Mohan Bhagwat Story: परिवार की तीन पीढ़ियां RSS में, डॉक्टर की नौकरी छोड़ संघ से जुड़े, जानिए मोहन भागवत के बारे में सब कुछ

परिवार की तीन पीढ़ियां RSS में, डॉक्टर की नौकरी छोड़ संघ से जुड़े, जानिए मोहन भागवत के बारे में सब कुछ
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Mohan Bhagwat Story

Mohan Bhagwat Story : नई दिल्ली। साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह वो दौर था जब लोगों से उनके सारे अधिकार छीन लिए गए थे। सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबा दिया गया था। आरएसएस पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था और संघ के प्रचारकों के पीछे पुलिस लगा दी गई थी। विपक्ष के कई नेता पहले जी जेल में थे और सरकार किसी भी तरह से विरोध के सुर को दबा देना चाहती थी। यह वो समय भी था जब देश में बड़े बदलाव आ रहे थे और लोगों की जिंदगी में भी। ऐसे ही एक व्यक्ति थे महाराष्ट्र के चंद्रपुर में पशु चिकत्सक के रूप में काम करने वाले मोहन मधुकर भागवत। क्या हुआ था मोहन मधुकर भागवत के साथ और वे संघ से कैसे जुड़े ? उनके परिवार का संघ से क्या कनेक्शन है यह सब जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।

11 सितंबर 1950 को जन्मे मोहन भागवत के पिता का नाम मधुरकरराव भागवत और माता का नाम मालती भागवत था। उनके परिवार का आरएसएस से पुराना नाता रहा है। उनके पिता महाराष्ट्र में चंद्रपुर क्षेत्र में आरएसएस के प्रमुख थे। वे गुजरात में प्रांत प्रचारक के रूप में भी कार्य कर चुके थे। मोहन भागवत अपने परिवार में भाई - बहनों में सबसे बड़े हैं।

मोहन भागवत के पिता का एलके आडवाणी से भी था नाता :

कहानी में आगे बढ़ने से पहले एक रोचक तथ्य भी जान लीजिये। दरअसल, भारत के पूर्व उप - प्रधानमंत्री रहे लाल कृष्ण आडवाणी लंबे समय तक आरएसएस से जुड़े रहे। उनका आरएसएस से परिचय कराने वाले व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि मोहन भागवत के पिता मधुरकर भागवत ही थे।

खैर अब कहानी मोहन भागवत की कहानी में आगे बढ़ते हैं...

मोहन भागवत के माता पिता दोनों ही आरएसएस से जुड़े हुए थे। उनकी तीन पीढ़ियां आरएसएस में एक्टिव रहीं हैं। उनके पिता आरएसएस के प्रचारक थे ही साथ ही उनकी मां मालती भागवत आरएसएस में महिला विंग की सदस्य रहीं हैं। यही नहीं मोहन भागवत के बाबा नानासाहेब भी आरएसएस से जुड़े रहे, उन्होंने केबी हेगडेवार के साथ मिलकर लंबे समय तक काम किया। इस तरह बचपन से ही मोहन भागवत की परवरिश आरएसएस के विचारों के इर्द - गिर्द हुई।

मोहन भागवत कितने पढ़ें लिखे हैं :

ब्राह्मण परिवार में जन्में मोहन भागवत की प्रारंभिक शिक्षा चंद्रपुर के लोकमान्य तिलक स्कूल से हुई। वे पढाई में काफी तेज थे। मोहन भागवत ने स्कूल के बाद जनता कॉलेज चंद्रपुर से बीएससी की पढाई की। इसके बाद उन्होंने पंजाब राव कृषि विद्यापीठ अलोका से पशुचिकित्सक और पशुपालन में स्नातक की डिग्री हासिल की। अब तक मोहन भागवत भी संघ से जुड़ चुके थे। स्नातक के बाद मोहन भागवत ने मास्टर्स की पढाई शुरू कर दी। इसी दौरान वे चंद्रपुर में पशु चिकित्सक के रूप में काम किया करते थे।

