मुख्यमंत्री बदलकर भी नही मिटा पंजाब कांग्रेस में कलह, अब रावत के बयान से जाखड़ नाराज
चंडीगढ़। कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने और दलित समुदाय से आने वाले विधायक चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लगने लगा था कि अब पंजाब में कांग्रेस का अंदरूनी क्लेश खत्म हो जाएगा। लेकिन हाईकमान की तमाम कोशिशों के बाद भी पंजाब कांग्रेस का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने सिद्धू को चुनावी कमान देने का बयान दिया तो पूर्व पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने उस पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये, जिसके बाद से सूबे के साथ-साथ देश की सियासत में भी उबाल आ गया है।
रावत के बयान से नाराज जाखड़ -
On the swearing-in day of Sh @Charnjit_channi as Chief Minister, Mr Rawats's statement that "elections will be fought under Sidhu", is baffling. It's likely to undermine CM's authority but also negate the very 'raison d'être' of his selection for this position.
— Sunil Jakhar (@sunilkjakhar) September 20, 2021
पंजाब कांग्रेस प्रभारी और पार्टी के महासचिव हरीश रावत ने अपने एक बयान में कहा कि, "प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में चुनाव लड़े जाएंगे।" इसे लेकर पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, " चरणजीत चन्नी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दिन रावत का यह बयान कि 'चुनाव सिद्धू के नेतृत्व में लड़े जाएंगे' चौंकाने वाला है।" यह केवल मुख्यमंत्री पद के अधिकार को कमजोर करने का ही प्रयास नहीं है, बल्कि उनकी नियुक्ति के उद्देश्य को कमजोर करने वाला है।
विरोधियों के हाथ लगा मुद्दा -
जाखड़ के इस ट्वीट के बाद तो विरोधियों के हाथ बैठे- बिठाए मुद्दा लग गया है। जाखड़ के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अमित मालवीय ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए लिखा,"अगर गांधी परिवार के लाडले नवजोत सिंह सिद्धू के लिए सीट रिजर्व करने की खातिर ही चरणजीत सिंह चन्नी को डमी मुख्यमंत्री बनाया गया है तो यह पूरे दलित समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला फैसला है। कांग्रेस का यह फैसला दलितों के सशक्तिकरण को लेकर उठाए जा रहे कदमों को पूरी तरह से कमजोर करने वाला है।
अकाली दल विधायक और दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी इस पर ट्वीट कर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है। सिरसा ने लिखा, " हरीश रावत और गांधी परिवार के इस तानाशाही और पक्षपाती बयान और फैसले पर पूरे दलित समुदाय को सख्त विरोध करना चाहिए। यह बयान पूरी तरह से दलितों और मुख्यमंत्री पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है।"
चन्नी कैसे बने मुख्यमंत्री पद के दावेदार -
असल में चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस आलाकमान की पहली पसंद नहीं थे, लेकिन जिस तरह शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और भाजपा ने दलितों को लुभाना शुरू किया है। उसके बाद कांग्रेस के लिए इस होड़ में पीछे रहना मुश्किल हो गया था। खास तौर पर जब पार्टी की अंतरकलह उसे 2022 के चुनावों में बैकफुट पर धकेल रही थी। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार दलित एक समय में कांग्रेस का पंजाब में सबसे बड़ा समर्थक रहा था। लेकिन पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी ने इसमें सेंध लगा दी थी।
पंजाब की सियासत में दलितों की भूमिका -
पंजाब में लगभग 33 -34 फीसदी दलित आबादी है और सूबे की 117 विधानसभा सीटों में 34 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। हर बार चुनाव में दलित फैक्टर सियासी पार्टियों के लिए किंगमेकर की भूमिका में सामने आता है। इसी को देखते हुए प्रमुख विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर ऐलान कर चुकी है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो प्रदेश में दलित उप मुख्यमंत्री होगा। भाजपा ने भी किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए दलित सीएम का दांव खेला है। ऐसे में कांग्रेस के पास मौका था कि वह उस दांव को हकीकत में तब्दील कर क्यों ना रेस में सबसे आगे निकला जाए। लेकिन कांग्रेस की इस कोशिश के पीछे का आशय स्पष्ट करते हरीश रावत के इस बयान को सूबे के दलित किस तरह से लेते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।