102 वीं जन्म वर्षगांठ पर विशेष: शताब्दी पुरुष रणबंका रणमलसिंह की कहानी, देश के लिए पत्‍नी के जेवर तक दान कर दिए...

शताब्दी पुरुष रणबंका रणमलसिंह की कहानी, देश के लिए पत्‍नी के जेवर तक दान कर दिए...
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शताब्दी पुरुष रणबंका रणमलसिंह की कहानी

स्वतंत्रता सेनानी व समाज सुधारक,पूर्व सैनिक व अध्यापक, पूर्व प्रधान व विधायक, जिले के सहकारिता आंदोलन के पुरोधा, सदैव संघर्षरत योद्धा ,शताब्दी पुरुष, रणबंका रणमलसिंह देश के सच्चे प्रेमी हैं। उन्होंने देश के लिए अपनी पति के गहने भी दान दे दिए थे। - कर्नल राजेश भूकर।

रणबंका रणमलसिंह का जन्म 22 अगस्त,1923 को सीकर संभाग के निकटवर्ती ग्राम कटराथल में एक किसान परिवार में हुआ। सन् 1941 में उन्होंने वर्नाकुलर फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की। पढ़ाई में वे बहुत अच्‍छे थे। उनके सहपाठी तथा छात्रावास सहवासी शिक्षाविद मोतीसिंह राठौड़ अपनी आत्मकथा 'मेरी जीवन -यात्रा' में लिखते हैं -'छात्रावास के रणमल नाम के छात्र से मेरी अच्छी पटने लगी। वह कटराथल का था। पढ़ने में अच्छा था।..थोड़े दिनों में मैं और रणमल एक ही सीट पर बैठने लगे।'

सन् 1949 में प्रकाशित' रियासती भारत के जाट जनसेवक' के लेखक प्रख्यात इतिहासकार ठाकुर देशराज लिखते हैं- 'रणमल सिंह के लेक्चर सुने। वे अच्छा बोलते हैं और संयम के साथ बोलते हैं। बोलने से ज्यादा सोचते हैं। यह रणमलसिंह जी की विशेषता है।'

आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए पद से इस्तीफा :

सन 1941 में स्कूल से वर्नाकुलर फाइनल परीक्षा पास करने के पश्चात रणबंका रणमलसिंह सर्वप्रथम कोटड़ी धायलान में ठिकाने की स्कूल में शिक्षक बने। लगभग तीन साल अध्यापक रहने के बाद आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने अध्यापक पद से इस्तीफा देकर वे प्रजामंडल में शामिल हो गए।

निर्विरोध सरपंच चुने गए :

मोल्यासी ग्राम में सभा के दौरान हुए हमले में रणबंका रणमलसिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। आजादी के समय वे सेना में भर्ती हो गए। लगभग सात साल सेवा में रहने के पश्चात् उन्हें आरक्षित पेंशन पर सन् 1954 में भेज दिया गया। सन् 1955 में वे ग्राम पंचायत, कटराथल के निर्विरोध सरपंच चुने गए। रणबंका रणमलसिंह पांच बार सरपंच रहे।

देश के लिए पत्नी के आभूषण दान :

सन् 1962 के युद्ध में रणबंका रणमलसिंह पुनः सेना में शामिल होकर देश की के लिए लड़ाई लड़ी तथा अपनी धर्मपत्नी के आभूषण भी रक्षा कोष में दान कर लिए। वे पंचायत समिति, पिपराली के 12 वर्ष तक प्रधान रहे। सन् 1972 में सीकर जिला कलेक्टर, पीएन भंडारी थे। उन्होंने जिले में नवाचारी पहल करते हुए अकाल राहत में चार हजार निजी कुओं का निर्माण करवाया। कलेक्टर भंडारी को यह राय रणमलसिंह ने दी थी। भंडारी ने लिखा है- 'विकास की इस अनूठी योजना की परिकल्पना व क्रियान्विति में श्री रणमलसिंह जी का योगदान अग्रणी था। वे उस समय पिपराली पंचायत समिति के प्रधान थे।'

आपातकाल के बाद में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर में भी वे सीकर से कांग्रेसी उम्मीदवारी से विधायक चुने गए। जिले के सहकारिता आंदोलन के वे पुरोधा हैं। जिले की लगभग सभी शीर्ष सहकारी संस्थाओं के अध्यक्ष रह चुके हैं। सहकारिता के क्षेत्र में उनकी उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए सन् 2011 में उन्हें दो लाख का 'जवाहरलाल नेहरू इफ्को सहकारिता रत्न पुरस्कार' दिया गया।

जिले की अनेक सामाजिक संस्थाओं से वे जुड़े रहे। जिले की महिला शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी 'ग्रामीण महिला शिक्षण संस्थान,शिवसिंहपुरा, सीकर 'के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। वे कई वर्ष पूर्व तक'जाट बोर्डिंग हाउस समिति' के अध्यक्ष रहे। रणमलसिंह ईमानदारी , कर्मठता, स्वच्छता, स्पष्टवादिता व सादगी के प्रतिमान पुरुष हैं ।

कट्टर आर्य समाज रणमल सिंह अंधविश्वास एवं आडंबर की घोर विरोधी हैं तथा 'काम ही राम है ' ,में विश्वास रखते हैं । वे शेखावाटी- कोश हैं । उन्हें 95 वर्ष पूर्व तक की घटनाएं आज भी याद हैं । यजुर्वेद की ऋचा 'कुर्वन्नेवेह कर्मणा जिजीविषेत् शतं समा:'( सौ वर्ष तक काम करते हुए जीने की इच्छा करें) को जीवन में उतारने वाले रणमलसिंह जी 101वर्ष की आयु में भी मस्त- स्वस्थ हैं।

सन् 2015 में उनका सीकर में भव्य अभिनंदन समारोह सर्व समाज द्वारा आयोजित किया गया था। उस समय अभिनंदन ग्रंथ' शताब्दी पुरुष रणबंका रणमलसिंह ' प्रकाशित किया गया। ग्रंथ के संपादक दयाराम महरिया द्वारा दिए गए शीर्षक के अनुरूप वे खरा उतरकर आज 101 वर्ष के हो गए हैं ।

हमारे शास्त्रों में सौ वर्ष पूर्ण करने पर 'स्वर्ण स्नान समारोह' का उल्लेख है वे तो आज 101 वर्ष के हो गए। इसी तरह वे स्वस्थ रहकर लिविंग लीजेंड (जीवित आख्यान) बने हुए हैं।

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