शक्ति की आराधना है लाड़ली लक्ष्मी
वेबडेस्क। पूरी दुनियां में मप्र का लाड़ली लक्ष्मी मॉडल एक नजीर है। महिला सशतिकरण का यह प्रारूप सच्चे अर्थों में सरकार की इच्छाशति और कथनी करनी के युग्म को भी प्रमाणित करता है। मप्र के मुयमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह प्रयोग इतना क्रांतिकारी होगा इसकी कल्पना योजना के आरभ में किसी को भी नही रही होगी। लोगों को जानकार यह आश्चर्य होगा कि लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजना विश्व के किसी देश में प्रचलन में नहीं है जबकि विश्व की तीन चौथाई आबादी में बालिकाओं और महिलाओं के सशतिकरण के मुद्दे आज भी ज्वलंत बने हुए है। जाहिर है मप्र ने दुनियाभर को बालिकाओं के स्वर्णिम और सशत भविष्य को सुनिश्चित करने वाला एक वैश्विक मॉडल प्रदान किया है।आज मप्र ही नही देश के लगभग सभी राज्यों ने इस योजना को अलग-अलग नामों से अपने यहां लागू कर दिया है। वस्तुत यह मुयमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अंतर्मन में गहराई से समाई संवेदनशीलता का साकार स्वरूप है जो बेटियों को दुर्गा,सरस्वती,काली,कात्यायनी मानती है और जीवित रूप में ही उन्हें स्वीकार करने को कहती है।
आज से शति आराधना का पर्व शुरू हो रहा है और इसे पूजा पाठ एवं व्यतिगत उपासना से इतर हम सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर मप्र के लिहाज से समझने की कोशिशें करते हैं कि कैसे 46 लाख घरों में बेटियां अब बोझ नही रह गई वे देवी स्वरूप में स्वीकार हो गई हैं। कोई बोर्ड परीक्षा में 90 प्लस लेकर आ रही है तो कोई पायलट बनकर आकाश को छूना चाहती है, किसी ने योग में राष्ट्रीय स्तर पर कमाल कर दिखाया है तो कोई नेता बनकर समाज परिवर्तन की मंशा रखती है। यह कोई मामूली योजना भर का उजला पक्ष नहीं है बल्कि सामाजिक परिवर्तन की क्रांति है यह मप्र में मानव व्यवहार परिवर्तन की अनूठी केस स्टडी भी है। यह भारतीय आध्यत्मिक परपरा की भी पुनर्प्रतिष्ठा है योंकि हमारे यहां उभय भारती और मैत्रेयी,गार्गी की विरासत रही है। प्रदेश भर में बदली परिस्थितियों के बीच आपको इस विरासत की जीवंत कहानियां,पलक,खुशबू, रानी , कोमल के रूप में मिल जायेगी। बेटी के जन्म पर अब अस्पताल में कर्कश रुदन नही सुनाई देते हैं। बेटी बोझ जो नही रही है विश्वास के लिए मप्र का लिंगानुपात आपकी गवाही के लिए हाजिर है। आज शति उपासना के सुयोग पर मूलाधार में स्थित मप्र की वास्तविक शति की कुछ कहानियां प्रस्तुत हैं।
भाजपा की महत्वपूर्ण योजना -
लाड़ली लक्ष्मी योजना भाजपा सरकार की ऐसी महत्वपूर्ण योजना है जिसका सामाजिक बदलाव में व्यापक योगदान है। इस योजना से महिलाएं शिक्षिक व सशत तो हुईं ही हैं, स्वास्थ्य की दृष्टि से मजबूत भी हुई हैं। इस योजना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह प्रदेशभर में लिंगानुपात सुधारने में कामयाब रही है। योजना का फलितार्थ ये है कि आज बेटियां बोझ नहीं है।
शिवराज मामा के बल पर यहां खड़ी हूँ-
नेशनल योगा प्लेयर पलक तोमर के पिता मजदूरी करते है। मैं डॉटर बनकर योग चिकित्सा को बढ़ावा देना चाहतीं हूँ। अगर लाड़ली लक्ष्मी योजना न होती तो मैं पांचवी से आगे शायद ही पढ़ाई कर पाती मेरी पारिवारिक स्थिति ऐसी नही थी कि आगे पढ़ पाती लेकिन योजना ने मुझे आगे बढऩे का अवसर दिया मैं योगा में नेशनल खेल कर आई हूँ। आज शिवपुरी में योगा ट्रेनर के रूप में काम कर रही हूँ और पढ़ाई भी स्कूल में सब मुझे इज्जत देते हंै। मैं डॉटर बनकर योग को घर घर पहुंचाने का काम करूंगी। मेरे पापा के लिए मैं अब बोझ नहीं बल्कि उनकी पहचान हूँ। मैं मामा की लाड़ली हूं तो मेरा यह सपना जरूर पूरा होगा।
