अयोध्या : रामानंदी विधि से की जायेगी राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा

अयोध्या : रामानंदी विधि से की जायेगी राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा
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रामानंदी समुदाय को मानने वाले शाकाहारी जीवन का पालन करते हैं और आचार्य रामानुज द्वारा प्रचारित की गयी विशिष्टद्वैत विचारधारा को मानते हैं।

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर न केवल पूरे देश बल्कि पूरी दुनिया में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है और देश और दुनियाभर में लोग इस क्षण के साक्षी बनना चाहते हैं पूरे देश में दिवाली जैसा माहौल है और हो भी क्यों ना आख़िरकार प्रभु श्री राम अयोध्या जो आ रहे हैं। वर्षों के इंतज़ार के बाद प्रभु का मंदिर अयोध्या में बन रहा है और इस बात को लेकर आज की यह पीड़ी गौरवान्वित महसूस कर रही है। अयोध्या के इस मंदिर में प्रभु श्री राम को बाल स्वरूप में स्थापित किया जायेगा और उनका ध्यान ठीक उसी प्रकार रखा जायेगा जैसे एक बच्चे का ध्यान रखा जाता है क्योंकि प्रभु अयोध्या के लाडले 'रामलला' जो हैं।

इसी बात को लेकर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के मुख्य सचिव चम्पत राय ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा के दौरान पूजा में रामानंदी विधि के द्वारा ही सारे संस्कारों को किया जायेगा।

आखिर क्या है ये रामानंदी विधि?

क्यों इस विधि के द्वारा प्रभु श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी?

तो जानते हैं इसके बारे में -

रामानंदी समुदाय समानतावादी विचारधारा को मानने वाला है और यह समुदाय हिन्दुओं के बड़े समुदायों में से एक है। कहा जाता है की इस समुदाय की शुरुआत प्रभु श्रीराम के साथ ही हुई थी और यह एक वैष्णव समुदाय है और भगवान विष्णु के अन्य अवतारों की भी उपासना करता है। रामानंदी समुदाय को मानने वाले शाकाहारी जीवन का पालन करते हैं और आचार्य रामानुज द्वारा प्रचारित की गयी विशिष्टद्वैत विचारधारा को मानते हैं। इस समुदाय में में त्यागी और नागा नाम के दो समूह हैं जिसमें त्यागी भस्म लगाकर आध्यात्मिक दीक्षा करते हैं जबकि नागा साधु एकांतवास करते हैं।

यह माना जाता है कि रामानंदी समुदाय की दीक्षा सबसे पहले माता सीता द्वारा हनुमान जी को दी गयी फिर हनुमान जी से ब्रह्मा जी, वशिष्ठ,पाराशर, वेदव्यास, शुकदेव आदि से लेकर राघवनंदाचार्य और फिर रामानंदाचार्य जी को मिली। रामानंदी समुदाय के बारे में जानने से पहले हमें रामानंद और विशिष्टद्वैत के बारे में जानना चाहिये। रामानंद मध्यकालीन भारत के एक संत थे जो गंगा के क्षेत्र में रहते थे और वह भक्ति आंदोलन एक कवि थे और मध्यकाल में रामानंदी समुदाय का संस्थापक भी इन्हें कहा जाता है। 14वीं -15वीं सदी के समय में वह केवल एक संत ही नहीं बल्कि एक समाज सुधारक भी थे और उन्होंने सभी तरह के भेदभाव को समाप्त किया।

रामानंद की 'बानी' को गुरु ग्रन्थ साहिब में भी स्थान दिया गया है। रामानंद ब्राह्मण परिवार से थे और उनके समुदाय को बैरागी समुदाय भी कहा जाता था। रामानंद के गुरु का नाम राघवानंद था जो विशिष्टाद्वैत के एक महान संत थे। रामानंद ने धार्मिक कर्मकांडों की अपेक्षा भक्ति पर अधिक जोर दिया उन्होंने कहा - ''ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये''और उन्होंने ईश्वर प्राप्ति के मार्ग को सहज व सरल बताया। रामानंद, रामानुज (जोकि भक्ति आंदोलन के और बड़े कवि थे) से काफी प्रभावित थे। रामानंद ने सगुन भक्ति में काफी ज़ोर दिया और रामावतार की पूजा को बहुत प्रचारित किया।

विशिष्टद्वैत क्या है ?

विशिष्टद्वैत आचार्य रामानुज द्वारा प्रतिपादित किया गया था और इसके अनुसार यह जगत और जीवात्मा दोनों ही ब्रह्म से भिन्न हैं फिर भी वे ब्रह्म से ही उद्भूत हैं और ब्रह्म से उनका सम्बन्ध इस प्रकार है जिस प्रकार सूर्य से उसकी किरणों का है अतः ब्रह्म एक होने पर भी अनेक हैं। रामानंदी विधि में इसी विशिष्टद्वैत की विचारधारा का पालन किया जाता है ईश्वर से स्वयं को बिना किसी भेदभाव के केवल भक्ति भाव द्वारा जोड़ा जाता है और यही विचारधारा वैष्णव समुदाय द्वारा भी अपनायी जाती है। अयोध्या जोकि प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि है, में भी ज़्यादातर मंदिरों में इसी विधि के द्वारा पूजा की जाती है। इस पूजा विधि की शुरुआत ॐ रामय नमः के मंत्र के साथ की जाती है और प्रभु को प्रेम व भक्ति भाव के साथ सब कुछ अर्पण किया जाता है और रूप में प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

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