भारत में पदयात्रा क्यों मानी जाती है सत्ता की चाबी, चंद्रशेखर से लेकर राहुल तक जानिए क्या रहा है इतिहास

भारत में पदयात्रा क्यों मानी जाती है सत्ता की चाबी, चंद्रशेखर से लेकर राहुल तक जानिए क्या रहा है इतिहास

नईदिल्ली। भारतीय राजनीति में पदयात्राओं का इतिहास बेहद पुराना रहा है। गुलामी के दौर में महात्मा गांधी की पदयात्रा ने देश भर में जहां आजादी का अलख जगाया, वहीं आजादी के बाद पदयात्राओं ने नेताओं की छवि संवारने का काम किया और रसातल में पड़ी पार्टियों को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। इतिहास के पन्नों पलटकर देखें तो सामने आएगा की नमक कानून तोड़ने के लिए अहमदाबाद से दांडी तक 241 किमी की पदयात्रा महात्मा गांधी ने 25 दिन में पूरी की।कहते हैं कि जब गांधी जी पदयात्रा करते थे तो उनके पीछे एक-एक करके हजारों की भीड़ साथ चल पड़ती थी। लेकिन ये यात्राएं ब्रिटिश शासन के खिलाफ थी इसलिए इनमें भीड़ और शामिल होने वाले नेताओं में जोश भी था।

आजाद भारत में निकली राजनीतिक यात्राओं की बात अलग है। ये यात्राएं विपक्ष से पक्ष और हाशिए से उठकर सत्ता में पहुंचने के लिए होती आई है। अब सवाल ये उठता है की ये यात्राएं कितनी सफल होती है और क्या राहुल गांधी और कांग्रेस को इस भारत जोड़ो यात्रा से लाभ होगा। आइए इससे पहले जान लेते है आजाद भारत की कुछ प्रमुख पदयात्राओं का इतिहास।

यात्राओं का इतिहास -

भारत में इन पदयात्राओं का इतिहास 20वीं और 21 सदी से भी पहले का है। देश में गौतमबुद्ध, शंकराचार्य, गुरु नानक से लेकर महात्मा गांधी तक ने पदयात्राएं की है।आजाद भारत में इस तरह की यात्रा आचार्य विनोबा भावे (1951), पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (1983), वाईएसआर (2003) चंद्रबाबू नायडू (2013) दिग्विजय सिंह की (2017) नर्मदा यात्रा शामिल है।

चंद्रशेखर की यात्रा से प्रेरित -


अब राहुल गांधी 3570 किमी लंबी भारत जोड़ो पदयात्रा पर निकले है। उनकी ये यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की भारत यात्रा से प्रेरित है। पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी से भारत यात्रा की शुरुआत की थी।उनकी ये पदयात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली में राजघाट पर खत्म हुई। इस दौरान चंद्रशेखर की टोली रोजाना 45 किलोमीटर की यात्रा करती थी। इस पदयात्रा के दौरान चंद्रशेखर ने 4200 किलोमीटर की यात्रा की थी। अब बात करें यात्रा से लाभ की तो बता दें चंद्रशेखर ने उस समय देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल तैयार कर दिया था लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया। कांग्रेस को इंदिरा की हत्या के सद्भावना वोट मिले और चंद्रशेखर को विपक्ष में बैठना पड़ा। हालांकि वे शांत नहीं बैठे और कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई जारी रखी।यात्रा के सात साल बाद वर्ष 1990 में वे देश के 8वें प्रधानमंत्री चुने गए। हालांकि मार्च 1991 में बहुमत की कमी के चलते चंद्रशेखर की सरकार गिर गई और उन्होंने PM पद से इस्तीफा दे दिया।

वाईएसआर की यात्रा -


राजनीतिक पदयात्राओं के इस इतिहास में आजाद भारत की दूसरी पदयात्रा आंध्र प्रदेश के नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी ने की थी। उन्होंने 9 अप्रैल 2003 को अपनी यात्रा की शुरुआत की थी। 2 महीने चली इस पदयात्रा के दौरान 1,500 किमी की इस यात्रा के दौरान वाई एस आर ने 11 जिलों का दौरा किया और कई सभाओं में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने लोगों से सिर्फ मुलाकात ही नहीं की बल्कि उनकी समस्याएं भी सुनीं।इस यात्रा का फायदा उन्हें 2004 के विधानसभा चुनाव में मिला। मई 2004 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और सितंबर 2009 तक कार्यभार संभाला।

चंद्रबाबू नायडू (2013) -

2003 में वाई एस रेड्डी की पदयात्रा से सबसे बड़ा नुकसान तेलुगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू का हुआ था। उन्हें 2004 के आम चुनाव में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। नायडू ने वाई एस रेड्डी के नक़्शे कदम पर चलते हुए 2013 में 1,700 किमी लंबी पदयात्रा की। इसका फायदा उन्हें साल 2014 में विधानसभा चुनाव में हुआ। उनकी पार्टी को बहुमत मिला और वह दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए।

दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा -


इसी कड़ी में अगला नाम आता है कांग्रेस नेता और मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का। उन्होंने वर्ष 2017 में नर्मदा यात्रा की थी। 6 माह चली इस यात्रा में उन्होंने प्रदेश की 110 विधानसभा सीटों का दौरा किया और जनता से उनकी समस्याएं भी सुनीं। जिसका फायदा 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस को मिला। कांग्रेस को इस चुनाव में 114 सीटों पर जीत मिली थी। स्पष्ट बहुमत से दूर रहने के कारण कांग्रेस ने बसपा और सपा से गठबंधन कर सरकार बनाई थी।हालांकि बाद में पार्टी में फूट और विधायकों के दलबदल के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।

पदयात्राओं से राहुल गांधी को फायदा -

ऐसे में सवाल उठता है की क्या राहुल गांधी को इस यात्रा का लाभ मिलेगा। इस संबंध में राजनीतिक जानकारों का कहना है की ये तो 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में ही पता चलेगा की कितना फायदा और कितना नुकसान हुआ। बता दें की राहुल गांधी की ये यात्रा 50 दिनों में साढ़े तीन हजार किलोमीटर का सफर पूरा करेगी। 7 सितंबर को शाम 5 बजे कन्याकुमारी से शुरू हुई ये यात्रा 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होते हुए कश्मीर में खत्म होगी।


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