गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के अपमान से देश दुखी : प्रधानमंत्री

गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के अपमान से देश दुखी : प्रधानमंत्री
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नईदिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में पद्म पुरस्कार, कोरोना वैक्सीन अभियान, नई खेती के तरीके और महिलाओं के सफल प्रयासों समेत कई बिंदुओं का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि 23 जनवरी को हमने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन को 'पराक्रम दिवस' के तौर पर मनाया और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की शानदार परेड भी देखी। संसद का बजट सत्र भी शुरू हो गया है। इन सभी के बीच पद्म पुरस्कारों की घोषणा भी हुई। राष्ट्र ने असाधारण कार्य कर रहे लोगों को उनकी उपलब्धियां और मानवता के प्रति उनके योगदान के लिए सम्मानित किया। इन सभी विजेताओं के जीवन से लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी क्रिकेट टीम ने शुरुआती दिक्कतों के बाद, शानदार वापसी करते हुए ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जीती। हमारे खिलाड़ियों की मेहनत और टीम भावना प्रेरित करने वाला है। उन्होंने कहा कि लेकिन दिल्ली में 26 जनवरी को तिरंगे का अपमान देख, देश बहुत दुखी भी हुआ। हमें आने वाले समय को नई आशा और नवीनता से भरना है। हमने पिछले साल असाधारण संयम और साहस का परिचय दिया था। इस साल भी हमें कड़ी मेहनत करके अपने संकल्पों को सिद्ध करना है। अपने देश को और तेज गति से आगे ले जाना है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस साल की शुरुआत के साथ ही कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई को भी करीब-करीब एक साल पूरा हो गया है। जैसे कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई एक उदाहरण बनी है, वैसे ही अब हमारा टीकाकरण कार्यक्रम भी दुनिया में एक मिसाल बन रहा है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना टीकाकरण कार्यक्रम चला रहा है। दुनिया में सबसे तेज गति से अपने नागरिकों का टीकाकरण भी किया जा रहा है। सिर्फ 15 दिन में भारत अपने 30 लाख से ज्यादा कोरोना वॉरियर का टीकाकरण कर चुका है, जबकि अमेरिका जैसे समृद्ध देश को इसी काम में 18 दिन लगे और ब्रिटेन को 36 दिन। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत की आत्मनिर्भरता का तो प्रतीक है ही, भारत के आत्मगौरव का भी प्रतीक है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने ट्वीट करके जिस तरह से भारत को धन्यवाद दिया है, वो देखकर हर भारतीय को कितना अच्छा लगा। हजारों किलोमीटर दूर, दुनिया के दूर-सुदूर कोने के निवासियों को, रामायण के उस प्रसंग की इतनी गहरी जानकारी है, उनके मन पर गहरा प्रभाव है- ये हमारी संस्कृति की विशेषता है।

अमृत महोत्सव की होगी शुरुआत

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इस वर्ष अपनी आजादी के 75 वर्ष का समारोह- अमृत महोत्सव शुरू करने जा रहा है। ऐसे में यह हमारे उन महानायकों से जुड़ी स्थानीय जगहों का पता लगाने का बेहतरीन समय है, जिनकी वजह से हमें आजादी मिली। भारत के हर हिस्से में, हर शहर, कस्बे और गांव में आजादी की लड़ाई पूरी ताकत के साथ लड़ी गई थी। भारत भूमि के हर कोने में ऐसे महान सपूतों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया। ऐसे में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे लिए किए गए उनके संघर्षों और उनसे जुड़ी यादों को हम संजोकर रखें और इसके लिए उनके बारे में लिखकर हम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए उनकी स्मृतियों को जीवित रख सकते हैं। युवा साथियों का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि वे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में आजादी से जुड़ी घटनाओं के बारे में लिखें। अपने इलाके में स्वतंत्रता संग्राम के दौर की वीरता की गाथाओं के बारे में किताबें लिखें। अब, जबकि भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष मनाएगा तो आपका लेखन आजादी के नायकों के प्रति उत्तम श्रद्धांजलि होगी। युवा लेखकों के लिए भारत 75 के तहत एक पहल की शुरुआत की जा रही है। इससे सभी राज्यों और भाषाओं के युवा लेखकों को प्रोत्साहन मिलेगा। देश में बड़ी संख्या में ऐसे विषयों पर लिखने वाले लेखक तैयार होंगे, जिनका भारतीय विरासत और संस्कृति पर गहन अध्ययन होगा।

