मोहम्मद रफी पुण्यतिथि विशेष : मुझको मेरे बाद जमाना याद करेगा...

मोहम्मद रफी पुण्यतिथि विशेष :  मुझको मेरे बाद जमाना याद करेगा...

मोहम्मद रफी पुण्यतिथि विशेष

यह कहने और लिखने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि रफ़ी साहेब की आवाज़ में बड़ी मिठास, बड़ी गहराई, बड़ा दर्द और बड़ा विस्तार था।

स्वदेश विशेष। मोहम्मद रफी का जिक्र होते ही एक ऐसे फनकार की याद तरोताजा हो जाती है, जिन्होंने अपनी दर्द भरी आवाज में हजारों गाने गाए, जिनमें से सैकड़ों गीत ऐसे हैं, जो किसी न किसी के निजी जीवन से जुड़े हुए लगते हैं। पार्श्व गायन की अपनी लंबी यात्रा में मोहम्मद रफी ने एक गीत ऐसा गया, जो उनके जाने के बाद लोगों को ऐसा लगने लगा कि रफी साहेब ने शायद अपने लिए ही गाया था। वह गीत था 'एक नारी दो रूप' (1973) का "दिल का सूना साज तराना ढूंढेगा, तीर-ए-निगाह-ए-नाज निशाना ढूंढेगा मुझको मेरे बाद जमाना ढूंढेगा"। जब मोहम्मद रफी ने इस दुनिया को अलविदा कहा है, तब से उनकी जन्मतिथि व पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति में यह गीत खूब बजाया और सुना जाता है।

यह कहने और लिखने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि रफ़ी साहेब की आवाज़ में बड़ी मिठास, बड़ी गहराई, बड़ा दर्द और बड़ा विस्तार था, जिसका लगभग सभी संगीतकारों ने बख़ूबी इस्तेमाल किया। पूरी तीन पीढ़ी तक अपनी आवाज़ देने वाले मोहम्मद रफ़ी का कहना था कि आवाज़ तो ऊपर वाले यानी खुदा की देन है। मोहम्मद रफ़ी की शानदार गायकी ने कई गीतों को अमर बना दिया, जिनमें मुख़्तलिफ मिज़ाज और तर्ज़ की झलक है।

गीतों के ख़ज़ाने :

उनके गीतों के ख़ज़ाने में फ़िल्म ’कोहिनूर’ (1960) का ’मधुबन में राधिका नाचे रे’, ’बैजू बावरा’ (1952) का ’ओ दुनिया के रखवाले’, ’दुलारी’ (1949) का ’सुहानी रात ढल चुकी’, ’चौदहवीं का चांद’ (1960) का 'चौदहवीं का चांद हो', ’सिकंदर-ए-आज़म’ (1965) का ’जहां डाल-डाल पर’, 'हक़ीक़त’ (1964) का ’कर चले हम फ़िदा’ और ’लीडर’ (1964) का ’अपनी आज़ादी को हम' जैसे गीत सदाबहार थे, सदाबहार हैं और सदाबहार रहेंगे।

कुल 26 हजार गाने गाए :

मोहम्मद रफी ने 1940 से 1980 तक कुल 26 हजार गाने गाए। इनमें ख़ास तौर से हिंदी गानों के साथ ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली व दिगर ज़बानों में गाए गीत शामिल हैं। 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर में जन्मे मोहम्मद रफी को 1965 में भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री सम्मान दिया गया। इसके अलावा उन्हें छह बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। ’चौदहवीं का चांद हो या आफ़्ताब हो’, तेरी प्यारी प्यारी सूरत को’, चाहूंगा में तुझे’, ’बहारों फूल बरसाओ’, ’दिल के झरोखे में’ और ’क्या हुआ तेरा वादा’ जैसे कर्णप्रिय गानों को कंठ देने के लिए फिल्म फेयर आवार्ड मिला।

मोहममद रफ़ी की आवाज़ का जादू :

मोहम्मद रफ़ी ने अपने वक्त के लगभग अदाकारों के लिए पर्दे के पीछे से गाया। जिन अभिनेताओं के लिए मोहम्मद रफी ने गाया, उनमें गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जितेंद्र, ऋषि कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा के अलावा गायक व अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है। यह वह दौर था जब मोहममद रफ़ी की आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोल रहा था और मोहम्मद रफ़ी हर दिलअजीज थे।

सीधे और सच्चे मुस्लिम :

मोहम्मद रफ़ी एक बहुत ही सीधे और सच्चे मुस्लिम, सादगी पसंद ल शर्मिले इंसान थे। आजादी के वक़्त मुल्क के बंटवारे के दौरान उन्होने भारत में रहना पसंद किया। उन्हांने बेगम बिलकिस से शादी की और उनकी सात संतान हुईं। चार बेटे और तीन बेटियां। मोहम्मद रफ़ी बहुत हंसमुख और दरियादिल इंसान थे। वह हमेशा सबकी मदद के लिए तैयार रहते थे। 31 जुलाई 1980 को गीत-व-संगीत की दुनिया का ये आज़ीम सितारा हमेशा के लिए छिप गया, लेकिन आज भी अपने गानों के ज़रिए वह अपने चाहने वालों के बीच मौजूद है।

जब मोहम्मद रफी का निधन हुआ तो उस दिन मुंबई में बहुत बारिश हो रही थी। तेज बारिश के बावजूद हजारों लोग अपने प्यारे गायक को अंतिम विदाई देने पहुंचे थे। कहते हैं- मशहूर अभिनेता मनोज कुमार ने कहा- सुरों की मां सरस्वती भी अपने आंसू बहा रही हैं आज। मोहम्मद रफी जैसी शख्सियत कभी अलविदा नहीं कहती वो लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहते हैं। आज भी उनके गानों में उन्हें लोग याद करते हैं।

By - शंकर जालान

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