पलक बनेगी गांव की पहली अफसर
अशोकनगर जिले के ग्राम महोली निवासी पलक शर्मा के माता-पिता उसकी शिक्षा-दीक्षा एवं विवाह की चिंता से मुत हैं। पलक बताती है कि लाड़ली लक्ष्मी योजना से उन्हें छात्रवृाि प्राप्त हुई है। जब में कक्षा 6 में आई तो मुझे 2000 रूपए का लाभ प्राप्त हुआ, कक्षा 9 में 4000 रूपए एवं कक्षा 11 में 6000 रूपए मेरे खाते में आए हैं। जिसकी मदद से मैं अपनी पढ़ाई पूरी लगन से कर पाई। पलक इस वर्ष कक्षा 12वीं की परीक्षा दे रही है और उसका सपना है अपने गांव से प्रथम प्रशासनिक अधिकारी बनकर दिखाना। पलक के लिए यहां तक का सफर सपना ही रहता योंकि गांव और परिवार दोनों के हालात उसे 12 तक पढऩे की इजाजत नही दे रहे थे। लाड़ली लक्ष्मी योजना और उसकी मां ने मिलकर पलक के लिए परिस्थितियों को अनुकूल बनाया नतीजतन पलक की पलकों में आज सरकारी अफसर बनने के सपने पल रहे है जो देर सबेर साकार होंगे ही।
नहीं तो दूसरी लड़कियों की तरह बालिका वधु होती
पढऩे- लिखने की इच्छा तो सभी की होती है,पर सभी की इच्छाएं पूरी कहां हो पातीं है। हमारा आदिवासी समाज शिक्षा के क्षेत्र में काफी पीछे है। लड़कियों को पढ़ाने के बजाय कम उम्र में विवाह करने का रिवाज है। जब मैं 10 वर्ष की थी, तब मेरी मां की मृत्यु हो गई। समाज के लोगों ने मेरे पिता पर दबाव बनाया कि अब कौन रखवाली करेगा, इसके हाथ पीले करो। मेरे पिता भी लोगों के दबाव में आकर विवाह करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत मिलने वाले एक लाख रुपये के लिए महिला बाल विकास में संपर्क किया तो विभाग के अधिकारियों ने उन्हें बताया गया कि पहले लड़की को 12 वी तक पढ़ाओ, 18 साल की होने के बाद विवाह करना तभी रुपये मिलेंगे। अभी विवाह करोगे तो जेल होगी। फिर पिता ने विवाह का विचार छोड़ दिया। कक्षा 9 में पढ़ रही शिवपुरी जिले के चंदनपुरा ग्राम निवासी प्रियंका आदिवासी की यह कहानी है। वह खुद आत्मविश्वास के साथ बताती है कि अगर मैं लाड़ली लक्ष्मी योजना में नहीं होती, तो समुदाय की दूसरी लड़कियों की तरह मेरा भी बाल विवाह हो गया होता। जन्म देने वाली मां का साथ छूटा तो लगा अब पढ़ाई छूट जाएगी, पर मुख्यमंत्री शिवराज मामा की लाड़ली लक्ष्मी योजना मेरे लिए वरदान बन गई। शिवपुरी जिले में 1.7 लाख लाड़लियां पंजीकृत है, जिनके स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा की नियमित निगरानी की जाती है। इनमें से कक्षा 6, 9 , 11 एवं 12 वी में प्रवेश लेने वाली 17432 लाड़लियों को छात्रवृाि प्रदान की जा चुकी है।
मामा मुझे बनना है कलेक्टर -
2006 में ही लाड़ली लक्ष्मी बनी जमुना केवट का कहना है कि लाड़ली लक्ष्मी योजना में बहुत ज्यादा मदद भलें ही नहीं मिलती हो, किन्तु कुछ नहीं से कुछ होना बेहतर होता है। 12 तक की पढ़ाई पूरी कर चुकीं है। अब कॉलेज जाने की तैयारी है। योजना के दूसरे चरण में कॉलेज जाने वाली लाड़लियों को 25 हजार रुपए मिलने की जानकारी आपने दी है। इससे वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख पाएंगी। उनका सपना कलेटर बनने का है और अब वह पीएससी की तैयारी करने जा रहीं है। परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। पिता मछली का व्यवसाय करते है। ऐसे में योजना से काफी मदद मिलेगी। बच्चों की पढ़ाई के लिए सरकार को ऐसी योजनाएं और चलाना चाहिए। जमुना जूडो की भी बेहतरीन खिलाड़ी है। कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर वह मैडल जीत चुकीं है। जमुना के पिता गोविंद केवट भी अपनी बेटी की पढ़ाई में लाड़ली लक्ष्मी योजना का महत्वपूर्ण स्थान मानते है।