कचरे से कंचन बनाने की यात्रा

नए-नए प्रयोग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हैदराबाद के बोयिनपल्ली में बेकार हुई सब्जियों से बिजली बनाने का काम किया जा रहा है। आज बोयिनपल्ली की मंडी में पहले जो कचरा था, आज उसी से बिजली तैयार की जा रही है। यही तो कचरे से कंचन बनाने की यात्रा है। वहां हर दिन करीब 10 टन कचरा निकलता है। इसे एक प्लांट में इकठ्ठा कर लिया जाता है। इस प्लांट के अंदर इस कचरे से हर दिन 500 यूनिट बिजली बनती है और करीब 30 किलो बायो फ्यूल भी बनता है। इस बिजली से ही सब्जी मंडी में रोशनी होती है और जो बायो फ्यूल बनता है उससे मंडी की कैंटीन में खाना बनाया जाता है।

कला के पुनर्जीवन से मिल रहा रोजगार

अरुणाचल प्रदेश के तवांग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के इस पहाड़ी इलाके में सदियों से 'मोन शुगु' नाम का एक पेपर बनाया जाता है। ये कागज यहां के स्थानीय शुगु शेंग नाम के एक पौधे की छाल से बनाते हैं इसलिए इस कागज को बनाने के लिए पेड़ों को नहीं काटना पड़ता है। इसके अलावा इसे बनाने में किसी केमिकल का इस्तेमाल भी नहीं होता है यानी ये कागज पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है और स्वास्थ्य के लिए भी। एक वो भी समय था जब इस कागज का निर्यात होता था, लेकिन जब आधुनिक तकनीक से बड़ी मात्रा में कागज बनने लगे तो ये स्थानीय कला बंद होने की कगार पर पहुंच गई। अब एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कलिंग गोम्बू ने इस कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। इससे यहां के आदिवासी भाई-बहनों को रोजगार भी मिल रहा है।

महिलाओं की भागीदारी से मिलती है प्रेरणा

मोदी ने कहा कि अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को से बेंगलुरू के लिए एक फ्लाइट की कमान भारत की चार महिला पायलट ने संभाली। दस हजार किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा सफ़र तय करके ये फ्लाइट सवा दो सौ से अधिक यात्रियों को भारत लेकर आई। आपने इस बार 26 जनवरी की परेड में भी गौर किया होगा, जहां भारतीय वायुसेना की दो महिला अधिकारी ने नया इतिहास रच दिया है। क्षेत्र कोई भी हो, देश की महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि देश के गांवों में हो रहे इसी तरह के बदलाव की उतनी चर्चा नहीं हो पाती इसलिए जब मैंने एक खबर मध्य प्रदेश के जबलपुर की देखी तो मुझे लगा कि इसका जिक्र तो मुझे 'मन की बात' में जरूर करना चाहिए। ये खबर बहुत प्रेरणा देने वाली है। जबलपुर के चिचगांव में कुछ आदिवासी महिलाएं एक चावल मिल में दिहाड़ी पर काम करती थीं। कोरोना महामारी ने जिस तरह दुनिया के हर व्यक्ति को प्रभावित किया, उसी तरह ये महिलाएं भी प्रभावित हुईं। उनकी चावल मिल में काम ठप हो गया। मीना राहंगडाले ने सब महिलाओं को जोड़कर 'स्वयं सहायता समूह' बनाया और सबने अपनी बचाई हुई पूंजी से पैसा जुटाया। इन आदिवासी बहनों ने वही चावल मिल खरीद ली, जिसमें वो कभी काम किया करती थीं। आज वो अपनी खुद की चावल मिल चला रही हैं। इतने ही दिनों में इस मिल ने करीब तीन लाख रुपये का मुनाफ़ा भी कमा लिया है।

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