छिंदवाड़ा बनेगा सबसे बड़ा अखाड़ा

छिंदवाड़ा बनेगा सबसे बड़ा अखाड़ा
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छिंदवाड़ा की सात सीटों के चुनावी गणित पर सबकी निगाहें

चुनाव डेस्क। इस बार के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा जिला छिंदवाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा बनने जा रहा है। चुनावी दृष्टिकोण से छिंदवाड़ा कई मायने में अहम है। यहां के सांसद एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों में से एक हैं, इसलिए यहां की सभी सात सीटों को जीतना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दावेदार बनाकर भेजी गईं उमा भारती ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए अपने चुनावी अभियान का यहीं से श्रीगणेश किया था। वहीं कांग्रेस ने इस बार छिंदवाड़ा के ही सांसद और पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों में से एक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को प्रदेश में फिर से पार्टी का परचम फहराने की जिम्मेदारी सौंपी है। यही वजह है कि छिंदवाड़ा की सातों विधानसभा सीटों के चुनावी गणित पर इस बार सबकी निगाहें टिक हुई हैं।

छोटे दल बढ़ाएंगे कांग्रेस की मुश्किलें

जिले में मुख्य रूप से भाजपा व कांग्रेस का ही संगठन सक्रिय है, किन्तु अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में क्षेत्रीय दल के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की भी प्रभावी मौजूदगी है, जिसके नेता मनमोहन शाह बट्टी एक बार विधायक भी निर्वाचित हो चुके हैं। उनके इस बार फिर से अपनी किस्मत आजमाने के चलते मुकाबला और भी रोचक होने की उम्मीद है। वहीं इस बार आम आदमी पार्टी ने भी अब तक सात सीटों में से छह सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इसके अलावा सपा और बसपा के उम्मीदवार भी मैदान में होंगे। स्वाभाविक है। इन सभी छोटे दलों के उम्मीदवार कांग्रेस का ही चुनावी गणित बिगाडऩे का काम करेंगे। ऐसे में कमलनाथ के लिए अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाना बड़ी चुनौती है। इधर भाजपा की ओर से आ रही खबरों के मुताबिक चारों मौजूदा विधायक

चौधरी चन्द्रभान सिंह, नानाभाऊ महोड़, रमेश दुबे और नाथन शाह कवरेती को ही दोबारा मौका मिल सकता है। वहीं कांग्रेस की ओर से भी दो मौजूदा विधायकों सोहन वाल्मीकि एवं जतन उइके ही मैदान में उतारे जा सकते हैं। अमरवाड़ा सीट पर कांग्रेस की ओर से मौजूदा विधायक कमलेश शाह को लेकर अभी संशय बना हुआ है।

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों के परिणामों में जिले की सात में से चार सीटों छिंदवाड़ा, सौंसर, चौरई, जुन्नारदेव पर भाजपा और तीन सीटों परासिया, पांढुर्णा, अमरवाड़ा पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी। जिन तीन सीटों पर कांग्रेस जीती, उसमें से अनुसूचित जनजाति (अजजा) के लिए सुरक्षित सीट पांढुर्णा एवं अमरवाड़ा में 'नोटाÓ ने तीसरे स्थान पर वोट हासिल किए थे। इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी बहुत कम अंतर से जीते थे। जुन्नारदेव अजजा सीट पर भी नोटा ने नौ हजार से ज्यादा वोट पाकर प्रत्याशियों की जीत-हार का अंतर कम कर दिया था। ये तीनों ही सीटें आदिवासी व दूरदराज के ग्रामीण व वन क्षेत्रों वाली हैं। ऐसे में इन पर नोटा को बड़ी मात्रा में वोट मिलने से इस बार दोनों ही दलों को विश्लेषण करने पर मजबूर कर दिया है। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए छिंदवाड़ा जिले की सात विधानसभा क्षेत्रों में क्रमश: छिंदवाड़ा में 2 लाख 54 हजार 485, अमरवाड़ा में 2 लाख 29 हजार 411, परासिया में 2 लाख 1 हजार 773, जुन्नारदेव में 2 लाख 5 हजार 94, चौरई में 1 लाख 96 हजार 225, पांढुर्णा में 1 लाख 96 हजार 90 और सौंसर में 1 लाख 93 हजार 833 मतदाता हैं। सातों विधानसभा क्षेत्रों के लिए 1 हजार 930 मतदान केन्द्र बनाए गए हैं, जिनमें पहली बार 28 पिंक मतदान केन्द्र भी होंगे। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के रूप में कमलनाथ का कांग्रेस नेता के रूप में अभेद गढ़ माना जाता है। कमलनाथ लगभग चार दशक से छिंदवाड़ा में सक्रिय हैं।

छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से लड़ सकते हैं कमलनाथ

छिंदवाड़ा विधानसभा सीट पर फिलहाल भाजपा का कब्जा है। हालांकि यह इलाका कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ का गढ़ माना जाता। वे यहां से नौ बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। छिंदवाड़ा विधानसभा सीट पर वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा के चौधरी चन्द्रभान सिंह ने कांग्रेस के दीपक सक्सेना को हराया था। चौधरी चन्द्रभान सिंह को जहां 97769 तो वहीं दीपक सक्सेना को 72991 वोट मिले थे। इन दोनों के बीच हार-जीत का अंतर 24 हजार से ज्यादा वोटों का था। हालांकि वर्ष 2008 के चुनाव की बात करें तो इस बार कांग्रेस के दीपक सक्सेना को जीत मिली थी। उन्होंने 64740 वोट हासिल कर भाजपा के वर्तमान विधायक चौधरी चन्द्रभान सिंह को तीन हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इस बार का विधानसभा चुनाव छिंदवाड़ा सीट से लड़ सकते हैं, लेकिन एक यह भी सच्चाई है कि कमलनाथ कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े हैं। वह यहां से 1980 से सांसद हैं। इस सीट पर कमनलाथ को सिर्फ एक बार ही हार मिली थी। वर्ष 1997 में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को करारी मात दी थी। वर्ष 1996 में कमलनाथ की जगह उनकी पत्नी चुनाव लड़ी थीं और जीत हासिल की थी।

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