प्राचीन वैभव के साथ अपने शिखर निर्माण की प्रतिक्षा करता श्रीहरिदेव जी मंदिर, औरंगजेब भी नहीं हिला सका था प्राचीरें

प्राचीन वैभव के साथ अपने शिखर निर्माण की प्रतिक्षा करता श्रीहरिदेव जी मंदिर, औरंगजेब भी नहीं हिला सका था प्राचीरें
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बज्रनाभ जी ने 5500 वर्ष की थी श्रीविग्रह की स्थापना
समय बीता पर नहीं हुआ श्रीहरिदेव जी मंदिर का जीर्णोद्धार

गोवर्धन/आशु कौशिक। यूँ तो गोवर्धन धाम अपने आप में विष्व विख्यात है और परिचय का मोहताज नहीं है लेकिन पौराणिकता की दृष्टि से यहाँ ठाकुर श्री हरिदेव जी महाराज स्वयं विराजमान हैं। भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र श्री बज्रनाभ जी द्वारा ब्रज में चार देवों की स्थापना की गयी। यह चारों देव क्रमश गोवर्धन में श्री हरिदेव जी, मथुरा में श्री केशवदेव जी, दाऊजी में श्री बल्देव जी और वृन्दावन में श्री गोविन्द देव जी हैं। श्री गोविन्ददेव जी आज जयपुर में विराजमान है। गोवर्धन स्थित मानसी गंगा के दक्षिण तट पर विराजमान श्री हरिदेव जी महाराज का विग्रह गोवर्धन में स्थापित श्री कृष्ण का गोवर्धन पर्वत धारण करता हुआ एक मात्र दर्शन है ऐसा विग्रह सम्पूर्ण सात कोस में नहीं है मान्यता है कि बज्रनाभ जी द्वारा करीब 5500 वर्ष पूर्व इस विग्रह को यहाँ स्थापित किया गया था। कालान्तर में औरंगजेब के आक्रमण के समय ये श्री बिग्रह परिक्रमा मार्ग स्थित बिछुआ कुण्ड में लुप्त हो गया जिसे बाद में श्री केशवाचार्य जी द्वारा प्राण प्रतिस्ठा किया गया श्री केशवाचार्य जी एक परम नाम निष्ठ भक्त हुए ऐसी मान्यता है कि श्री केशवाचार्य जी का सम्पूर्ण शरीर ठाकुर जी के नाम से छाप युक्त था।

गौतम खण्डेलवाल प्रमुख समाजसेवी गोवर्धन ने बताया कि ठा. श्रीहरिदेव जी महाराज का विग्रह श्री राधामय स्वरुप एक प्राण दो देह का स्वरुप है गोवर्धन में मानसी गंगा के समीप बने लाल पत्थर के शानदार मंदिर का इतिहास भी बड़ा रोचक रहा है ऐसी मान्यता है कि श्री हरिदेव जी का यह मंदिर एक रात्रि के पहर का बना मंदिर है इसी कारण इसे भूतों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है लाल पत्थर के इस बने मंदिर को पहले सात मन्जिल का बताया जाता था लेकिन औरंगजेब के आक्रमण के समय इसकी ऊपर के छः मंजिल गिरा दी गयी नक्काशी दार बने इस मंदिर का इतिहास किसी से छुपा हुआ नहीं है आज भी ये दिव्य मंदिर सम्पूर्ण सात कोस में अद्वितीय है।

