Tata Sons IPO: विस्तार से जानिए कि क्यों नोएल ला सकते हैं टाटा संस का आईपीओ…
वरिष्ठ संपादक विवेक शुक्ला: अपने अग्रज रतन टाटा की तरह नोएल टाटा की भी एक बहुत साफ-सुथरी इमेज रही है। अब वे टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमेन बन गए हैं, इसलिए माना जा सकता है कि वे अपने नए रोल में टाटा ग्रुप को बुलंदियों पर लेकर जाएंगे।
दरअसल पारसी बीती कई सदियों से, अपनी दूर दृष्टि, मेहनत और नवाचार के साथ भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इन्होंने भारत के औद्योगिक इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई है। नोएल टाटा उसी परंपरा को आगे बढ़ाते रहना चाहेंगे।
देखिए नोएल टाटा के ट्रस्ट्स का चेयरमेन बनते ही देश के कोरपोरेट संसार और रिजर्व बैंक आफ इंडिया ( आरबीआई) ने उनसे एक उम्मीद लगानी शुरू कर दी है। नोएल टाटा से उम्मीद यह की जा रही है कि वे टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी, टाटा संस का प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) लाने का रास्ता साफ करेंगे।
टाटा संस के अधिकांश शेयर टाटा ट्रस्ट्स के पास हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की अपेक्षा रहती है कि बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) सार्वजनिक होनी चाहिए। मतलब उनका बाजार में आईपीओ आना चाहिए।
आरबीआई के नियमों के तहत सभी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को शेयर बाजार में लिस्ट होना ही होगा। जिसकी डेडलाइन सितंबर 2025 तय की गई थी। ऐसी करीब 15 कंपनियों की लिस्ट जारी की गई थी। जिनमें कई कंपनियां लिस्ट हो चुकी है। वहीं जो कंपनियां लिस्ट नहीं हुई हैं, उनमें टाटा संस का भी नाम शामिल है। टाटा संस की ओर से इस मामले में आरबीआई से राहत की मांग की जा चुकी है।
दरअसल कहने वाले कहते हैं वेणु श्रीनिवासन आरबीआई और टाटा संस दोनों के बोर्ड हैं। इसलिए ये सारा मामला हितों के टकराव से संबंधित है। श्रीनिवासन को 14 जून, 2022 को आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के निदेशक मंडल में चार साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था। वे टीवीएस मोटर्स के भी चेयरमेन रहे हैं। उनकी भारत के कोरपोरेट जगत में बहुत ऊंचा कद है। आरबीआई की इसी तरह की उम्मीद टाटा संस से भी थी कि वह आईपीओ लाएगी। पर यह हो ना सका। अब इस बात की उम्मीद बन रही है क्योंकि टाटा ट्रस्ट की कमान अब नोएल टाटा के पास है। उनके लिए कहा जाता है कि वे नियमों के अनुसार ही चलते हैं। यह तो रतन टाटा के समय ही आ जाना चाहिए था, क्योंकि आरबीआई के नियम टाटा संस पर भी लागू होते हैं।
नोएल टाटा को अपनी क्षमताओं को दिखाने का मौका पहली बार मिल रहा है। अब वे टाटा संस के आईपीओ को लाने के साथ अपनी नई पारी को धमाकेदार तरीके से शुरू कर सकते हैं। यह हैरानी की बात है कि टाटा संस अब तक आईपीओ नहीं ला सकी। हालांकि उसे रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक आईपीओ ले आना चाहिए था।
इस बीच, रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग जगत में पारसी समुदाय के अद्वितीय और महत्वपूर्ण योगदान की बहुत सारे लोगों को जानकारी मिल रही है। पर अब भी यह बताने की भी जरूरत है कि पारसी उद्यमियों जैसे टाटा,गोदरेज,वाडिया,मिस्त्री वगैरह ने आधी दुनिया को अपने यहां आगे बढ़ने के भरपूर अवसर दिए। इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति बताती हैं कि वह 1974 में टाटा मोटर्स में इंजीनियर थीं और उनका टाटा समूह के चेयरमेन जेआरडी टाटा से संपर्क रहता था। बताइये आधी सदी पहले कितनी महिला इंजीनियर देश की निजी कंपनियों में काम कर रही थीं।
एक बात और। पारसी औद्योगिक घरानों में संपत्ति विवाद की खबरों का ना होना भी हैरान करता है। यह उनकी सफलता की एक अहम वजह माना जाता है, जो उन्हें अन्य समुदायों से अलग करता है।
लक्ष्य मुनाफा कमाना ही नहीं
दरअसल पारसी बीती कई सदियों से, अपनी दूर दृष्टि, मेहनत और नवाचार के साथ भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इन्होंने भारत के औद्योगिक इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई है। इनके कारोबार का एक मात्र लक्ष्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना कभी नहीं रहा। ये लाभ कमाने और फिर उस लाभ के बड़े अंश को लोक कल्याण के कामों में खर्च करने में यकीन करते रहे।
पहले बात टाटा समूह से शुरू कर लेते हैं। भारत का सबसे बड़ा व्यावसायिक समूह टाटा 1868 में जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित, अपने शुरुआती वर्षों में कपड़े, होटल और लोहे के कारखाने से लेकर आज तक आईटी, ऑटोमोबाइल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव स्थापित कर चुका है। टाटा समूह का योगदान सिर्फ उद्योगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, अनुसंधान और विकास जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण है।
टाटा समूह की स्थापना के लगभग दो दशक बाद 1897 में स्थापित गोदरेज समूह के संस्थापक विरजी गोदरेज थे। गोदरेज समूह, अत्याधुनिक तकनीक के साथ उपभोक्ता वस्तुओं, फर्नीचर और अचल संपत्ति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में एक प्रमुख नाम है। गोदरेज ने अपने यहां आधी दुनिया को शिखर पर जगह देने में कभी कसर नहीं छोड़ी।
टाटा समूह की स्थापना के लगभग दो दशक बाद 1897 में स्थापित गोदरेज समूह के संस्थापक विरजी गोदरेज थे। गोदरेज समूह, अत्याधुनिक तकनीक के साथ उपभोक्ता वस्तुओं, फर्नीचर और अचल संपत्ति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में एक प्रमुख नाम है। गोदरेज ने अपने यहां आधी दुनिया को शिखर पर जगह देने में कभी कसर नहीं छोड़ी।
टाटा और गोदरेज से पहले सन 1736 में स्थापित हो गया था वाडिया समूह। इसका इतिहास भारत के आधुनिक इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। यह समूह शुरुआत में कपड़े के व्यापार से शुरू हुआ और बाद में विमानन, पेय पदार्थ, बैंकिंग, रीयल एस्टेट और अन्य क्षेत्रों में अपना प्रभाव स्थापित किया।
यकीन के साथ कहा जा सकता है नोएल टाटा देश निर्माण में अपना योगदान देते रहेंगे।