ट्रम्प की वापसी: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अवसर और चुनौतियाँ…

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अवसर और चुनौतियाँ…
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विक्रांत निर्मला सिंह: डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में दूसरी बार चुना जाना एक महत्वपूर्ण वैश्विक घटना है। यह चुनाव न केवल वैश्विक व्यवस्था को प्रभावित करेगा, बल्कि कई आर्थिक बदलावों का भी कारण बनेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप द्वारा लिए जाने वाले नीतिगत निर्णयों के प्रभाव को समझने के लिए उनके पहले कार्यकाल पर दृष्टि डालना आवश्यक है। यह वह समय था जब ट्रम्प को "टैरिफ किंग" के रूप में जाना गया। इस दौरान विशेष रूप से उभरती हुई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के प्रति ट्रम्प का दृष्टिकोण अधिक सख्त था। ट्रंप की आर्थिक सोच के अनुसार, कुछ विकासशील देश, विशेषकर चीन, अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए अनेक रियायतें प्राप्त करते हैं।

ये देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार शुल्क में छूट हासिल करते हैं। इसी कारण से ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन पर अधिक शुल्क (टैरिफ) लगाना शुरू किया था, जिसे आर्थिक भाषा में 'व्यापार संरक्षणवाद' कहा जाता है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप प्रशासन ने सोलर पैनल, वॉशिंग मशीन, स्टील, एल्यूमीनियम और चीन से आयातित कई वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाया। इसके परिणामस्वरूप, 2019 में टैरिफ से 79 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 50% की वृद्धि थी। यह एक व्यापार युद्ध के रूप में उभर कर सामने आया, जिसमें दुनिया के दो ताकतवर राष्ट्र आपस में टकरा रहे थे।

व्यापार युद्ध वह स्थिति है जब देश एक-दूसरे के व्यापार पर अतिरिक्त कर और कोटा लगाकर आर्थिक प्रहार करते हैं। इसमें एक देश अपनी स्थानीय उद्योगों को संरक्षण देने के उद्देश्य से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाता है। इसके प्रत्युत्तर में दूसरा देश भी इसी प्रकार के करों को बढ़ाकर प्रतिक्रिया देता है, जिससे "जैसे को तैसा" की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार का व्यापार युद्ध वैश्विक व्यापार में अवरोध उत्पन्न करता है, और अन्य अर्थव्यवस्थाओं को भी क्षति पहुंचता है।

अब वर्तमान पर बात करें तो, ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान वादा किया था कि वह अमेरिका की बेरोजगारी, महंगाई और अन्य आर्थिक चिंताओं को दूर करेंगे। इसके लिए वह बहुत से नीतिगत बदलाव करेंगे, लेकिन इसमें दो महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिन पर वैश्विक दृष्टिकोण के साथ भारतीय हित में भी विचार किया जाना चाहिए। पहला, क्या ट्रंप एक बार फिर व्यापार युद्ध की राह पर चलेंगे? यदि वे चीन के साथ ऐसा करते हैं, तो इस बात की क्या गारंटी है कि वे भारत पर भी अतिरिक्त टैरिफ नहीं लगाएंगे? दूसरा, ट्रंप ने घरेलू रोजगार बढ़ाने के लिए उत्पादन इकाइयों को वापस अमेरिका लाने का एलान किया है, यानी विदेश में सस्ती वस्तुएं और श्रम से उत्पादन कर रही कंपनियों को अमेरिका में वापस लाने का प्रयास किया जाएगा।

इससे स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आय में वृद्धि से आर्थिक समस्याओं का समाधान हो सकेगा। ऐसी स्थिति में क्या भारत इससे अछूता रह पाएगा? हाल के दिनों में देखा गया है कि गूगल और एप्पल जैसी कंपनियाँ भारत को अपना नया उत्पादन केंद्र बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। यदि ट्रम्प के निर्णयों से व्यापार युद्धों कि स्थिति आती है तो एक बार फिर आर्थिक संरक्षणवाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सकता है, और अमेरिका बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को नकार सकता है।

इसके अलावा, रोजगार के लिए अमेरिका में विदेशी श्रमिकों पर सख्त प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं, जो विशेष रूप से भारत के आईटी क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं। भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध बहुत अहम हैं, क्योंकि अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और भारत का अमेरिका के साथ व्यापार में लाभ 36.74 बिलियन डॉलर ( 2023-24) है।

