राम मंदिर ट्रस्ट पर आरोप लगाकर राजनीति करने वाले नेताओं का झूठ उजागर, 3 अनुबंधों में ऐसे हुई खरीदी

राम मंदिर ट्रस्ट पर आरोप लगाकर राजनीति करने वाले नेताओं का झूठ उजागर, 3 अनुबंधों में ऐसे हुई खरीदी
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वेब डेस्क। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस कर राम मंदिर ट्रस्ट पर आरोप लगाया, कि राम मंदिर के लिए ज़मीन ख़रीदने में घोटाला हुआ। उन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट पेश किये कि 18 मार्च को दो रेजिस्ट्री हुई, पहली रेजिस्ट्री में कुसुम पाठक, हरीश पाठक ने वह ज़मीन सुल्तान अंसारी आदि को दो करोड़ में विक्रय किया। फिर 5-10 मिनट बाद वही ज़मीन ट्रस्ट ने 18.5 करोड़ में ख़रीदी।

चूँकि रियल एस्टेट का अनुभव रखने वाले रविंद्र सिंह से चर्चा की और इस विषय पर पड़ताल से हमने यह पाया की आप नेता संजय सिंह ने जो बताया वह अर्ध सत्य है। 18 मार्च को दो नहीं तीन अनुबंध हुए. दो जिनका ज़िक्र आप नेता ने किया, तीसरा अनुबंध को राजनीति करने के फेर में वह छिपा गए। दरअसल तीसरा वाला 18 मार्च को अनुबंध सबसे पहले हुआ। इस अनुबंध के अनुसार कुसुम पाठक, हरीश पाठक का सुल्तान अंसारी बिल्डर और पार्ट्नर के साथ दो करोड़ में बेचने का अनुबंध था जो वह निरस्त कर रहे हैं।

सिलसिलेवार इसको ऐसे समझें -

1) 2019 में पाठक ने यह ज़मीन दो करोड़ में सुल्तान अंसारी बिल्डर + 8 पार्ट्नर को बेचने हेतु रजिस्टर्ड करार नामा किया। पचास लाख रुपए व्याना नगद लिए। उस समय तक राम मंदिर का फ़ैसला नहीं आया था तो ज़मीनों का रेट काफ़ी कम था।

2) 18 मार्च 2021 को पाठक ने यह करारनामा कैंसिल किया। जब तक यह करार नामा कैंसिल नहीं होता, पाठक इसे किसी को नहीं बेच सकते थे।

3) फिर उसी दिन उन्होंने यह ज़मीन सुल्तान अंसारी बिल्डर को इसी रेट 2 करोड़ में बेची।

4) फिर सुल्तान अंसारी से यह ज़मीन ट्रस्ट ने 18.5 करोड़ में ख़रीदी। दो साल पहले की बात अलग थी, तब दो करोड़ की जो ज़मीन थी अब अयोध्या में फैसला आने के बाद से लगातार जमीनों के दाम बढ़ रहे हैं। तय की हुई जमीन का सौदा भी नई रेट के हिसाब से ट्रस्ट के साथ किया। इसलिए 18.5 करोड़ रुपये पर बात बनी।

और विस्तृत रूप से समझाएं तो असल में यह कॉमन प्रेक्टिस है। प्राय देखा गया है की ज्यादातर बिल्डर तिहाई चौथाई पैसा देकर लम्बे समय के लिए किसान से लैंड अग्रीमेंट कर लेते हैं। फिर वह ढूँढते हैं पार्टी जो उस ज़मीन को ख़रीद सके। किसान ने चूँकि अग्रीमेंट कर रखा है तो वह बिल्डर को उसी रेट में ही बेच सकता है जिस रेट में पहले से तय है। जैसे ही बिल्डर को पार्टी मिल जाती है या इसी बीच ज़मीन का रेट बढ़ गया तो बिल्डर सौदा तय कर देता है नई पार्टी के साथ। पार्टी की मजबूरी है बिल्डर से ही ख़रीदना क्योंकि बिल्डर का किसान से अग्रीमेंट है। फिर रेजिस्ट्री वाले दिन बिल्डर पहले अग्रीमेंट कैंसिल करता है, फिर प्रॉपर्टी को पुराने रेट में ख़रीदता है और नए रेट में पार्टी को बेच देता है।

प्रॉपर्टी डीलिंग में यह एक सामान्य प्रेक्टिस है। जो भी प्रॉपर्टी का कार्य करते हैं या जो किसान अपनी ज़मीन बिल्डर को बेचते हैं उन्हें पता होता है। शहरों में भी बिल्डर ऐसे ही अग्रीमेंट करते हैं। फिर ज़मीन डिवेलप कर महँगे दाम पर बेचते हैं। मूल पार्टी को रेट वही मिलता है जितना उसने अग्रीमेंट में तय किया होता है। ठीक समय पर पैसा फ़साने वाले बिल्डर को ही अतिरिक्त रूपया मिलता है, यह उनके रिस्क की वसूली होती है।

ट्रस्ट द्वारा जारी प्रेस वक्तव्य -




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