केन-बेतवा प्रोजेक्ट : अटल जी का सपना हुआ साकार, बुंदेलखंड की धरती पर लहराएंगी फसलें

केन-बेतवा प्रोजेक्ट : अटल जी का सपना हुआ साकार, बुंदेलखंड की धरती पर लहराएंगी फसलें
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नईदिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस के अवसर पर प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने जलशक्ति मिशन की शुरुआत करते हुए "कैच द रेन" अभियान का शुभारंभ किया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश के मुख़्यमंत्रियों ने केन-बेतवा इंटरलिंकिंग परियोजना पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति में हस्ताक्षर किये। ये परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का स्वप्न है। जिसके साकार होने की नींव आज रखीं गई। इस परियोजना से बुंदेलखंड क्षेत्र की एक बड़ी आबादी को पानी की आपूर्ति होगी एवं कृषि योग्य भूमि की सिंचाई के लिए जल मिलेगा।


भारत रत्न स्व. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय नदी को जोड़ने का प्रस्ताव लाया गया था। वे देश की सभी नदियों को जोड़कर व्यर्थ में बह जाने वाले पानी का उपयोग करना चाहते थे। इस परियोजना पर उनकी सरकार के बाद से ब्रेक लगा रहा। जिसका मुख्य कारण राज्य सरकारों के बीच सहमति ना बन पाना था।

अटल जी का सपना साकार -

प्रधानमंत्री ने आज इस परियोजना का शुभारंभ करते हुए कहा -मुझे खुशी है कि जलशक्ति के प्रति जागरूकता बढ़ रही है और प्रयास भी बढ़ रहे हैं। आज पूरी दुनिया जल के महत्व को उजागर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय जल दिवस मना रही है। आज भारत में पानी की समस्या के समाधान के लिए 'कैच द रैन' की शुरुआत के साथ ही केन बेतवा लिंक नहर के लिए भी बहुत बड़ा कदम उठाया गया है। अटल जी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लाखों परिवारों के हित में जो सपना देखा था, उसे साकार करने के लिए ये समझौता अहम है।

ये है परियोजना -

इस परियोजना के निर्माण में करीब 45 हजार रुपये का अनुमानित खर्च आएगा। जिसकी 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार द्वारा खर्च की जाएगी। इस परियोजना के तहत मप्र की केन नदी से जल उप्र में बेतवा नदी तक पहुंचाया जाएगा। दोनों नदियों को जोड़ने के लिए एक बांध का निर्माण किया जाएगा। जिससे नहर निकालकर दोनों नदियों को जोड़ा जाएगा।

ये होंगे फायदे -

इस परियोजना से मप्र और उप्र के बीच बसे बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों को बड़ा लाभ होगा। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल के साथ सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति होगी। जिससे जल के अभाव में सिंचाई से वंचित रहने वाली करीब 8 लाख हेक्टेयर भूमि पर फसलें लहराएंगी। इससे मप्र के रायसेन, विदिशा, शिवपुरी, दतिया, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, दमोह एवं उप्र के बांदा, महोबा, ललितपुर, झांसी आदि जिलों को लाभ मिलेगा।

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