परिवहन मंत्री बदलेंगे निजी स्टाफ, आयुक्त कार्यालय पुरानों के सहारे
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भोपाल, विशेष संवाददाता। कमलनाथ सरकार में रहते परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने जिस निजी स्टाफ के भरोसे परिवहन और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण विभाग चलाए थे, नई सरकार में पुन: उन्हीं विभागों के मंत्री बनने के बाद बताया जा रहा है कि अब वह निज सहायक और विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी जैसे अपने निजी स्टाफ को काफी हद तक परिवर्तित करने जा रहे हैं। लेकिन मप्र परिवहन विभाग की प्रमुख शाखाओं में कई वर्षों से एवं कुछ खास कुर्सियों पर जमे बैठे कई अधिकारी और कर्मचारी वरिष्ठ अधिकारियों की अपेक्षाओं की पूर्ति और मजबूत राजनीतिक पकड़ के चलते न तो स्थानांतरित ही किए गए हैं और न ही इनकी शाखाएं ही बदली गई हैं। यही कारण है कि यह अधिकारी और कर्मचारी निरंकुश होकर खुलेआम घूसखोरी में जुटे हैं और विभाग की प्रमुख शाखाओं में पदस्थ रहकर दलालों के सहयोगी की तरह काम कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि विगत दिवस राज्य सूचना आयोग के माध्यम से शहडोल जिले में परिवहन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से उजागर हुआ 'कर' चोरी का मामला विभागीय अधिकारियों और कंपनियों द्वारा नियुक्त दलालों की मिली भगत से ही जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने आयोग की सुनवाई में दावा किया कि उनके पास इस बात के प्रमाण हैं कि वाहन एजेंसियों और विभाग के बीच खरीदे गए वाहनों के दो अलग-अलग बिल काटकर सरकार को राजस्व घाटा पहुंचाया जा रहा है। यह स्थिति सिर्फ शहडोल जिले की नहीं होकर प्रदेशभर में प्रत्येक जिले की है। ऐसा नहीं कि परिवहन आयुक्त से लेकर क्षेत्रीय या जिला परिवहन कार्यालयों में बैठे अधिकारी इस तरह की अनियमितता से अनभिज्ञ होते हैं, बल्कि वास्तविकता यही है कि इस तरह की मोटी ऊपरी कमाई के लिए एजेंसियों द्वारा नियुक्त दलालों से सांठगांठ कर अधिकारी इस तरह की गड़बडिय़ां खुद ही करवाते हैं।
जिलों में बाबुओं से ज्यादा दलाल चल रहे शाखा
प्रदेशभर के क्षेत्रीय और जिला परिवहन कार्यालयों में शासकीय स्टाफ की भारी कमी बताई जाती है। ऐसी स्थिति में कई जिलों में अधिकांश शाखाएं दलालों के भरोसे ही संचालित हो रही हैं। परिवहन अधिकारियों ने कई गैर-सरकारी व्यक्तियों को प्रमुख शाखाओं का जिम्मा सौंप दिया है, जो सरकारी कुर्सियों पर बैठकर परमिट, लायसेंस जैसे कामों के लिए खुलेआम सौदेबाजी कर रहे हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कई बाहरी व्यक्ति तो इतने लम्बे समय से शाखाएं देख रहे हैं, विभाग से संबंधित काम के लिए परिवहन कार्यालय पहुंचने वाले आमजन को यह भी पता नहीं होता कि वह बाबू शासकीय कर्मचारी है अथवा बाहरी व्यक्ति। अधिकारियों से इसकी शिकायत की भी जाती है तो अधिकारियों के शाखा में पहुंचने से पहले ही यह उठकर गायब हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में वाहन पंजीयन, वाहन चालक लायसेंस, वाहन परमिट, फिटनेश जैसे कामों के लिए शाखाओं में नियुक्त दलालों द्वारा खुलेआम रिश्वत ली जा रही है। इस प्रक्रिया में अधिकारी या कर्मचारी साफ बच निकलते हैं, लेकिन सच यह है कि कार्यालयों में सक्रिय इन दलालों को रिश्वत दिए बिना आमजन के काम सिर्फ फाइलों में ही दबे पड़े रहते हैं।
