सिब्बल ने दिए सैद्धांतिक लड़ाई के संकेत, ट्वीट करके कहा मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ
नई दिल्ली। संगठन में बड़ी शक्ति है। लेकिन, अगर संगठन में असहमति हो तो उसमें विरोध के स्वर उठने लगते हैं और विरोध को विद्रोह की स्थिति में बदलने में फिर ज्यादा समय नहीं लगता। यही स्थिति आजकल कांग्रेस में है, जहां विद्रोह की चिनगारी भड़क चुकी है और माना जा रहा है कि यह चिनगारी कभी भी विकराल रूप धारण कर सकती है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में 23 नेताओं की आवाज भले ही दबा दी गई हो लेकिन मामला अभी फिलहाल शांत नहीं हुआ है। बुधवार को पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के ट्वीट ने आग में घी का काम कर दिया।
कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर पार्टी आलाकमान को सीधे चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि सिद्धांत के लिए लड़ाई में विरोध स्वत: आता है जबकि समर्थन जुटाया जाता है। कांग्रेस के अंदर चल रहे कामकाज के तौर तरीके के विरोध में 23 नेताओं की चि के बाद इस ट्वीट को बड़ा जवाबी हमला माना जा सकता है।
When fighting for principles
— Kapil Sibal (@KapilSibal) August 26, 2020
In life
In politics
In law
Amongst social activists
On social media platforms
Opposition is often voluntary
Support is often managed
दरअसल, सोमवार को जिस तरह कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं द्वारा तैयार किए गए लैटर बम को डिफ्यूज किया गया था, इस ट्वीट को उसका जवाब माना जा रहा है। सिब्बल ने परोक्ष रूप से इशारा कर दिया है कि कांग्रेस के अंदर बड़ी संख्या में लोग हैं, जो चि_ी में उठाए गए मुद्दे के साथ हैं। प्रबंधन के जरिए भले ही उसे खारिज कर दिया जाए, लेकिन मुद्दा खत्म नहीं हुआ है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अनुशासनहीनता खुलकर दिखी तो पार्टी के अंदरूनी मुद्दे पार्र्टी फोरम से बाहर चले गए। बैठक के बाद जो चुप्पी पार्टी नेताओं ने साध रखी थी सिब्बल उसका भी काम तमाम कर दे रहे हैं। है। सिब्बल के ट्वीट से अब यह बात साफ हो गई है कि अंदर उबाल है और यह तभी खत्म होगा जब सुधार होंगे। यानि बिना सुधार के अब गुंजाइश नहीं की स्थिति निर्मित हो गई है। सिब्बल ने अपनी दलील को अब सैद्धांतिक चोला पहना दिया है। संकेत साफ है अगर इस चोले को हटाया गया तो पार्टी का खेल खत्म। उन्होंने अधिकार की लड़ाई को सिद्धांत की लड़ाई से जोड़ दिया है। अर्थात जिंदगी हो या राजनीति या कानून का क्षेत्र, विरोध स्वत: होता है, जबकि समर्थन प्राय: प्रबंधन के जरिए जुटाया जाता है।
विरोध की कड़ी में सिब्बल के अलावा आनंद शर्मा, विवेक तन्खा सरीके नेता भी शामिल हैं लेकिन इन्होंने वो दम नहीं दिखाया जो सिब्बल ने दिखाया है। शायद इसके पीछे सिब्बल की बेबाकिता है। उन्होंने कहा कि मुझे किसी पद की लालसा नहीं है। सूत्रों का कहना है कि चुप्पी के बावजूद कांग्रेस के दिग्गज नेता अंदरूनी तौर पर तालमेल बिठाने में लगे हैं। इसके लिए पार्टी की ओर से अगले छह महीने के अंदर बदलाव की बात कही गई है। पूर्णकालिक अध्यक्ष चुने जाने का आश्वासन दिया गया है। बहुत जल्द रोजमर्रा के कामकाज के लिए समिति के गठन की भी बात हुई है। इन सब बातों का इंतजार है। फैसला नेतृत्व को लेना है कि कितना सकारात्मक बदलाव होता है। पार्टी को एकजुट रखने के लिए क्या कदम उठते हैं और संयुक्त निर्णय से सही दिशा चुना जाता है या नहीं।