Nagchandreshwar Temple Ujjain: साल में केवल एक बार नागपंचमी के दिन खुलता है ये मंदिर, यहीं रहते हैं रक्षक नागराज़

Nagchandreshwar Temple Ujjain: साल में केवल एक बार नागपंचमी के दिन खुलता है ये मंदिर, यहीं रहते हैं रक्षक नागराज़
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Nagchandreshwar Temple Ujjain: इस मंदिर का निर्माण सन् 1050 ईस्वी के आसपास राजा भोज ने कराया था, फिर सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने साल 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

Nagchandreshwar Temple Ujjain: इस साल 9 अगस्त 2024 को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। देश में लाखों हिंदू धर्म के लोग नागपंचमी के दिन सांपो की पूजा करते हैं। मान्यता यह है कि नागपंचमी के दिन सांपो को देख़ना और दूध पिलाना अच्छा होता है। लोगों का मानना यह है इस दिन सांप को दूध पिलाने से भगवान शंकर की कृपा भरसेगी, पर इन सब के पीछे का वैज्ञानिक कारण भी है। जानकारों के अनुसार सांपो को दूध पिलाने से उनकी सेहत बिगड़ जाती है और उन्हें नुकसान होता है।


इन सब के बीच मध्य प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है। जो केवल साल में एक बार 24 घंटे के लिए नागपंचमी के दिन खुलता है। नागपंचमी के दिन इस मंदिर में दर्शन के लिए लोगों की लंबी कतार लगती है, कहते हैं कि इसी मंदिर में नागराज तक्षक रहते हैं।

कहां है ये मंदिर स्थित

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागपंचमी के दिन इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही सर्पदोष मिट जाता है। साल में केवल एक बार नागपंचमी के दिन खुलने वाला ये मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इस मंदिर को लेकर मान्यता यह है कि यहीं नागराज तक्षक रहते हैं। इनके काटने से ही कलयुग की शुरूआत हुई थी।


सांप के शय्या पर विराजमान हैं शंकर भगवान

इस मंदिर को लेकर जानकारों का कहना है आज भी इस मंदिर में नागराज तक्षक की मौजूदगी व्यक्ति महसूस कर सकता है। नागचंद्रेश्वर मंदिर Nagchandreshwar Temple Ujjainहिंदू धर्म के लोगों के लिए खास है। इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा को लेकर कहा जाता है कि यहां जो प्रतिमा स्थापित है वैसी प्रतिमा पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। भगवान शंकर यहां सांप की शय्या पर विराजमान हैं।


इस मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिव जी, गणेश जी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को वरदान के रूप में अमरत्व दिया और तब से नागराज तक्षक इस मंदिर में विराज़मान है। कहते हैं कि इनके काटने से ही कलयुग की शुरूआत हुई थी।

राज भोज ने कराया था मंदिर का निर्माण

इस मंदिर का निर्माण सन् 1050 ईस्वी के आसपास राजा भोज ने कराया था, फिर सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने साल 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की यह लालसा होती है कि नागराज पर विराजे भगवान शंकर का एक बार दर्शन हो जाए। नागपंचमी के दिन यहां लाखों भक्त आते हैं।

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