One Nation One Election Explainer: वन नेशन वन इलेक्शन क्या है? जानिए इसके फायदे और नुकसान…
One Nation One Election Swadesh Explainer : वन नेशन वन इलेक्शन पर कोविंद समिति की रिपोर्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार 18 सितंबर को मंजूरी दे दी है। अब शीतकालीन सत्र में यह बिल पेश किया जाएगा। वन नेशन वन इलेक्शन को पीएम मोदी के इसी कार्यकाल में लागू करने की बात कही जा रही है। एक दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) ने कहा था कि एक राष्ट्र एक चुनाव हम इसी कार्यकाल में लागू करेंगे। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (former President Ram Nath Kovind) की अध्यक्षता वाली समिति ने मार्च 2024 में वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में साल 2029 में सभी चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए सिफारिश की गई है। आइए जानते हैं क्या है वन नेशन वन इलेक्शन और विपक्ष क्यों कर रहा इसका विरोध...।
पीएम मोदी ने किया था स्वतंत्रता दिवस पर जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2024 को लाल किले की प्राचीर से वन नेशन वन इलेक्शन की बहस को फिर छेड़ दी थी। उन्होंने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा था कि वन नेशन वन इलेक्शन भाजपा सरकार के प्रमुख एजेंडे में से एक है। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी अनुशंसा सरकार को सौंप दी थी। पीएम मोदी ने अपने भाषण में इसका भी जिक्र किया। वन नेशन वन इलेक्शन बड़े रिफार्म में से एक साबित हो सकता है हालांकि विपक्ष इसके पक्ष में नहीं है।
दो चरण में चुनाव कराने की सिफारिश
कोविंद समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि वन नेशन - वन इलेक्शन लागू करके केंद्र और राज्य सरकारों के चुनावी चक्रों में तालमेल बिठाया जा सकेगा। देश भर में दो चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव होंगे वहीं 100 दिनों के भीतर दूसरे चरण में नगर पालिका और पंचायत चुनाव कराए जाएंगे।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन :
वन नेशन वन इलेक्शन का तात्पर्य देश में सभी चुनाव को एक साथ कराए जाने से है। इसमें लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव शामिल है। आसान शब्दों मे कहें तो वोटर एक ही समय पर सांसद और विधायक समेत स्थानीय जनप्रतिनिधि को चुन सकते हैं।
अब यहां समझने वाली बात यह है कि लोकसभा और विधानसभा का चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग यानी इलेक्शन कमीशन करवाता है जबकि स्थानीय निकाय के चुनाव राज्य चुनाव आयोग करवाता है। संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग का जिक्र है। अब अगर देश में एक साथ चुनाव कराए जाने हैं तो संविधान संशोधन की भी आवश्यकता पड़ सकती है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव (Union Minister Ashwini Vaishnav) ने संविधान संशोधन के सवाल पर कहा कि, विषय पर चर्चा करके सामान्य समझ (Common Consensus) विकसित की जाएगी। इसके बाद आगे का निर्णय लिया जाएगा।
क्या देश में कभी एक साथ चुनाव हुए हैं :
इस सवाल का जवाब है - हां। भारत में साल 1951-52 से 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे। लोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए एक साथ वोटिंग करते थे लेकिन साल 1968-69 में कई विधानसभाएं भंग हो गई। वहीं 1970 में लोकसभा को भी भंग कर दिया गया था।
आखिर क्यों की गई लोकसभा और विधानसभा भंग :
साल 1967 में देश में चौथा आम चुनाव हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस 6 राज्यों में हार गई थी। इन राज्यों में तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य शामिल थे। अलग - अलग कारणों के चलते विधानसभा समय से पहले ही भंग कर दी गई।
विधानसभा भंग किए जाने की शुरुआत आन्ध्रप्रदेश से हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री केबी रेड्डी को भ्रष्टाचार के आरोप लगने के कारण इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद विधानसभा को भंग कर दिया गया। इधर बिहार में दो साल में चार मुख्यमंत्री बदल गए । वहीं उत्तरप्रदेश में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था वहां के सीएम चन्द्र्भानु को अपनी सीट बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। 1968 में उत्तरप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया था। केरल और गुजरात के भी कुछ ऐसे ही हालात हुए थे।
समय से पहले भंग हो गई लोकसभा :
सत्तर के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कई बड़े फैसले किए थे जिनमें बैंकों का नेशनलाइजेशन, बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करना शामिल था। इन सभी निर्णयों से इंदिरा गांधी की लोकप्रियता सातवें आसमान पर थी। इसके चलते उन्होंने समय से पहले आम चुनाव कराने का फैसला किया जबकि उस समय लोकसभा का कार्यकाल 1972 तक था। पांचवा आम चुनाव 1971 में ही करा दिया गया। इस तरह देश में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा भंग हो गई।
विपक्ष कर रहा विरोध
वन नेशन वन इलेक्शन का विपक्ष ने जमकर विरोध किया है। विपक्ष का कहना है कि एक राष्ट्र और एक चुनाव से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होने से वोटिंग पैटर्न प्रभावित होगा। इसके अलावा ये क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए यह बहुत बड़ा खतरा साबित होगा। इसके साथ ही एक राष्ट्र एक चुनाव काफी खर्चीला होगा।
आइए अब बात करते हैं वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे और नुकसान की...
वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे :
राजकोष की बचत -
वन नेशन वन इलेक्शन से बार-बार चुनाव मे होने वाला खर्च कम होगा। इससे देश के राजकोष मे बड़ी बचत होगी।
विकास कार्यों मे नहीं आएगी रुकावट -
चूंकि इलेक्शन के समय चुनाव क्षेत्र में आचार संहिता लागू हो जाती है जिससे क्षेत्र मे हो रहे विकास कार्यों को चुनाव परिणाम आने तक रोक दिया जाता है। ऐसे मे एक चुनाव के होने से विकास कार्यों मे रुकावट नहीं होगी और तेजी से काम होगा।
कालेधन पर लगेगी लगाम -
केन्द्रीय एजेंसी और चुनाव आयोग की कई रिपोर्ट में बताया गया है कि चुनाव के दौरान कालेधन का भरपूर उपयोग किया जाता है एक चुनाव होने से इस समस्या से छुटकारा मिलेगा।
सरकारी कर्मचारियों का समय नहीं होगा बर्बाद -
चूंकि चुनाव को सफलतापूर्वक करवाना के लिए शिक्षक, स्कूल कॉलेज के साथ अन्य सरकारी कर्मचारियों की मदद ली जाती है जिससे उनका काम प्रभावित होता है। वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने के बाद सरकारी कर्मचारियों का काम प्रभावित नहीं होगा।
एक चुनाव होने के फायदे होने के साथ-साथ नुकसान भी है, जो इस प्रकार है :
वोटिंग पैटर्न प्रभावित
विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होने से वोटिंग पैटर्न प्रभावित होगा। दरअसल, लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग - अलग एजेंडा पर लड़े जाते हैं। दोनों चुनाव एक साथ होने की स्थिति मे वोटर राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित होकर एक ही पैटर्न में वोट डाल सकते हैं। इससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ेगा।
क्षेत्रीय पार्टियां होगी खारिज
भारत मे कई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं। राष्ट्रीय दल राष्ट्रीय मुद्दो को लेकर तो वहीं क्षेत्रीय दल क्षेत्र के मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन की स्थिति मे क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व खत्म हो सकता है क्योंकि बड़ी पार्टियां पावर की बदौलत आसानी से चुनाव में लाभ कमा सकती हैं।
चुनाव रिजल्ट मे देरी
चूंकि देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियां EVM की विश्वसनीयता पर कई बार सवाल खड़े कर चुकी है इसके साथ ही चुनाव मतपत्र से करवाने की मांग भी की गइै है। ऐसे में एक देश एक चुनाव की स्थिति में मतपत्रों की गिनती में काफी समय लग सकता है।
अधिक संसाधनों की जरूरत
भारत देश आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, ऐसे में सभी चुनाव एक समय पर करवाने के लिए वर्तमान के मुकाबले ज्यादा वोटिंग मशीन की जरूरत पड़ेगी। चुनाव आयोग के एक EVM और VVPAT को खरीदने मे कम से कम 9284.15 करोड़ रूपए की आवश्यकता होगी। इसके अलावा इन मशीनों को हर 15 साल मे बदलना होगा जो काफी खर्चीला साबित होगा। आयोग ने एक चुनाव कराने का खर्च लगभग 500 करोड़ रूपए आंका हैं।
इन देशों मे होते है एक साथ चुनाव :
वन नेशन वन इलेक्शन की कवायद करने वाला भारत पहला देश नहीं है। दुनिया मे कई देश ऐसे हैं जो वन नेशन वन इलेक्शन पर भरोसा करते हैं। इसमें दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, इंगलैंड, इंडोनेशिया, जर्मनी, फिलिपींस, ब्राजील, बोलिविया, कोलंबिया, ग्वाटेमाला जैसे देश शामिल है।
प्रश्न: वन नेशन वन इलेक्शन का क्या मतलब है?
उत्तर: वन नेशन वन इलेक्शन का तात्पर्य है कि देश में सभी चुनाव एक साथ कराए जाएंगे, जिसमें लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव शामिल हैं।
प्रश्न: कोविंद समिति की रिपोर्ट को कब मंजूरी दी गई?
उत्तर: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 18 सितंबर को कोविंद समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दी है।
प्रश्न: वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे क्या हैं?
उत्तर: इसके फायदे में राजकोष की बचत, विकास कार्यों में रुकावट नहीं, कालेधन पर लगाम, और सरकारी कर्मचारियों का समय बचाना शामिल है।
प्रश्न: वन नेशन वन इलेक्शन के नुकसान क्या हो सकते हैं?
उत्तर: इसके नुकसान में वोटिंग पैटर्न का प्रभावित होना, क्षेत्रीय पार्टियों का खारिज होना, चुनाव परिणाम में देरी, और अधिक संसाधनों की आवश्यकता शामिल है।
प्रश्न:विपक्ष वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध क्यों कर रहा है?
उत्तर: विपक्ष का कहना है कि इससे वोटिंग पैटर्न प्रभावित होगा और यह क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए खतरा साबित होगा।
प्रश्न: भारत में पहले एक साथ चुनाव कब हुए थे?
उत्तर: भारत में 1951-52 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे।
प्रश्न: क्या अन्य देशों में भी वन नेशन वन इलेक्शन का प्रचलन है?
उत्तर: हाँ, कई देशों जैसे दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, इंग्लैंड, और जर्मनी में एक साथ चुनाव होते हैं।