Jivita Putrika Vrat: जितिया व्रत, संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि का पर्व
भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का गहरा महत्व है। हर पर्व अपने साथ एक खास संदेश लेकर आता है, जो परिवार, समाज, और व्यक्ति के जीवन को आध्यात्मिकता और आस्था से जोड़ता है। ऐसे ही पर्वों में से एक महत्वपूर्ण पर्व है जितिया व्रत, जिसे 'जीवित्पुत्रिका व्रत' के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख, और समृद्धि के लिए इसे करती हैं। खासकर उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड में यह व्रत बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। जितिया व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। व्रत रखने वाली माताएं 25 सितंबर को पूरे दिन और रात व्रत रखकर अगले दिन, यानी 26 सितंबर को व्रत का पारण करेंगी। इसका पारण सुबह 4 बजकर 35 मिनट से सुबह 5 बजकर 23 मिनट तक किया जाएगा।
जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत माताओं द्वारा अपने बच्चों की दीर्घायु और कल्याण की कामना के लिए किया जाता है। इसे बेहद कठोर माना जाता है, क्योंकि इसे निर्जल और निराहार रहकर किया जाता है। व्रत रखने वाली माताएं बिना जल और अन्न ग्रहण किए इस व्रत को करती हैं, जो उनकी संतान के प्रति असीम ममता और त्याग का प्रतीक है। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मां और संतान के बीच के गहरे प्रेम और स्नेह का परिचायक है। यह माता के अपने बच्चों के प्रति निस्वार्थ त्याग, समर्पण, और ममता का अद्वितीय उदाहरण है।
पौराणिक कथा
जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है। कहा जाता है कि जीमूतवाहन नामक एक राजा थे, जो अपनी निःस्वार्थ सेवा और त्याग के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने नागवंश के लोगों की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की और स्वेच्छा से बलिदान देने के लिए तैयार हो गए। उनके इस निस्वार्थ भाव से देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद दिया, और उनकी इस महानता को सम्मानित करने के लिए माताओं ने उनके नाम से जितिया व्रत की परंपरा शुरू की। इस व्रत में माताएं 'जीमूतवाहन' का पूजन करती हैं और उनसे अपनी संतान की रक्षा, दीर्घायु और सुख की कामना करती हैं। इस प्रकार, यह व्रत न सिर्फ धार्मिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है।
जितिया व्रत की विधि
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है और इस दौरान विशेष अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। व्रत की शुरुआत से लेकर अंत तक कुछ प्रमुख नियमों का पालन किया जाता है:
नहाय-खाय (पहला दिन)
व्रत के पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन माताएं स्नान करके पवित्र भोजन करती हैं। विशेष रूप से बिना लहसुन और प्याज के भोजन का सेवन किया जाता है। माताएं शुद्ध भोजन ग्रहण करती हैं ताकि वे अगले दिन निर्जल व्रत के लिए तैयार हो सकें।
निर्जल व्रत (दूसरा दिन)
व्रत के दूसरे दिन माताएं निर्जल और निराहार रहकर व्रत का पालन करती हैं। इस दिन न तो भोजन ग्रहण किया जाता है और न ही जल पिया जाता है। दिनभर पूजा-पाठ और प्रार्थना का माहौल होता है। इस दिन माताएं पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। बिना भोजन और जल के व्रत रखना शरीर के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह माताओं की संतान के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है।
पारणा (तीसरा दिन)
तीसरे दिन पारणा होती है, जब व्रत का समापन किया जाता है। इस दिन विशेष पूजा की जाती है और व्रतधारी माताएं जल और अन्न ग्रहण करती हैं। पूजा के दौरान माला धारण करने की परंपरा भी होती है, जो दर्शाती है कि मां ने अपनी संतान की सुरक्षा और कल्याण के लिए भगवान से मन्नत मांगी है।
जितिया व्रत और विज्ञान
व्रत और धार्मिक अनुष्ठानों का वैज्ञानिक पक्ष भी होता है। जितिया व्रत में जब महिलाएं निर्जल और निराहार रहती हैं, तो उनका शरीर एक तरह से डिटॉक्स हो जाता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक है, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हो सकता है। कई महिलाएं इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ करती हैं, जिससे शरीर की शुद्धि होती है और एक नई ऊर्जा का अनुभव होता है।
आधुनिक जीवन में जितिया व्रत का महत्व
समय के साथ जीवनशैली में बदलाव आया है, लेकिन जितिया व्रत की परंपरा आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। मातृत्व की भावना, बच्चों के प्रति निस्वार्थ प्रेम, और उनकी सुरक्षा के लिए किया जाने वाला यह व्रत हमेशा प्रेरणादायक रहेगा। आधुनिक माताएं भी इस व्रत का पालन उसी श्रद्धा से करती हैं, जैसे पहले किया जाता था।