त्वरित टिप्पणी : ध्यान से समझिए इस जनादेश को

त्वरित टिप्पणी : ध्यान से समझिए इस जनादेश को
Photo - Narendra Modi and Rahul Gandhi 
अतुल तारे

आज के चुनाव परिणाम भाजपा नेतृत्व व एग्जिट पोल से जो वातावरण बना था उस अपेक्षा कमतर होने से चौंका भी रहे हैं। पर यह रेखांकित करना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए का आंकड़ा बहुमत के जादुई आंकड़े को तीसरी बार पार कर रहा है। यही नहीं भाजपा मध्यप्रदेश और देश की राजधानी नई दिल्ली में लीन स्वीप कर रही है। देश के पूर्वोार राज्य अरुणाचल प्रदेश में, ओडिशा में वह सरकार बना रही है। आंध्र में एनडीए की सरकार बन रही है। कांग्रेस लगातार तीसरी बार सैकड़ा पार नहीं कर पा रही है और तमाम झूठ ,षड्यंत्र के बावजूद भाजपा का अपना वोट शेयर जस का तस है। पर विपक्ष भाजपा के 400 पार के नारे को लेकर खुद यह भूल रहा है कि राजग 300 के करीब ही है और फिर एक बार भाजपा के ही नेतृत्व में सरकार बन रही है।

यह फिलहाल ठीक वैसा ही है, हालांकि यह तुलना एकदम उचित भी नहीं कि सचिन तेंदुलकर 80 रन पर हिट विकेट आउट हो जाएं और विरोधी पक्ष की टीम इस पर स्वयं को विजेता घोषित करने का उत्सव मनाना शुुरू कर दे और मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखना शुरू कर दे। मैं भाजपा के प्रदर्शन का बिल्कुल अभी बचाव करने के लिए नहीं यह आंकड़ा दे रहा। पर याद करें, 2009 में कांग्रेस 5 साल राज करने के बाद 206 पर अटक गई थी। या वह कांग्रेस की जीत थी? यही कांग्रेस जब पांच साल और राज करती है तो 44 पर सिमट जाती है। वहीं भाजपा के नेतृत्व में राजग गठबंधन का आंकड़ा 291 है और भाजपा ने सीट 234 पर विजय प्राप्त की है। आइए थोड़ा और गहराई में विश्लेषण करें। या यह विजय उल्लेखनीय विजय की श्रेणी में नहीं रखी जानी चाहिए? या यह माना जाए कि चुनाव से राष्ट्रीय महत्व के मूल विषय अनुपस्थित रहे। राम मंदिर से भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का अधिष्ठान, धारा 370 हटने से जमू-कश्मीर में शांति की स्थापना, आंतरिक सुरक्षा से भय मुत देश, भारत की वैश्विक पहचान और कोरोना के बावजूद तेज गति से आगे बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था। यह भाजपा सरकार की ऐसी असाधारण उपलब्धियां हैं, जिनके दम पर भाजपा या एनडीए को शानदार बहुमत मिलना ही चाहिए था।

खासकर तब जब विपक्ष की कोई बड़ी चुनौती ही सामने नहीं थी। बावजूद इसके भाजपा स्वयं बहुमत के आंकड़े से अगर दूर रह गई है तो विनम्रता के साथ जनादेश का मान रखते हुए यह कहना ही होगा कि मतदाता परिष्कार की अभी और अधिक आवश्यकता है। नि:संदेह भाजपा नेतृत्व से भी कुछ भूल हुईं होंगी जिसका संज्ञान नेतृत्व लेगा। पर परिपव होते लोकतंत्र में मतदाताओं का अपना स्वयं का दायित्व या है? या वह उारप्रदेश और राजस्थान में क्षत्रिय कार्ड चलेगा? या महाराष्ट्र में मराठा अस्मिता देश से बड़ी है? या हरियाणा में जाटों की ठसक, इतनी बड़ी है कि राष्ट्रीय विषय अनदेखे हो जाएं। या पं. बंगाल में संदेशखाली के चलते देश को संदेश नहीं जाना चाहिए था। या 'अयोध्याÓ आज 'फैजाबादÓ से हार गया? यह मानना पीड़ादायक है पर आज यह पूरी तरह से सच न होते हुए भी विधर्मी इस झूठ को सच बनाने का प्रयास करेंगे। कुंभ को वैश्विक याति दिलाने के बावजूद 'प्रयागराजÓ में हार का या राज है? यह भी समझना होगा। अखिल विश्व में भारत का गौरव स्थापित करने वाले नरेन्द्र मोदी को वाराणसी की प्रज्ञा ने भरपूर आशीर्वाद यों नहीं दिया? या यह नहीं माना जाए कि कार्यकर्ता स्वयं परिश्रम करना भूल रहे हैं और नेता बड़े बोल बोलना ही अपना धर्म समझते रहे हैं? यह ऐसे प्रश्न हैं जिनके उार तलाशने होंगे। देश के मतदाताओं को इस पर भी विचार करना होगा कि भारी गर्मी से सुकून पाने के लिए जब वे देशाटन पर थे या फेसबुक पर घर में बैठे (एसी में) अपडेट कर रहे थे तब एक विशेष वर्ग लंबी-लंबी कतारें लगाकर मतदान कर रहा था। भाजपा के लिए दक्षिण ने अवश्य संभावनाओं के द्वार खोले हैं। वोट प्राप्ति का शेयर तो बढ़ा ही है, तमिलनाडु और केरल में पांव रखने के लिए भी जगह मिली है। बेशक यह भाजपा नेतृत्व का परिश्रम है।

