“एक राष्ट्र, एक चुनाव” की ऐतिहासिक यात्रा: भारतीय चुनाव प्रणाली में बदलाव की क्रांति

भारतीय चुनाव प्रणाली में बदलाव की क्रांति
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मोनिका चौहान: भारतीय लोकतंत्र, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है, अपनी चुनावी प्रक्रिया के लिए अद्वितीय है। यह प्रक्रिया देश के नागरिकों को अपनी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को व्यक्त करने का अवसर देती है। स्वतंत्रता के बाद से ही चुनाव प्रणाली ने भारतीय लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, समय के साथ इस प्रक्रिया में अनेक चुनौतियां और कमियां भी सामने आई हैं।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए संसद ने हाल ही में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को मंजूरी दी है। यह पहल भारतीय लोकतंत्र को सुदृढ़, कुशल और संसाधन-संपन्न बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

भारत में हर वर्ष किसी न किसी राज्य, केंद्रशासित प्रदेश या स्थानीय निकाय में चुनाव होते रहते हैं। यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन बार-बार के चुनावों से कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। चुनावों के दौरान लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता के कारण विकास योजनाओं और नीतिगत निर्णयों पर रोक लग जाती है।

इससे न केवल शासन-प्रशासन बाधित होता है, बल्कि देश की आर्थिक प्रगति पर भी असर पड़ता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान लगभग 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसके अलावा, सुरक्षा बलों की व्यापक तैनाती और चुनावी प्रबंधन के लिए मानव संसाधन का अत्यधिक उपयोग भी होता है। यह सिलसिला लगभग हर वर्ष चलता रहता है, जिससे देश का प्रशासनिक ढांचा और संसाधन लगातार दबाव में रहते हैं।

इसके अतिरिक्त, बार-बार के चुनावी माहौल के कारण देश में एक राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है, जिससे दीर्घकालिक नीतियों और योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा आती है।‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा का उद्देश्य लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है। इससे न केवल संसाधनों की बचत होगी, बल्कि प्रशासनिक और राजनीतिक स्थिरता भी सुनिश्चित होगी।

यह अवधारणा भारत के लिए नई नहीं है। स्वतंत्रता के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। इस अवधि में देश में राजनीतिक और संघीय संरचना स्थिर थी। लेकिन 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया, जिससे इस व्यवस्था का क्रम टूट गया।

इसके बाद, 1971 में लोकसभा चुनाव को भी निर्धारित समय से पहले कराया गया। इसके बाद से भारत में चुनावों का चक्र असंगत हो गया और हर वर्ष किसी न किसी स्तर पर चुनाव होने लगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से लगातार इस विषय पर जोर दिया है। 2016 में नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा को लागू करने के लिए आवश्यक उपाय सुझाए। 2019 में विधि आयोग ने भी इस पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें इसे लागू करने के लिए पांच संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता बताई गई।

एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के कई लाभ हैं, जो इसे एक प्रभावी और व्यावहारिक समाधान बनाते हैं। इससे न केवल आर्थिक बचत होगी, बल्कि बार-बार चुनावों के कारण प्रशासनिक कामकाज में आने वाली रुकावटें समाप्त होंगी।

चुनावों के दौरान सुरक्षा बलों की व्यापक तैनाती की आवश्यकता होती है। एक साथ चुनाव कराने से यह प्रक्रिया अधिक संगठित होगी। बार-बार के चुनावी माहौल से उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता कम होगी, और देश शासन और विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेगा।

नागरिकों को बार-बार मतदान प्रक्रिया में भाग लेने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे उनकी भागीदारी अधिक प्रभावी हो सकेगी।

एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करना जितना फायदेमंद प्रतीत होता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है। इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए कई संवैधानिक और प्रशासनिक बाधाओं को पार करना होगा। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस व्यवस्था को लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे।

भारत की संघीय संरचना में केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी। इतने बड़े पैमाने पर एक साथ चुनाव कराने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करना आवश्यक होगा। इस विषय पर सभी राजनीतिक दलों के बीच व्यापक सहमति बनाना आवश्यक है।

इन चुनौतियों को दूर करने के लिए व्यापक संवाद, योजना और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा देने की एक ऐतिहासिक पहल है। इस विचार का इतिहास बताता है कि यह व्यवस्था एक समय में सफलतापूर्वक लागू थी।

इसके फिर से लागू होने से लोकतंत्र और विकास दोनों को बल मिलेगा। यह पहल न केवल संसाधनों की बचत करेगी, बल्कि देश के प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे को अधिक स्थिर और प्रभावी बनाएगी। अब यह जरूरी है कि सभी पक्ष इस विषय पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए इस योजना को सफल बनाने में सहयोग करें।

एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लोकतंत्र की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है, जो भारतीय चुनावी प्रक्रिया की मौजूदा खामियों को दूर करने और देश को अधिक स्थिर, कुशल और समृद्ध बनाने का वादा करता है। यह पहल देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को मजबूत करेगी और विकास की गति को तेज करेगी। संसद द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देना एक ऐतिहासिक क्षण है। अब इसे प्रभावी रूप से लागू करना अगला कदम होगा।

यदि यह योजना सफल होती है, तो यह भारतीय लोकतंत्र को एक नई ऊंचाई तक ले जाने वाला परिवर्तन साबित होगी। यह समय है कि सभी नागरिक, राजनीतिक दल और संस्थाएं इस पहल का समर्थन करें और इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक मील का पत्थर बनाएं।

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