Shivraj Singh Chauhan Biography: छात्र नेता से सीएम और सीएम से केंद्रीय मंत्री बनने तक, कुछ ऐसा है शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक सफर
Shivraj Singh Chauhan Biography: हाल ही में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य बने हैं। उन्होंने छठे नंबर पर शपथ ली है। इसका मतलब यह है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब मोदी कैबिनेट का अहम हिस्सा हैं।
विदिशा से छठवीं बार सांसद चुने गए शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में भाजपा के सबसे पुराने और वरिष्ठ नेताओंं में एक हैं।
शिवराज सिंह चौहान हाल ही में 2024 के लोकसभा चुनाव में विदिशा सीट से भारी मतों के अंतर से विजयी हुए हैं। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को 8,21,408 वोटों से हराया एवं कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली।
वहीं अगर हम मौजूदा समय में शिवराज सिंह चौहान की राजनीति सफर को देखें तो इनका कद्द बाकी नेताओं से काफी अलग दिखाई देता है। इन्होंने अपने छात्र जीवन से राजनीति की शुरूआत की थी और अभी तक सियासत के कई अहम पदों पर अपनी सेवा दे चुके हैं।
तो चलिए बताते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने अपनी राजनीति सफर कैसे और कब से शुरू की और आज के समय में वो देश के उन कद्दावर नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने राजनीति के शीर्ष पदों पर रहकर अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं।
छोटी उम्र से ही राजनीति में सक्रिय
शिवराज सिंह चौहान का जन्म 5 मार्च 1959 को मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के जैत गांव में हुआ था। शिवराज को लेकर कहा जाता है कि जन्म से ही वो बड़े अच्छे वक्ता हैं। सभाओं में भाषण इतनी शानदार तरीके से देते थे कि उनका मुरीद सभी हो जाते। शिवराज महज 13 साल की उम्र यानी साल 1972 में ही आरएसएस का दामन थाम लिया था। शुरू से ही बीजेपी और आरएसएस की छात्र शाखाओं से जुड़ रहे। इन्होंने अपनी पढ़ाई बरकतुल्लाह विश्वविधालय से दर्शनशास्त्र में की। पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से उन्हें स्वर्ण पदक से भी नवाजा जा चुका है।
जमीन से जुड़े हुए हैं चौहान
शिवराज सिंह चौहान को जमीन से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है। ये जनता के साथ काफी कनेक्ट रहते हैं, यही वजह है कि राज्य की जनता भी उन्हें बहुत प्यार करती है। ये पूरे देशभर में 'मामा' के नाम से मशहूर हैं। शिवराज एमपी के 4 बार सीएम रह चुके हैं। ये बीजेपी के सबसे लंबे समय तक सीएम पद पर रहने वाले नेता हैं। इसके अलावा शिवराज सिंह चौहान 5 बार सांसद और 5 बार विधायक रह चुके हैं।
बता दें कि जिस संसदीय क्षेत्र को वो पांच बार प्रतिधित्व कर चुके हैं इसी सीट से बीजेपी ने इन्हें उम्मीदवार बनाया है।
बुधनी से लड़ा अपना पहला चुनाव
शिवराज सिंह चौहान ने अपना पहला चुनाव बुधनी विधानसभा सीट से साल 1990 में लड़ा था। लेकिन ठीक इसके अगले साल यानी साल 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी आलाकमान ने उन्हें जनरल इलेक्शन में खड़ा किया।
दरअसल, इस सीट से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अटल बिहार वाजपेयी सांसद रह चुके हैं। लेकिन 1991 के आम चुनाव में अटल जी ने दो लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, पहला लखनऊ तो दूसरा विदिशा। इसे लेकर अटल बिहारी जी ने कहा था कि जिस सीट पर उन्हें ज्यादा मतों से जीत मिलेगी वो उसका प्रतिनिधित्व करेंगे। इस चुनाव में अटल जी को लखनऊ सीट से प्रचंड जीत मिली थी।
जबकि विदिशा सीट पर उन्हें थोड़ी कम वोट मिली थी लेकिन जीत दर्ज करने में कामयाब हो गए थे। अपनी बात पर अमल करते हुए अटल जी ने विदिशा लोकसभा सीट छोड़ दी। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस सीट पर चुनाव लड़ाने के लिए नेताओं की खोज करने लगे। तमाम खोजबीन के बाद शिवराज सिंह चौहान का नाम का एलान किया गया।
विदिशा लोकसभा सीट से शिवराज पहली बार साल 1991 में खड़े हुए और अपनी पहली संसदीय चुनाव में उन्होंने भारी मतों से जीत हासिल की। ये जीत का कारवां चलता रहा। बता दें कि विदिशा लोकसभा सीट से शिवराज सिंह चौहान 1991 के अलावा 1996, 1998, 1999 और 2004 में चुने जा चुके हैं।