परिवहन में इस तरह भी हो रही 'कर' चोरी
विभिन्न जिलों में दो पहिया, चार पहिया एवं भारी वाहन बेचने वाली वाहन एजेंसियों को स्थानीय परिवहन विभाग द्वारा वाहनों की विक्री हेतु अनुमति लेनी होती है। एजेंसी जितने वाहन शोरूम में रखेगी, उसके हिसाब से उसे शासन को 'कर' चुकाना होता है। शोरूम में विक्री हेतु रखे जाने वाले वाहनों की संख्या के हिसाब से राशि जमा कराए जाने के बाद परिवहन विभाग एजेंसी को अस्थायी (टेम्प्रेरी) नंबर जारी करता है। यह अस्थायी नंबर वाहन पर तब तक रहता है, जब तक वाहन का पंजीयन होकर नया स्थायी नंबर नहीं मिल जाता। नियमानुसार विभाग द्वारा जारी प्रत्येक अस्थायी नंबर को एजेंसी सिर्फ एक वाहन को ही जारी कर सकती है, लेकिन वाहन एजेंसियां एक ही समय में एक ही नंबर को एक से अधिक वाहनों को जारी कर देती हैं। इससे शासन को कई गुना अधिक नुकसान होता है। खास बात यह है कि विभाग द्वारा जारी अस्थायी नंबरों से अधिक वाहन एजेंसी पर रखे पाए जाते हैं तो विभाग एजेंसी निरस्त किए जाने अथवा भारी अर्थदण्ड जैसी कार्रवाई कर सकता है, लेकिन दो पहिया वाहनों से लेकर भारी वाहनों तक की एजेंसियों पर जारी अस्थायी नंबरों से कई गुना अधिक वाहन शोरूम में सजे रहते हैं, लेकिन विभागीय अधिकारियों से सांठगांठ के चलते अधिकारी, एजेंसी मालिक, दलाल सभी का फायदा होता है। नुकसान तो सिर्फ सरकार का ही होता है, जिसे एजेंसियों के मालिक राजनेता और अधिकारी मिलकर चला रहे हैं।
अस्थायी पंजीयन पर गाड़ी चलाना हुआ अपराध
वाहनों की नंबर प्लेट पर अस्थायी पंजीयन नंबर लिखे कागज चिपकाकर वाहन चालना अब अपराध हो चुका है। देशभर में वाहनों के नंबर प्लेट में एकरूपता लाने के लिए सरकार ने 11 श्रेणियों के वाहनों के नंबर प्लेट पर लिखे जाने वाले रजिस्ट्रेशन नंबर और उनके रंग को लेकर व्यापक मानकों को शामिल करते हुए अधिसूचना जारी की है। सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना में और दो तरह के नंबर प्लेट को शामिल किया गया है। पहला अस्थायी नंबर प्लेट और दूसरा डीलर के यहां खड़े वाहनों के नंबर प्लेट। इसके लिए केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में बदलाव किए गए हैं। यह स्पष्ट किया गया है कि वाहनों पर सिर्फ अंग्रेजी के बड़े अक्षरों और अंकों में ही नंबर लिखे जाएंगे। अस्थायी पंजीयन नंबर पीले रंग की प्लेट पर लाल रंग से लिखे जाएंगे। जबकि, डीलर के यहां खड़े वाहनों पर लाल रंग के प्लेट पर सफेद रंग से पंजीयन नंबर लिखे जाएंगे। मंत्रालय का कहना है कि विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में वाहनों के पंजीयन नंबर प्लेट को लेकर जून, 1989 में अधिसूचित संशोधन के संबंध में स्पष्टता लाने के लिए यह अधिसूचना जारी की गई है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि नंबर प्लेट पर वाहन पंजीयन नंबर के अलावा कुछ भी नहीं लिखा होना चाहिए। केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम में नंबरों के आकार और रंगों को भी स्पष्ट किया गया है। इसके तहत दो पहिया और तिपहिया वाहनों को छोडक़र सभी वाहनों के पंजीयन नंबर के अक्षर की ऊंचाई 65 मिमी, मोटाई 10 मिकी और उनके बीच अंतर 10 मिकी का होगा।