चांद के बाद सूर्य की ओर बढ़े ISRO के कदम, जल्द लॉन्च होगा देश का पहला सोलर मिशन
नईदिल्ली। चंद्रयान मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के कदम सूर्य की ओर बढ़ चले है। इसरो देश के पहले सोलर मिशन यानी सूर्य का अध्ययन करने वाले स्पेसक्राफ्ट आदित्य-एल1 की लॉन्चिंग की तैयारी कर रहा है। सूर्य की निगरानी के लिए भेजे जा रहे इस उपग्रह के सभी पेलोड (उपकरणों) का परीक्षण पूरा कर लिया गया है। जल्द ही इसका आखिरी रिव्यू किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार सब कुछ ठीक रहा तो 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद या सितंबर के शुरुआती दिनों में इसे स्पेस में भेजा जा सकता है। इसरो के अनुसार, अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सकेगा। सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लैग्रेंज बिंदु कहलाता है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में काफी अधिक है इसलिए अगर कोई वस्तु इस रेखा के बीचों-बीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उसमें समा जाएगी।
आदित्य एल-1 में सात उपकरण होंगे
इस मिशन पर भेजे जा रहे स्पेसक्राफ्ट आदित्य एल-1 में सात उपकरण होंगे। जिसमें
- सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT),
- सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS),
- आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX),
- हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS), आदित्य के लिये प्लाज़्मा विश्लेषक पैकेज (PAPA),
- उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर शामिल है।
ये स्पेसक्राफ्ट सूर्य से सीधे पृथ्वी सूर्य से पृथ्वी पर आने वाले ऊर्जित कणों का एनालिसिस करेंगे और पता लगाएंगे कि आखिर ये कण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में किस तरह फंस जाते हैं? सूर्य के किनारों पर किस तरह कोरोनल इजेक्शन हो रहा है और उसकी तीव्रता क्या है? इससे सूर्य की गतिविधियों के बारे में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित हो सकती है
आदित्य एल1 मिशन के उद्देश्य -
आदित्य एल1 नीतभार के सूट से कोरोनल तापन, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार आदि की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने की उम्मीद है।
- सौर ऊपरी वायुमंडलीय (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) का अध्ययन।
- क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल तापन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत, और फ्लेयर्स का अध्ययन
- सूर्य से कण की गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले यथावस्थित कण और प्लाज्मा वातावरण का प्रेक्षण
- सौर कोरोना की भौतिकी और इसका ताप तंत्र।
- कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान: तापमान, वेग और घनत्व।
- सी.एम.ई. का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति।
- उन प्रक्रियाओं के क्रम की पहचान करें जो कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) में होती हैं जो अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाती हैं।
- कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र माप।
- हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता।
विश्व में अब तक 22 मिशन भेजे जा चुके -
बता दें की भारत से पहले अब तक अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी कुल मिलाकर 22 मिशन सूर्य पर भेज चुके है। विश्व का पहला सौर्य मिशन साल 1960 में नासा ने भेजा था. जर्मनी ने अपना पहला सूर्य मिशन 1974 में नासा के साथ मिलकर भेजा था। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपना पहला मिशन नासा के साथ मिलकर 1994 में भेजा था। सब तक सबसे ज्यादा 14 मिशन नासा ने भेजे है। जिसमें से एक फेल ही हुआ है, अन्य एक को आंशिक सफलता मिली है।