गर्ग संहिता के अनुसार ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है जहाँ श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी बांय हाथ की कनिष्ठा ऊंगली पर धारण किया, तभी यहाँ श्री बज्रनाभ जी द्वारा श्री कृष्ण के सात वर्ष के स्वरुप को स्थापित किया गया। देवराज इंद्र के मान को हरण करने के बाद इनका नाम श्री हरिदेव पड़ा ऐसी मान्यता है कि जब तक हरिदेव जी के मंदिर में श्री विग्रह का दर्शन न किया जाये तब तक गोवर्धन की परिक्रमा का फल प्राप्त नहीं होता है श्रीमद भगवत गीता में भी इस बात की पुष्टि की गयी है कि “करोति धृत नगेंद्राय गोपनाम राक्षकायते सप्ताब्ध रूपेण तुभ्यं, श्री हरिदेवायते नमः” कहावत है कि “मानसी गंगा श्री हरिदेव गिरिवर की परिक्रमा देय कुण्ड-कुण्ड चरणामृत लेय अपनों जनम सफल कर लेय”

इतनी मान्यताओं और अपने में पौराणिकताओं को समेटे इस ऐतिहासिक मंदिर को स्थानीय शासन प्रशासन और तमाम विभागों द्वारा नजर अंदाज कर देना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है

श्रीहरिदेव जी के दर्शन न किये तो गोवर्धन परिक्रमा है अधूरी

गिरिराज जी की तलहटियों में मानसी गंगा के तट के सामने दक्षिण पश्चिमी भाग में श्री हरिदेव जी का मंदिर है। मनसादेवी, मानसीगंगा तथा हरिदेव जी ये तीनों दिव्याकर्षण पास-पास ही विराजमान है। श्रीहरिदेव जी के मंदिर के श्री विग्रह का प्राकट्य संत श्री केशवाचार्य जी द्वारा किया गया था। इस मंदिर का निर्माण सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने कराया था और औरंगजेब ने इसे ध्वस्त किया था इसके बाबजूद आज भी यह दिव्याकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि यदि परिक्रमा करने के बाद श्री हरिदेव जी के दर्शन न किये जाय तो परिक्रमा का फल अधूरा रह जाता है।

कृष्ण के बाल स्वरूप हैं हरिदेव जी

हरिदेव जी कृष्ण के वो बाल स्वरूप हैं जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। श्री कृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने ब्रज में 4 सेव्य विग्रह स्थापित किए थे। जिनमें से हरिदेव जी एक हैं। अन्य तीन गोविंददेव जी, केशवदास जी और बलदेव जी हैं। कालांतर में ये सभी लुप्त हो गए हैं।

केशवाचार्य जी ने किया पुनः प्रकाट्य

हरिवेदव जी का पुनरू प्रकाट्य केशवाचार्य जी ने किया था। कथाओं में वर्णन हैं कि उन्हें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने सपने में दर्शन दिए थे। जिसके बाद बिछुआ कुंड की खुदाई करवाई गई वहीं से हरिदेव जी का दिव्य विग्रह मिला था। जिसे केशवाचार्य अपनी कुटिया में ले आए और उसका पूजन करने लगे थे।

आमेर के राजा ने करवाया था मंदिर निर्माण

सन 1637 में हरिदेव जी के मंदिर को आमेर के राजा भगवानदास ने बनवाया था। राजा भगवान दास अकबर के नव रत्नों में से एक राजा मान सिंह के पिता थे। ये विशाल मंदिर लाल बलुए पत्थर से बना है। गिरिराज जी की परिक्रमा के 2 महत्वपूर्ण स्थान मानसी गंगा और हरिदेव जी ही हैं।

एक रात में बना था मंदिर

हरदेव जी मंदिर का इतिहास 5500 वर्ष पुराना है। बताया जाता है कि मंदिर की सात मंजिलें एक रात बनकर तैयार हो गईं थी। इसके बाद जब लोगों ने देखा एक रात में किस तरीके से मंदिर को भव्य रूप देकर कई मंजिल का बनाया गया है। उसमें नक्काशी के साथ लाल पत्थर का भी प्रयोग हुआ तो लोग इसे भूत-प्रेत से जोड़कर कहानियां बनाने लगे। ये दंतकथा गोवर्धन में भी प्रचलित है. यानी मान्यता बनने लगी कि इस मंदिर को भूतों ने बनाया है।

औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वाया

यह मंदिर भी औरंगजेब के मंदिर तोड़ो अभियान का शिकार हुआ। मंदिर मुगल हमले में तोड़ा गया। तब मंदिर में विराजमान हरिदेव जी का विग्रह वहां से स्थानांतरित करना पड़ा था।



गौतम खण्डेलवाल, प्रमुख समाजसेवी गोवर्धन ने कहा की - गोवर्धन की पौराणिकता से कोसों दूर है शासन -

शासन प्रशासन आमदनी वाले बाद में बने मंदिर जिनसे उनकी आमदनी बढेगी पूरा ध्यान लगाये हुए है साथ ही इन मंदिरों के लिए पूरी व्यवस्थाएं की जा रही है। मैं इस मंदिर के लिए उन सभी पदाधिकारियों मंत्रियों, संत समाज व बृजवासियों सहित पूर्ण शासन प्रशासन का ध्यान आकर्षित कर कहना चाहता हूँ कि कृपया एक नजर यहाँ डाली जाये तो निश्चित ही गोवर्धन में इससे सुन्दर रमणीक और ऐतिहासिक मंदिर सातों कोस में नजर नहीं आएगा इतना ही नहीं भगवन श्री कृष्ण की पर्वत धारण करता सात वर्ष का बाल स्वरूप दर्शन भी एक मात्र इसी मंदिर से परिलक्षित होकर सार्थक होता है साथ ही मेरा पूर्ण विश्वास है कि सरकार यदि पूर्ण मंशा के साथ मंदिर को निहारे और मंदिर पर कार्य करे तो निश्चित ही पर्यटन का ये मंदिर एक अच्छा उदाहरण साबित होकर गोवर्धन को नया आयाम प्रदान करेगा।

सतीश चंद्र गोस्वामी ने कहा की -

औरंगजेब की सैना ने मथुरा, गोवर्धन, वृन्दावन के प्रमुख मन्दिरों के षिखरों को तोड़ दिया जब दाऊजी के बल्देव मन्दिर के षिखर को तोडने सेना पहुॅची तो रास्ते में 17 दिन तक 8 मील चलते रहे इसके बाद भी दाऊजी के बल्देव मन्दिर का षिखर न मिला तो राहगीरों के कहने पर औरंगजेब ने मन्दिर पर सोने का सवा मन का छत्र चढ़वाने को कहा तो प्रभु की कृपा से मन्दिर का षिखर नजर आ गया तो फिर से मन्दिर के षिखर को तोड़ने का आदेष दे दिया। प्रभु की कृपा से मन्दिर से सैकड़ों भंवरे निकले और औरंगजेब की सेना को खत्म कर दिया। और दाऊजी के बल्देव मन्दिर का शिखर को तोड़ना तो दूर छू भी नही पाये। तभी से ब्रज का राजा बलदाऊ को माना गया है।

अनूप यादव ने कहा की -

गोवर्धन का पौराणिक मंदिर ठा. श्रीहरिदेव जी महाराज होने के बाद भी आज तक न कोई सुलभ रास्ता, लाइट साथ ही मंदिर की तरफ नगर पंचायत से लेकर शासन प्रशासन किसी का भी ध्यान इस भव्य मंदिर की ओर नहीं है।

रोहिताश राघव ने कहा की -

इतना ही नहीं मथुरा रेलवे स्टेशन गोवर्धन, बस स्टैंड सहित न जाने कितनी जगह मंदिरों के फोटो फ्रेमिंग कराकर लगाये गए उसमे भी इस पौराणिक मंदिर को सभी जगह से नजर अंदाज किया गया है और आज तक किया जा रहा है। तमाम जगह एमवीडीए द्वारा सांकेतिक बोर्ड लगाने का कार्य किया गया है इस मंदिर की अनदेखी उसमे भी की गयी।

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