-एक चुनाव -

एक देश-एक चुनाव पुराना विचार है। आजादी के बाद से इसकी मांग समय-समय पर लगातार उठती रही है। इसके तहत सभी राज्यों की विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराएं जाएंगे। जिससे शासन-प्रशासन और आर्थिक स्तर पर अनेक लाभ होंगे।

एक देश- एक चुनाव के लाभ

नहीं रुकेंगी विकास कार्य -

भारत में लोकसभा और 29 राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते है। जिसके चलते बार-बार आचार संहिता लग जाती है। उस दौरान नई परियोजनाओं और जनकल्याण के कामों पर भी रोक लग जाती है। एकसाथ चुनाव का फायदा नीतियों और कार्यक्रमों को बगैर रुके चलाए जाने में भी मिलेगा। जिससे देश के विकास में तेजी आएगी। केंद्र और राज्य सरकारों को पूरे पांच साल काम करने के लिए मिल जाएंगे।

प्रशासनिक सुधार

देश में बार-बार चुनाव होने से प्रशासन निर्वाचन से जुड़ी प्रक्रिया में व्यस्त हो जाता है। जिसके कारण प्रशासनिक कार्यों की गति धीमी पड़ जाती है। एक साथ सभी चुनाव होने से प्रशासनिक स्तर पर काम करने की क्षमता बढ़ेगी, जो चुनाव के दौरान व्यस्तता बढ़ने से कुछ धीमी हो जाती है।

मतदाताओं की बढ़ेगी संख्या -

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यदि लोकसभा और सभी राज्यों क विधानसभा चुनाव एक साथ होते है, तो इससे चुनाव का प्रतिशत एवं मतदाताओं की संख्या में बढ़ोत्तरी संभव है। इसका बड़ा कारण देश में बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं में वोटिंग के प्रति उदासीनता आ जाती है, जिसके कारण वोटिंग प्रतिशत गिरता है। वहीँ हर चुनाव के बाद मतदाता सूची में संसोधन के चलते कई मतदाताओं के नाम सूची से बाहर हो जाते है।इसकी संभावना भी कम होगी।

क्या भारत में संभव है एक देश-एक चुनाव -

भारत में एक देश-एक चुनाव की बात करें तो इसके संविधान संसोधन की जरूरत होगी। क्योंकि वर्तमान समय में सभी राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल अलग-अलग खत्म होते है। ऐसे में राज्य सरकार एवं अन्य दलों की सहमति भी जरुरी है।यदि सभी दल और राज्य सरकारें मान जाती है देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ हो सकते है।

एक देश-एक चुनाव पुराना सिद्धांत

एक देश-एक चुनाव बेहद पुराना सिद्धांत है। जोकि इतिहास में पहले लागू रहा है। स्वतंत्रता के बाद हुए पहले चार चुनाव साल 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ ही हुए। साल 1970 में लोकसभा के समय से पहले भंग होने के कारण हालात बदल गए। साल 1983 और 1999 में चुनाव आयोग ने सरकार को एक देश-एक चुनाव कराने का विचार दिया था लेकिन राज्यों और केंद्र के बीच सहमति ना बन पाने के कारण ये नियम लागू नहीं हुआ।


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