कारगिल विजय की 25वीं वर्षगांठ: 17 घुसपैठियों को मार पाली के 'टाइगर' आबिद ने टाइगर हिल पर दोबारा फहरा दिया तिरंगा…
हरदोई। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और 1,400 के करीब घायल हुए थे।
वास्तव में कारगिल विजय भारतीय सेना की शौर्य गाथा है। बंधे हाथों से कि नियंत्रण रेखा नही लांघनी है, ऊँचे पहाड़ों पर मोर्चा लगाए दुश्मनों से अपनी धरती को मुक्त कराना है, मुश्किल काम भारतीय सेना ने कर दिखाया। रोज हमारे जाबांज सैनिको की शहादत की खबरें आ रही थीं, ताबूत में बंद पार्थिव शरीर घर आ रहे थे। हरदोई में एक अखबार के साथ शौकिया मदद और मशविरे के लिए जुड़ा था।
पाली कस्बे में कारगिल शहीद आबिद खाँ के पार्थिव शरीर के उसके घर आने की खबर आई। मौके पर उस अख़बार के ब्यूरो चीफ के साथ पहुंचा। खबर कवर होनी थी, अलग अलग एंगिल ढूढने थे, साथ आये एक सैनिक से पूछा, क्या वह आख़िरी समय तक साथ था, जबाब हाँ में मिला, पूछा कौन सी चोटी थी जिसे फतह करने वे साथ थे, कई जज्बाती बातें हुयी, लिखी भी गयी।
शहीद के घर बिलखते मासूम बच्चे, बेसुध पत्नी, बेटे के गम में डूबे बूढ़े माँ बाप और उनके बीच रखा शहीद का पार्थिव शरीद, रुला देने वाला माहौल, भारी भीड़ के साथ शहीद का शव सुपुर्दे खाक कर दिया गया था। कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण टाइगर हिल बचाने में शहीद हुए आबिद खाँ की कब्र के आसपास अब कम ही लोग दिखते है। इसीलिए कहा गया था 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।'
पाली कस्बे में काजी सराय में पले बढ़े आबिद: पाली के मोहल्ला काजी सराय में गफ्फार खान के घर 6 मई 1972 को जन्म हुआ। आबिद 5 फरवरी 1988 में सेना में सेलेक्ट हुए। उनकी ट्रेनिंग जबलपुर में हुई थी। बाद डलहौजी भेज दिया गया, फिर पोस्टिंग जम्मू कश्मीर हो गई।
टाइगर हिल पर 17 घुसपैठी पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया था। युद्ध से पहले आबिद छुट्टी पर घर आए थे। अचानक सैन्य मुख्यालय की इस सूचना कि पड़ोसी मुल्क ने हमला कर दिया, आबिद गर्भवती पत्नी फिरदौस को छोड़ ड्यूटी पर पहुंच गए। आबिद की कंपनी टाइगर हिल के मोर्चे पर भेजी गई, जहां बंकरों में छिपे घुसपैठियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। कई भारतीय सैनिक शहीद हो गए। एक गोली आबिद के पैर में भी लगी, फिर भी आगे बढ़ते हुए एक के बाद एक दुश्मनों को मार गिराते रहे। इसी बीच दुश्मन की दूसरी गोली आबिद को लगी और वह 9 जुलाई 1999 को शहीद हो गए, लेकिन तब तक वे 17 घुसपैठियों को मौत के घाट उतार चुके थे।
प्रीतेश दीक्षित ने भी छोड़ा सिलसिला: कारगिल शहीद लांस नायक आबिद खां की कब्र पर प्रशासनिक खानापूरी होती है फूल चढ़ाने की। भाजपा जिला उपाध्यक्ष प्रीतेश दीक्षित मुस्तकिल आते रहे विजय दिवस पर।
शहीद की कब्र पर श्रद्धांजलि के साथ आबिद के अम्मी अब्बू से भी मिलते और उन्हें सम्मानित करने संग दूसरी तरह की चिंता भी करते थे। इनके गुजरने के बाद प्रीतेश ने भी ताल्लुक खत्म कर लिया। प्रीतेश दीक्षित बताते हैं, परिवार में मांगलिक प्रसंग के कारण भी नहीं पहुंच पाए, इस मर्तबा।