ट्रम्प से अच्छे रिश्ते होने के बावजूद हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पिछले कार्यकाल में भारत से स्टील और एल्यूमीनियम के आयात पर शुल्क लगाए गए थे और भारत को अमेरिका ने "जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (जीएसपी)" से बाहर कर दिया गया था, जिससे भारतीय निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा था। जीएसपी एक व्यापारिक योजना है जिसके तहत विकसित देश विकासशील देशों को शुल्क में रियायतें देते हैं, ताकि उनके उत्पादों को बाज़ार में बिना शुल्क या कम शुल्क पर प्रवेश मिल सके।

हालांकि, चुनाव परिणाम के दिन वैश्विक और भारतीय बाजार में देखी गई तेजी एक सकारात्मक संकेत भी है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि ट्रंप के पुनः सत्ता में आने से वैश्विक स्थिरता को प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे ईरान और इस्राइल के बीच तनाव कम होगा और खाड़ी में शांति का मार्ग प्रशस्त होगा। इस शांति से कच्चे तेल के दामों में संतुलन लौटेगा, जिसका प्रत्यक्ष लाभ भारत को मिलेगा।

इसके अतिरिक्त, ट्रंप का रूस एवं अन्य देशों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास भी वैश्विक तनाव में कमी ला सकता है, जिससे बाजारों में स्थिरता बनी रहेगी। यदि उम्मीद के मुताबिक ट्रंप इन जटिल मुद्दों को सुलझाने में सफल रहते हैं, तो इससे वैश्विक बाजारों में सकारात्मक प्रतिक्रिया के साथ-साथ भारतीय बाजार पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। बाज़ार में स्थिरता आने से विदेशी निवेश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे भारत में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।

हालांकि, यह संभावित लाभ काफी हद तक अमेरिकी फेडरल बैंक की ब्याज दरों पर भी निर्भर करेगा। ट्रंप की नीतियों के कारण अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती धीमी हो सकती है, जिससे भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश पर असर पड़ सकता है। वास्तव में, अमेरिका में उच्च ब्याज दरें अक्सर भारतीय बाजारों से पूंजी के प्रवाह को बाहर की ओर मोड़ती हैं। यदि फेडरल रिज़र्व ब्याज दरों में कटौती को टालता है, तो इससे भारतीय बाजारों में निवेश के अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

भारत के लिए अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव कुछ नए अवसरों की संभावनाएँ भी प्रस्तुत करता है। ऐसी किसी भी व्यापारिक खींचतान की स्थिति में भारतीय उद्योग, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और फार्मास्युटिकल क्षेत्रों में, अमेरिकी बाज़ार में अपनी उपस्थिति बढ़ा सकते हैं। अमेरिका, जो विश्व में फार्मास्युटिकल उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक है, वैश्विक आयात का लगभग 20% हिस्सा अकेले आयात करता है। इसमें भी मतवपूर्ण तथ्य यह है कि भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए अमेरिका एक महत्वपूर्ण बाजार है, जहाँ भारत के कुल औषधि निर्यात का 31 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जाता है।

चीन के साथ किसी भी तनावपूर्ण स्थिति में, भारत का यह क्षेत्र अमेरिका के लिए एक प्रमुख आपूर्ति केंद्र बन सकता है। हाल ही में, मोदी सरकार ने देश में प्रमुख औषधि सामग्री और जेनेरिक दवाओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएँ शुरू की हैं। इससे उत्पादन लागत में कमी आएगी, जिससे भारतीय फार्मा कंपनियों को प्रतिस्पर्धी दरों पर निर्यात का बेहतर अवसर प्राप्त होगा।

इसके अतिरिक्त, चीन से उत्पादन शिफ्ट करने कि स्थिति में भारत का विशाल घरेलू बाज़ार, तीव्र गति से हो रहे सुधार, ग्लोबल स्किल वर्कफोर्स, बढ़ती प्रति व्यक्ति आय, और 'मेक इन इंडिया' जैसी नीतियाँ अमेरिकी निवेशकों के लिए आकर्षक हो सकती हैं। इन संभावनाओं का पूरा लाभ उठाने के लिए भारत को अपनी आर्थिक और व्यापारिक रणनीतियों को सावधानीपूर्वक सुसंगत और अनुकूल बनाना आवश्यक होगा। इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के मधुर संबंध भी सहायक साबित हो सकते हैं। इन दोनों नेताओं की दोस्ती, क्वाड में साझेदारी, और चीन से हटकर वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला (चाइना+ वन) की प्रतिबद्धता, भारत को एक रणनीतिक बढ़त बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।

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