आखिरी बार शिवराज सिंह चौहान ने साल 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था। सांसद रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने साल 2003 में हुए एमपी विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह के सामने राघौगढ़ से मैदान में रहे। इस चुनाव को लेकर कहा जाता है कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के एक शब्द कहने पर शिवराज दिग्गी के सामने चुनाव लड़ने को तैयार हो गए थे। उन्हें पता था कि वो सिंह के गढ़ में चुनाव नहीं जीत पाएंगे। अगर हार होती है तो उनकी राजनीति करियर समाप्त हो सकती है। इसके बावजूद उन्होंने चुनाव लड़ा।
दिग्गी के सामने चुनाव लड़ना शिवराज के लिए कितना फायदेमंद?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो शिवराज का दिग्विजय सिंह के सामने खड़ा होना मिल का पत्थर साबित हुआ और यहीं से उनकी सियासत में पकड़ बननी शुरू हो गई। साल 2003 के विस चुनाव में दिग्विजय सिंह के सामने शिवराज सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। ये हार शिवराज के करियर का पहला और अब तक का इकलौता रहा। हालांकि भले ही शिवराज की हार इस चुनाव में हुई लेकिन पार्टी विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल कर प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही और प्रदेश की कमान हिंदूवादी नेता उमा भारती के हाथ में सौंप दी।
हालांकि उमा अपने हिंदूवादी और विवादित बयानों की वजह से विपक्ष के निशाने पर आने लगी। जिसका असर पार्टी शीर्ष नेतृत्व पर भी पड़ने लगा। जिसको देखते हुए बीजेपी आलाकमान ने उन्हें सीएम पद हटाकर बाबूलाल गौर को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। उमा महज आठ महीने तक ही सीएम पद पर रही थीं।
वहीं बाबूलाल गौर को सीएम बनना पार्टी के कुछ नेताओं को रास नहीं आया उन्होंने बगावत शुरू कर दी। जिसको देखते हुए पार्टी ने एक बार फिर से नए चेहरे की तलाश में जुट गई। खूब खोजबीन के बाद आखिरकार शिवराज सिंह चौहान का नाम पार्टी ने सामने रखा।
अटल-आडवाणी ने निभाई अहम भूमिका
इस पूरे घटनाक्रम के सूत्रधार अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी रहे। जिन्होंने शिवराज सिंह चौहान को सामने लाया। कहा जाता है कि शिवराज सिंह चौहान को उस घटना का तोहफा मिला जब दिग्विजय सिंह के सामने कोई नेता खड़ा नहीं हो रहा था उस समय पार्टी की लाज रखने के लिए शिवराज ने राधौगढ़ से चुनाव लड़ा था। जिसका ख्याल रखते हुए अटल जी और आडवाणी ने सीएम बनाने को तैयार हुए।
पहली बार शिवराज सिंह चौहान ने बतौर एमपी के सीएम 29 नवंबर 2005 को शपथ ली और इसी साल उन्होंने बुधनी से उपचुनाव लड़ा और 30 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की। इसके बाद साल 2008 और 2013 में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने।
छठी बार विदिशा का प्रतिनिधित्व करेंगे शिवराज?
हालांकि, साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत हासिल नहीं हुई और कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बना ली। लेकिन साल 2020 में सियासी उठापटक और ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों के खेमा बदलने की वजह से कांग्रेस की सरकार 15 महीने के अंदर ही गिर गई और 23 मार्च 2020 को एक बार फिर से शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के सीएम बने। यह चौथी बार था जब शिवराज ने यह पदभार संभाला।
वहीं बीते साल यानी साल 2023 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए। जिसमें बीजेपी को प्रचंड जीत मिली लेकिन पांचवीं बार शिवराज सीएम बनने से चूक गए और शीर्ष नेतृत्व ने डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री के लिए चूना। चार बार के सीएम 5-5 बार के सांसद और विधायक रहे शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर विदिश से भारी बहुतमत से विजय प्राप्त की और छठीं बार सांसद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
मामा और भैया के नाम से हैं प्रसिद्ध
"मामा" (मामा) का संबोधन विशेष रूप से तब प्रचलित हुआ जब उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए लड़कियों और महिलाओं के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। सबसे प्रसिद्ध योजना "लाड़ली लक्ष्मी योजना" है, जिसके तहत बेटियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के बाद लड़कियों और उनके परिवारों ने शिवराज सिंह चौहान को स्नेहपूर्वक "मामा" कहना शुरू कर दिया।
शिवराज सिंह चौहान को "भैया" (भाई) बुलाया जाना उनके आत्मीय और सरल स्वभाव के कारण है। मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना लाकर शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की लाखों महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान जिसके बाद उन्हें सभी महिलाओं ने भैया कहकर संबोधित किया।