ओडिशा की सफलता भी उत्साह जगाती है तो जमू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की हार 370 हटाने के निर्णय पर देश की मुहर है। लेकिन यहीं पर भाजपा नेतृत्व को यह समझना होगा कि यह दशकों की साधना और असंख्य बलिदानों का सुफल है। भाजपा संगठन को यह सीख लेनी होगी कि स्वयं श्री नरेन्द्र मोदी प्रत्येक उपलब्धियां का श्रेय 140 करोड़ भारतवासियों को देते हैं तब संगठन को चाहिए वह अपने कार्यकर्ताओं को यह श्रेय बांटना सीखे और उन्हें सिर्फ केन्द्रीय नेतृत्व के भरोसे में रहना न सिखाए। परिणाम बता रहे हैं भाजपा के इस कमजोर प्रदर्शन के पीछे स्थानीय प्रत्याशियों के खिलाफ नाराजगी भी एक बड़ा कारण है। मध्यप्रदेश ने अवश्य अपनी कुशल संगठन क्षमता का परिचय देकर यह उदाहरण प्रस्तुत किया है। मध्यप्रदेश में 29 में से 29 सीटें जीतना मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष विष्णु शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की और संपूर्ण पार्टी की सफलता है जो देश के लिए एक उदाहरण है।

छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और हिमाचल को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है। तात्पर्य परिणाम उत्साहवर्धक भले ही न हो, पर निराशाजनक भी नहीं है। यह नतीजे भाजपा को खारिज बिल्कुल नहीं कर रहे, उसे आत्म अवलोकन का अवसर दे रहे हैं। इसे आत्म प्रताडऩा का विषय भी न बनाएं। 2004 में भाजपा फीलगुड में हारी। 2024 में अति विश्वास ने थोड़ा विचार करने की संधि दी है। पर भाजपा वह राजनीतिक दल है जिसने 1984 में मात्र दो सीट से अपनी यात्रा शुुरू की थी। अत: निराशा की आवश्यकता नहीं है, स्वयं की पीठ भी थपथपाएं और जहां आवश्यकता हो आत्म चिंतन भी करें। साथ ही इस जनादेश का अभिनंदन भी करें। कारण भारतीय राजनीति में पहली बार कोई गठबंधन की तीसरी बार सरकार बन रही है और यह भाजपा नेतृत्व पर देश के विश्वास की मुहर है। और अब बात आखिर में, इंडिया गठबंधन की।

नि:संदेह भारतीय लोकतंत्र ने एक मजबूत प्रतिपक्ष के लिए जनादेश दिया है। हालांकि यह विपक्ष राज्यों में एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें भांजता है। विपक्ष यह भी जानता है कि चुनाव जीतने के लिए उसने संविधान ख़तरे में और आरक्षण ख़ात्मे का झूठ भी फैलाया, पर अब जब वह एक ताकत में है उमीद की जानी चाहिए कि गठबंधन 'इंडियाÓ के अर्थात भारत के स्वयं को सुनेगा, पहचानेगा। जनादेश ने उनका दायित्व बढ़ाया है। यह बोध उनमें भी जागृत हो।

शुभकामनाओं सहित...

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