प्रधानमंत्री मोदी ने कूनो में चीतों को छोड़ा, मप्र बना देश का एकमात्र चीता स्टेट
श्योपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को अपने जन्मदिन पर मध्य प्रदेश को खास सौगात दी। उन्होंने नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान के क्वारंटाइन बाड़े में छोड़ा। यहां प्रधानमंत्री के लिए 10 फीट ऊंचा प्लेटफॉर्म नुमा मंच बनाया गया था। इसी मंच के नीचे पिंजरे में चीते थे। प्रधानमंत्री ने लीवर के जरिए बॉक्स को खोला और चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में विमुक्त किया और कैमरा लेकर उनकी तस्वीर भी ली। इसके साथ ही देश में सात दशक बाद फिर से चीता युग की भी शुरुआत हो गई।
इससे पहले शनिवार सुबह 7.55 बजे नामीबिया से विशेष विमान आठ चीतों को भारत लेकर आया। यहां 24 लोगों की टीम के साथ चीते ग्वालियर एयरबेस पर उतरे। यहां उनका रुटीन चेकअप हुआ। चीतों के साथ नामीबिया के वेटरनरी डॉक्टर एना बस्टो भी आए हैं। नामीबिया से चीतों को खास तरह के पिंजरों में लाया गया। ग्वालियर एयरबेस से चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान लाया गया।
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— PIB India (@PIB_India) September 17, 2022
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कूनो जाने से पहले विशेष विमान से दिल्ली से ग्वालियर पहुंचे। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने उन्हें उनका स्वागत किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मप्र के लिए इससे बड़ा कोई तोहफा नहीं। देश में चीते विलुप्त हो गए थे और इन्हें फिर से बसाना एक ऐतिहासिक कदम है। यह इस सदी की सबसे बड़ी वन्यजीव घटना है। इससे मध्य प्रदेश में पर्यटन को तेजी से बढ़ावा मिलेगा।इसके बाद प्रधानमंत्री कूना उद्यान पहुंचे और बॉक्स खोलकर चीतों को क्वारंटीन बाड़े में छोड़ा। चीतों के बाहर आते ही प्रधानमंत्री मोदी ने ताली बजाकर उन चीतों का स्वागत किया। मोदी ने कुछ फोटो भी क्लिक किए। 500 मीटर चलकर मोदी मंच पर पहुंचे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का भी धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं।ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ।आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है।
उन्होंने कहा की ये बात सही है कि, जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है। विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं। कुनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे, तो यहां का ग्रासलैंड इकोसिस्टम फिर से रिस्टोर होगा, biodiversity और बढ़ेगी।कुनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा।आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं।कुनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा।अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन्स पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है।प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी, भारत के लिए ये केवल sustainability और security के विषय नहीं हैं।हमारे लिए ये हमारी sensibility और spirituality का भी आधार हैं।
आज 21वीं सदी का भारत, पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि Economy और Ecology कोई विरोधाभाषी क्षेत्र नहीं है।पर्यावरण की रक्षा के साथ ही, देश की प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है।हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है।इसी तरह, आज गुजरात देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है।इसके पीछे दशकों की मेहनत, research-based policies और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है।टाइगर्स की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था उसे समय से पहले हासिल किया है।असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है।हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30 हजार से ज्यादा हो गई है।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में कोरिया के महाराजा ने 1947 में तीन चीता शावकों का एक साथ शिकार किया था। वर्ष 1952 में भारत सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया था। इसके बाद आज देश में फिर से चीतों की वापसी हुई है।