प्रधानमंत्री ने SCO समिट को संबोधित किया, कहा - कट्टरता विश्व के लिए घातक
नईदिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी ने आज शुक्रवार को शंघाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) की बैठक को सम्बोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा की कट्टरता दुनिया के लिए बड़ी मुसिबत है और हाल के अफगानिस्तान के घटनाक्रम ने चुनौती को और बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद के 21वें शिखर सम्मेलन को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित इस सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री भाग लेने पहुंचे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एसीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संस्था के भविष्य के बारे में सोचने का उपयुक्त अवसर है। उनका मानना है कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और आपसी विश्वास की कमी से संबंधित है। इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ता हुआ कट्टरपंथ है। अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा कि कट्टरता से लड़ाई क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी विश्वास के लिए आवश्यक है। साथ ही यह हमारी युवा पीढ़ियों के उज्जवल भविष्य के लिए भी जरूरी है। विकसित विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे क्षेत्र को उभरती टेक्नोलॉजी में भागीदार बनना होगा।
मोदी ने कहा कि मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरपंथ और चरमपंथ से लड़ने का एक साझा प्रयास करने चाहिए। भारत और एससीओ के लगभग सभी देशों में इस्लाम से जुड़ी आधुनिक, उदार और समावेशी संस्थाएं और परंपराएं हैं। हमें अपने प्रतिभाशाली युवाओं को विज्ञान और तार्किक सोच की ओर प्रोत्साहित करना होगा। हम अपने युवा उद्ममियों और स्टार्ट-अप को एक दूसरे से जोड़कर इस तरह की सोच, इस तरह की नवाचारी भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
मोदी ने कहा कि कट्टरता और असुरक्षा के कारण इस क्षेत्र की विशाल आर्थिक संभावनाएं उपयोग में नहीं आ रही हैं। खनिज संपदा हो या एससीओ देशों के बीच व्यापार हो, इनका पूर्ण लाभ उठाने के लिए हमें आपसी संपर्क पर जोर देना होगा। इतिहास में मध्य एशिया की भूमिका प्रमुख क्षेत्रीय बाजारों के बीच एक संपर्क सेतु की रही है। यही इस क्षेत्र की समृद्धि का भी आधार था।
उन्होंने कहा कि संपर्क से जुड़ी कोई भी पहल 'सीधी सड़क' नहीं हो सकती। आपसी विश्वास सुनिश्चित करने के लिए संपर्क परियोजनाओं को आपसी बातचीत, पारदर्शी और सहयोगी होना चाहिए। इनमें सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान निहित होना चाहिए। इन सिद्धांतों के आधार पर एससीओ को क्षेत्र में संपर्क परियोजनाओं के लिए उपयुक्त तौर-तरीके विकसित करने चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत मध्य एशिया के जमीन तौर पर बंद एशियाई देशों को भारत के विशाल बाजार से जुड़कर अपार लाभ हो सकता है। दुर्भाग्यवश आज संपर्क के कई विकल्प उनके लिए खुले नहीं हैं। ईरान के चाबहार पोर्ट में हमारा निवेश और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण कोरिडोर के प्रति हमारा प्रयास इसी वास्तविकता से प्रेरित है। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर ताजिकिस्तान का चुनौतीपूर्ण वैश्विक और क्षेत्रीय माहौल में एससीओ की अध्यक्षता करने और उसकी आजादी के 30वीं वर्षगांठ पर बधाई और शुभकामनाएं दी। साथ ही उन्होंने ईरान का नए सदस्य देश के रूप में और सऊदी अरब, मिस्र तथा कतर का नए 'डायलॉग पार्टनर' के रूप में स्वागत किया।