भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा का रहस्य: जानें भाई-बहन के अमर बंधन और कर्मों के लेखा-जोखा की दिव्य कहानी…

जानें भाई-बहन के अमर बंधन और कर्मों के लेखा-जोखा की दिव्य कहानी…
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भाई दूज(यम द्वितीया) का माहात्म्य और भगवान् चित्रगुप्त का अवतरण

डॉ. आनंद सिंह राणा: भगवान् श्रीराम ने दशहरा में रावण और भगवान् श्रीकृष्ण ने दीपावली के दूसरे दिन इंद्र का अहंकार समाप्त किया। दीपावली के तीसरे दिन भाई दूज (यम द्वितीया) और भगवान् चित्रगुप्त का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। भगवान् यमराज ने अपनी बहिन यमुना (दोनों सूर्य और संज्ञा की संतानें) के यहाँ वर्षों बाद भोजन किया और यमुना ने इस मिलन को अमर बनाने के लिए अपने भाई यमराज से अपनी रक्षा के वरदान के साथ यह भी माँगा कि "आज के दिन जो भी भाई अपनी बहिन के यहाँ प्रवास कर भोजन प्रसाद ग्रहण करेगा और रक्षा का वचन देगा, यमराज सदैव उन भाई बहिनों की रक्षा करेंगे और उनको नर्क नहीं ले जायेंगे।" इस अवसर पर यदि यमुना में स्नान के बाद ये उपक्रम किया जाये तो उनको स्वर्ग प्राप्ति होगी। यमराज ने स्वीकार किया और वचन दिया।भाई-बहन के अमर प्रेम की यह महान् तिथि ही यम द्वितीया (भाई दूज) के नाम से जानी जाती है। तब से ये प्रथा अमर हो गई।

द्वापर युग में भगवान् श्रीकृष्ण ने नरकासुर के वध के उपरांत यम द्वितीया को उसी परंपरा को शिरोधार्य करते हुए अपनी बहिन सुभद्रा के बुलावे आज भाई दूज के दिन अनुष्ठान किया।

वहीं यम द्वितीया तिथि में भगवान् चित्रगुप्त का अवतरण हुआ। धर्मराज ने सभी के कर्मों के लेखा जोखा के लिए ब्रम्हा जी से योग्य व्यक्ति की मांग की थी तब ब्रम्हा ने अपनी काया के स्वरुप के प्रतिफल में कायस्थ चित्रगुप्त को अवतरित किया। भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं। ब्रम्हा की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुई थी। इन्होंने सृष्टि की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व-अप्सरा, स्त्री-पुरुष पशु-पक्षी और पेड़ - पौधों को जन्म दिया। इसी क्रम में भगवान् यमराज का भी प्राकट्य हुआ। जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। भगवान् धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तब एक लंबे अंतराल के बाद भगवान् चित्रगुप्त का अवतरण हुआ। चूँकि भगवान् चित्रगुप्त का प्राकट्य ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये।

भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की पुस्तक, लेखनी, दवात और करवाल है। ये उत्कृष्ट लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। इसलिए भगवान् चित्रगुप्त सनातन धर्म में न्याय ब्रम्ह के रुप में प्रतिष्ठित हैं।

यम द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके या उनके चित्र रखकर श्रद्धावनत् होकर पुष्प, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर के साथ पकवान, मिष्ठान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करना चाहिए। इस पुनीत तिथि को यमराज और चित्रगुप्त की आराधना एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नर्क का फल भोगना नहीं पड़ता है। यहां उल्लेखनीय है कि यमी का विवाह देवताओं के लेखपाल चित्रगुप्त के साथ हुआ था। जिस कारण चित्रगुप्त और यमराज में बहनोई का रिश्ता है।

वैज्ञानिकता की दृष्टि से आधुनिक विज्ञान ने भी यह प्रमाणित किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गूढ़ रुप से एकत्रित करके रखते हैं, अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं, तथा इन्हीं के आधार पर जीवों के स्वर्ग - नर्क व पुनर्जन्म का निर्णय भगवान चित्रगुप्त जी करते हैं। विज्ञान ने निर्विवाद रुप से यह स्वीकार किया है कि मृत्यु के उपरांत भी जीव का मस्तिष्क कुछ समय तक कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इस संदर्भ में यह भी सत्य है कि मृत्यु के पूर्व भी भगवान् चित्रगुप्त जीवन की दृश्यावली दिखाते हैं तथा मृत्यु का संकेत देते हैं।यह हजारों वर्ष पूर्व से हमारे शास्त्रों में उल्लिखित है।भगवान चित्रगुप्त जी ही सृष्टि के प्रथम न्यायब्रह्म हैं।

--------------डॉ. आनंद सिंह राणा, विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।

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