लखनऊ: सोशल वर्कर गरिमा सिंह पांच साल से करवा रही हैं किन्नर भोज…

सोशल वर्कर गरिमा सिंह पांच साल से करवा रही हैं किन्नर भोज…
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'सनातन परंपरा में किन्नरों को माना गया है उप देवता'। समाज में लिंग आधारित भेदभाव को ख़त्म करने के लिए गरिमा सिंह की अच्छी पहल गरिमा सिंह ने कहा-धार्मिक ग्रंथ भी किन्नरों को हेय दृष्टि से देखने की इजाजत नहीं देते।

लखनऊ। हमारे समाज का ताना-बाना मर्द और औरत से मिलकर बना है, लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है, इसकी पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता, समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या हिजड़े के नामसे जाना जाता है। पूरे समाज में इनके दिल की बात और आवाज़ कोई सुनना नहीं चाहता क्योंकि पूरे समाज के लिए इन्हें एक बदनुमा दाग़ समझा जाता है, लोगों के लिए ये सिर्फ़ हंसी के पात्र हैं।

लेकिन, हाल ही में उनकी जिंदगी में झांकने की कोशिश की है लखनऊ की सोशल वर्कर गरिमा सिंह ने उनकी जिंदगी के जो रंग आज तक किसी ने नहीं देखे थे उन रंगों को समाज में गरिमा सिंह ने दिखाया है, गरिमा बीते 5 वर्षों से किन्नरों के हक के लिए संघर्ष कर रही है। किन्नरों के मान सम्मान के लिए वह प्रतिवर्ष नवरात्र के समापन अवसर पर किन्नर अर्धनारीश्वर भोज का आयोजन करती है। इस बार भी गरिमा सिंह ने नवरात्र समापन के मौके पर गोमती नगर एक्सटेंशन, होटल द लीफ में किन्नर भोज का आयोजन करके उन्हें भोजन कराकर सम्मानित किया। गरिमा ने किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उनका सम्मान करके प्रदेश व देश में एक अच्छा संदेश दिया।

समाज में लिंग के आधार पर कार्य में भेदभाव : समाज हर तरह के लोगों से मिलकर बनता है, जिसमें अलग-अलग लोगों काभिन्न–भिन्न पेशा होता है। जिसका सम्मान करना सबका दायित्व बनता है। लेकिन समाज में लिंग के आधार पर कार्य में भेदभाव आमतौर पर देखने को मिलता है। समाज में आज भी किन्नर समुदाय को सम्मान या दर्ज़ा नहीं दिया गया है, जो समाज में रहने वाले आम नागरिकों के पास मौजूद है। यह वही किन्नर समुदाय है जो लोगों की छोटी से बड़ी खुशियों में शामिल होता है। लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाता है। समाज कहता है कि किन्नर द्वारा दिया गया आशीर्वाद बहुत शुभ होता है। इसके बावजूद भी समाज में उन्हें सम्मान ना मिलना, समाज में रहने वाले लोगों की दोहरी मानसिकता को साफ़ तौर पर दर्शाता है।

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