संघ में एक्टिव क्यों हुए मोहन भागवत :

मोहन भागवत लम्बे समय तक आरएसएस से जुड़े रहे। छात्र जीवन में भी वे शाखा में हिस्सा लिया करते थे लेकिन स्नातक के बाद वे पशु चिकित्सक के रूप में आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने शायद ही सोचा होगा कि, वे आरएसएस में एक प्रचारक फिर सरसंघचालक जैसी अहम भूमिका निभाएंगे। मोहन भागवत के जीवन में बड़ा बदलाव उस समय आया जब तत्कालीन सरकार ने आपातकाल लगाकर विपक्षी दलों के नेता और आरएसएस कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना शुर किया। मोहन भागवत को महसूस हुआ कि, अब उन्हें आगे आकर कार्य करने की जरुरत है। 1975 के समय वे आरएसएस में एक्टिव हो गए। उन्होंने अपनी मास्टर्स की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और संघ के लिए काम करना शुरू कर दिया।

आपातकाल के समय भूमिगत होकर कार्य किया :

आपातकाल के दौरान जब देश की जेल विपक्षी नेताओं से भर दी गई थी उस समय मोहन भागवत ने भूमिगत होकर संघ के लिए कार्य किया। उनके काम को देखते हुए उन्हें साल 1977 में अलोका का प्रचारक बना दिया गया। उन्होंने महाराष्ट्र के नागपुर और विदर्भ क्षेत्र में भी प्रचारक के रूप में काम किया।

संघ में ये भी जिम्मेदारी निभाई :

आपातकाल बीता और देश में कई सरकारें आई और गई। इधर मोहन भागवत आरएसएस के लिए काम करते रहे। साल 1991 में उन्हें संघ ने बड़ी जिम्मेदारी दी। उन्हें आरएसएस के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का अखिल भारतीय प्रमुख बना दिया गया। साल 1999 तक मोहन भागवत ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई। इसी साल वे पूरे भारत में एक्टिव प्रचारकों के प्रमुख बन गए। इसके बाद साल 2000 में उन्हें बड़ा मौका मिला। आरएसएस के संघ प्रमुख राजेंद्र सिंह (रज्जु भैय्या), और सरकार्यवाहक होवे शेषाद्री ने स्वास्थ कारणों से दायित्व छोड़ने का निर्णय किया। राजेंद्र सिंह और होवे शेषाद्री के बाद एस सुदर्शन और मोहन भागवत को मौका मिला। साल 2000 में एस सुदर्शन को संघ प्रमुख और मोहन भागवत को तीन साल के लिए सरकार्यवाहक बना दिया गया। इसके बाद मोहन भागवत अपने दायित्वों को निभाते रहे।

ऐसे चुने गए मोहन भागवत संघ के प्रमुख :

साल 2009 आते - आते आरएसएस में बड़े बदलाव की मांग उठ रही थी। मोहन भागवत अग्रणी पंक्ति के उन लोगों में शामिल थे जिन्हें अब नए दौर की कमान संभालनी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नागपुर में मीटिंग हुई। यहां संघ प्रमुख सुदर्शन समेत आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे। मीटिंग में एस सुदर्शन ने सरसंघचालक के रूप में मोहन भागवत का नाम प्रस्तावित किया। मोहन भागवत सर्वसम्मति से आरएसएस प्रमुख चुने गए।

जब मोहन भागवत आरएसएस के प्रमुख बने तो वे मात्र 59 साल के थे। वे सबसे कम उम्र के आरएसएस प्रमुख थे। आरएसएस में आने के बाद उन्होंने कई बड़े बदलाव किए जिसमें प्रमुख रूप से पदाधिकारियों के लिए 75 साल की आयु सीमा तय करना और आम लोगों को संघ से जोड़ना शामिल है। बता दें कि, खाकी निक्कर की जगह खाकी पेंट को संघ के ड्रेस कोड में शामिल करने की शुरुआत भी मोहन भागवत ने ही की थी।

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