लापरवाही बनी मोरबी पुल हादसे का कारण, क्षमता से 5 गुना अधिक लोगों को मिला प्रवेश

लापरवाही बनी मोरबी पुल हादसे का कारण, क्षमता से 5 गुना अधिक लोगों को मिला प्रवेश
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  • अब तक 141 लोगों की गई जान
  • रेनोवेशन करने वाली कंपनी पर केस दर्ज

अहमदाबाद।मोरबी के झूलते पुल को झुकाने में क्षमता से अधिक लोगों का प्रवेश देना माना जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार 100 के बजाय करीब 500 लोग हादसे के वक्त ब्रिज पर मौजूद थे। ब्रिज को झूला के समान झुलाने की कोशिश से ब्रिज में अत्यधिक कंपन होने से यह वजन बर्दाश्त नहीं कर पाया और दो भाग में विभक्त हो गया। झूला पुल हादसे में मृतकों की संख्या बढ़कर 141 हो गई। अभी दो लोग लापता बताए जा रहे हैं। हादसे में राजकोट के सांसद मोहन कुंडारिया की बहन के परिवार के 12 सदस्यों की मौत हो गई है।

राज्य के सड़क और भवन निर्माण मंत्री जगदीश पंचाल ने बताया कि ब्रिज नगर पालिका के अधीन है। इस पर 100 से अधिक लोगों की मौजूदगी के कारण इसका टूटना प्रतीत हो रहा है। ब्रिज पर 400 से 500 लोगों को टिकट लेकर प्रवेश दिया गया था। बताया गया कि टिकट की दर 20 रुपए थे। अधिक रुपए के लालच में संचालकों ने ब्रिज पर क्षमता से अधिक लोगों को जाने दिया। एक व्यक्ति का औसत वजन यदि 60 किलो भी माना जाए तो ब्रिज पर करीब 400 से 500 लोगों के हिसाब से यह 30 हजार किलो यानी 30 टन हो जाता है। इसकी वजह से यह ब्रिज धराशायी हो गया।

बता दें की मोरबी नगर पालिका ने हैंगिंग ब्रिज (झूला पुल) को करीब 6 महीने तक रेनोवेशन के बाद गुजराती नए वर्ष पर 26 अक्टूबर को आम लोगों के लिए खोला था। इसके देखरेख की जिम्मेदारी ओरेवा कंपनी को दी गई थी। इस कंपनी के एमडी जयसुख पटेल की उपस्थिति में इसे आम लोगों के लिए खोला गया था। हालांकि कंपनी की ओर से कहा जा रहा है कि उन्होंने मजबूत केबल और स्टील का उपयोग कर इसका रेनोवेशन किया था।

रेनोवेशन कंपनी पर केस -

मोरबी के मच्छु नदी पर झूलते पुल का पांच दिन पहले ही मरम्मत के बाद आम जनता के लिए खोला गया था। ऐतिहासिक महत्व के कारण झूलते पुल का संरक्षण के साथ बेहतर रखरखाव के लिए ओरेवा ट्रस्ट बनाकर इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ट्रस्ट को आगामी 15 साल तक पुल की देखरेख और मरम्मत का कार्य दिया गया था। ट्रस्ट ने एक निजी कंपनी को मरम्मत कार्य के लिए दिया था।मोरबी नगर पालिका ने हादसे का पूरा ठीकरा ओरेवा कंपनी पर फोड़ा है। फिटनेश सर्टिफिकेट के संबंध में नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला कह चुके हैं कि उनकी मंजूरी के बगैर ब्रिज शुरू किया गया। नगर पालिका को किसी तरह का फिटनेश सर्टिफिकेट नहीं दिया गया।

140 साल पुराना पुल -

यह पुल आजादी के पहले का है, जो करीब 140 साल पुराना है। इस ब्रिज को यूरोपियन शैली का बेहतर स्थापत्य कला का नमूना भी माना जाता है। लंदन की महारानी विक्टोरिया ने नाइट कमांड ऑफ दी स्टेट ऑफ इंडिया का खिताब जिन्हे दिया था, उन मोरबी के महराजा वाघजी ठाकोर ने इसे बनवाया था। इस पुल की लंबाई 765 फीट और चौड़ाई 4.6 फीट है। वर्ष 1887 में इसका निर्माण किया गया था। इसकी ऊंचाई जमीन से करीब 60 फीट है। यह पुल मच्छु नदी पर दरबारगढ पैलेस और लाखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता है।

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