न्याय के विरुद्ध युद्ध और शांति का अमर सन्देश: मानवता, धर्म व राष्ट्र की रक्षा को समर्पित गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन…
तरुण चुग: दशम पिता दशमेश गुरु गोबिंद सिंह जी, न केवल एक धार्मिक गुरु थे बल्कि एक कुशल योद्धा, प्रखर विचारक और कवि भी थे। उनका जीवन और कार्य आज भी दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी को साहबे-कमाल, सर्वदानी राष्ट्रनायक, संत-सिपाही, महान दार्शनिक और शीर्ष राजनेता के रूप में पहचाना जाता है, जिन्होंने भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की। उनके आदर्शों के सामने आज भी पूरी दुनिया शीश झुकाती है।
गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन में बचपन से ही उनके जीवन में असाधारण घटनाएँ घटित हुईं। उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी की शहादत ने उन्हें युवा आयु में ही गुरुत्व का पद संभालने को प्रेरित किया। गुरु जी ने धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और सिख धर्म को संत योद्धा कि पहचान दी।
गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता “हिन्द की चादर" गुरु तेग बहादुर साहिब जी द्वारा हिंदू धर्म की रक्षा के लिए दी गयी शहादत को सदियों तक याद किया जायेगा, जब औरंगजेब के आततायी शासन द्वारा सताए गए कश्मीरी पंडितों ने श्री आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर जी के पास शरण ली, तो उस समय गुरु तेग बहादुर साहिब ने कहा कि एक महान आत्मा को सिर देने की जरूरत है।
महज नौ साल के गोबिंद रॉय ने कहा, अगर सिर देकर उनका धर्म बचाया जा सकता है तो यह सौदा महंगा नहीं है, एक बलिदानी से महान व्यक्ति कौन हो सकता है? जिस पर गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों से कहा कि औरंगजेब से कहो कि पहले गुरु तेग बहादुर को मुसलमान बनाये, फिर हम भी मुसलमान बन जायेंगे।
दिली में गुरु साहिब ने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया और 11 नवंबर 1675 को कश्मीरी पंडितों की रक्षा में शहीद हो गए।
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की, जो एक महत्वपूर्ण क्षण था जिसने सिख धर्म को एक नई दिशा दी। गुरु जी ने जात-पात की बेड़ियों को तोड़ा और समानता, भाईचारे और धर्म की रक्षा के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने मध्यकाल में खालसा की स्थापना करके एशिया में लोकतांत्रिक विचारों की नींव रखी थी।
भारतीय लोकतंत्र आज भी उन्हीं मूल्यों को मजबूत कर रहा है, जहां जाति, वर्ण, या ऊंच-नीच के भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अन्याय के विरुद्ध जो आंदोलन शुरू किया, उसने असहाय लोगों को न केवल शक्ति प्रदान की बल्कि उस समय की सत्ता के अत्याचारों के खिलाफ एकजुट भी किया। उन्होंने न केवल धार्मिक स्वतंत्रता दी, बल्कि गरिमा के साथ जीने की कला भी सिखाई।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में अपने पिता की बाणियों को शामिल किया और इसे अंतिम गुरु के रूप में स्थापित किया। उनके द्वारा रचित 'दशम ग्रंथ' में 'जाप साहिब', 'तव-प्रसाद सवैये', और 'चौपाई' जैसी रचनाएँ शामिल हैं, जो न केवल धार्मिक बल्कि दार्शनिक महत्व की भी हैं। उनकी रचनाएँ न केवल धार्मिक बल्कि दार्शनिक महत्व की भी हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन कई युद्धों और राजनीतिक उथल-पुथल से भरा पड़ा था। उन्होंने अपने शासनकाल में अन्याय के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं और सिखों को एक मजबूत सामरिक शक्ति के रूप में संगठित किया।
उनके नेतृत्व में सिखों ने मुगलों और अन्य राज्यों की सेनाओं का सामना किया और अपनी धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए खड़े हुए। गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहसी पुत्र थे, जिन्हें साहिबजादे कहा जाता है। उनके नाम अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह और जोरावर सिंह थे। इन वीर साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
बाबा फतेह सिंह और बाबा जोरावर सिंह को मुगल शासकों ने सरहिंद में दीवार में चिनवा दिया, जबकि बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने युद्धभूमि में वीरता के साथ अपनी जान दी।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पुत्रों की शहादत पर गर्व का भाव व्यक्त किया और कहा: "मैंने अपने चारों पुत्रों को धर्म के नाम पर कुर्बान किया है। चारों का जाना मुझे व्यथित नहीं करता, क्योंकि उनके बलिदान से हजारों जिंदा हैं।"
इस प्रकार, उनकी वीरता और बलिदान को सम्मान के साथ याद किया जाता है, और वे सिख समुदाय के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।
इन पुत्रन के सीस पर वार दिए सुत चार ।
चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार ।।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात को सुनिश्चित किया है कि हमारे देश की युवा पीढ़ी साहिबज़ादों की शहादत से प्रेरित हो और उनके आदर्शों को अपनाकर एक मजबूत और विकसित भारत की नींव रखे। 'वीर बाल दिवस' की स्थापना इसी संकल्प को पूरा करने का एक कदम है, जिससे हमारे युवा इतिहास के इन महान बलिदानियों से प्रेरणा ले सकें।
गुरु गोबिंद सिंह जी की विरासत आज भी विश्वभर में सिख समुदाय के लिए प्रेरणादायक है। उनके आदर्श और शिक्षाएं सहिष्णुता, न्याय, और समानता के मूल्यों को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने दिखाया कि कैसे एक नेता को अपने लोगों की रक्षा के लिए स्वयं के बलिदान की आवश्यकता होती है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से यह दिखाया कि सच्चा नेतृत्व वह है जो न्याय के लिए लड़ता है और सदैव धर्म और सत्य के मार्ग पर चलता है। उनकी शिक्षाएँ और आदर्श आज भी हमें एक बेहतर समाज की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी और विचार हमें सिखाते हैं कि "देह शिवा वर मोहि इहै, शुभ करमन ते कभूं न डरूँ" अर्थात हमें हमेशा नेक कर्म करते रहना चाहिए, भले ही परिणाम कुछ भी हो। उन्होंने कर्म की प्रधानता, सिद्धांतों की महत्ता, समता, निर्भयता और स्वतंत्रता का संदेश देकर समाज को एकता के सूत्र में बाँधा। उन्होंने कभी भी मानवीय और नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया। आज के समय में भी हमें उनके दिखाए मार्ग पर चलकर सभी धर्मों, समाज और भाईचारे को मजबूती प्रदान करते हुए एक उत्कृष्ट भारत के निर्माण में सहयोग करना चाहिए।
वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह!