संसद में Speaker की भूमिका : स्पीकर के एक निर्णय ने गिरा दी थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार
संसद में Speaker की भूमिका
Role of Speaker in Parliament : दिल्ली। आज देश में प्रधानमंत्री से भी ज्यादा चर्चा अगर किसी की है तो वो स्पीकर की है। संसद के स्पीकर के लिए एनडीए के सहयोगी दल अपने - अपने उम्मीदवारों की दावेदारी पेश कर रहे हैं। इन सब को देखते हुए वो समय याद आता है जब संसद में एक वोट ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा दी थी। सरकार गिरने के कई कारण थे लेकिन अंत में स्पीकर के एक फैसले ने निर्णायक भूमिका निभाई। फिर एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई। आइए जानते हैं क्या हुआ था 1999 में और क्या है संसद में स्पीकर की भूमिका।
दरअसल, अटल बिहार वाजपेयी के खिलाफ संसद में साल 1999 को अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। इस प्रस्ताव में अटल बिहारी सरकार के पक्ष में जहां 269 वोट पड़े वहीं उनके विपक्षी दलों को 270 वोट मिले। जाहिर है एक वोट ने सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई। ये वोट था कांग्रेस नेता गिरधर गोमांग का। अब मन में सवाल उठ सकता है कि, गोमांग का वोट निर्णायक कैसे? तो इसका जवाब है कि, वे जिस समय संसद में वोट देने वाले मुख्यमंत्री थे।
अब आसान भाषा में समझिए। दरअसल संसद में सांसद ही वोट कर सकते हैं। वहीं मुख्यमंत्री उस राज्य का विधायक होता है। अब यहां गिरधर गोमांग सांसद तो चुने गए थे लेकिन उन्हें कांग्रेस ने ओडिशा का मुख्यमंत्री बना दिया था। संवैधानिक प्रावधानों के तहत ऐसा संभव है। क्योंकि कोई भी राज्य का केंद्र में 6 महीने के लिए मंत्री बन सकता है। 6 महीने के अंदर उसे विधायका का सदस्य बन जाना चाहिए। अब गोमांग मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन संसद की सदस्यता उन्होंने अब तक छोड़ी थी।
अब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में स्पीकर थे टीडीपी के जीएसमी बालयोगी। उस समय भी टीडीपी के समर्थन से भाजपा ने सरकार बनाई थी। अब डीएमके मनचाहा मंत्रालय और स्पीकर की पोस्ट न मिलने से नाराज थी तो समर्थन भी वापस ले लिए। यहां से स्पीकर मुख्य भूमिका में आए।
स्पीकर बालयोगी ने विशेषाधिकारों का उपयोग करते हुए गिरधर गोमांग को संसद में वोट करने की अनुमति दी। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए संसद में वोट दिया और अटल बिहारी की सरकार गिर गई। अब टीडीपी 25 साल बाद दोबारा किंगमेकर की भूमिका में है और स्पीकर पद की डिमांड कर रही है। ऐसे समय में भाजपा को 1999 की याद जरूर आती होगी।
संविधान में स्पीकर की भूमिका :
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 में संसद के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का जिक्र है। यह संसद का अध्यक्ष होता है। स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद साल 1921 में अस्तित्व में आया था। संसद चलाने की जिम्मेदारी स्पीकर की ही होती है। उसके पास कई विशेषाधिकार होते हैं। इनमें संसद की संयुक्त बैठक बुलाना, विपक्ष के नेता को मान्यता देना, दलबदल कानून के तहत किसी सांसद की सदस्य्ता पर फैसला लेना जैसे शक्तियां शामिल है। यही नहीं संसद में पेश किया गया कोई बिल धन विधेयक हैं की नहीं इसका फैसला भी स्पीकर ही करता है। ऐसे में जाहिर है टीडीपी क्यों स्पीकर पद डिमांड कर रही है।