स्टार प्रचारकों की कमी से जूझना होगा कांग्रेस को
ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल लगभग बज चुका है। संभवत: अगले माह के प्रथम सप्ताह में ही चुनाव आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता की घोषणा की जा सकती है। इसके पश्चात् चुनावी घमासान शुरू हो जाएगा। हालांकि इससे पूर्व ही कांग्रेस-भाजपा सहित प्रदेश के राजनैतिक दल इस चुनाव की तैयारियों में पूरे मनोयोग से जुटे हुए हैं, जिससे चुनावी माहौल बनने लगा है, लेकिन यदि हम कांग्रेस की बात करें तो अरसे से सत्ता से दूर बैठी पार्टी फिलहाल स्टार प्रचारकों की कमी से जूझ रही है और यह कमी कांग्रेस व उसके प्रत्याशियों को चुनावी समर में भी खासी खलेगी क्योंकि पार्टी में साफ-सुथरी छवि के गिने-चुने नेता ही बचे हुए हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश के सभी राजनैतिक दल व राजनीति से जुड़े लोग अभी से चुनावी गतिविधियों में व्यस्त हो गए हैं, हालांकि अभी न तो आदर्श आचार संहिता लागू हुई है और न ही अभी तक कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी घोषित हुए हैं, उसके बावजूद विधायकी के दावेदारों ने अंदरूनी तौर पर प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया है। वहीं माहौल बनाने के लिए सभाएं एवं वाहन रैलियों का दौर शुरू हो गया है। हम यदि भाजपा की बात करें तो केन्द्र में महज चार साल के शासन में जो लोकप्रियता पार्टी ने अर्जित की है, वह वास्तव में संगठन प्रबंधकों की क्रियाशीलता और सांगठनिक शक्ति का प्रभाव दर्शाती है। वहीं प्रदेश में विगत् 15 वर्षों से सत्ता में होने के कारण भाजपा में स्टार प्रचारकों की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, जबकि स्वतंत्र भारत में अधिकांशत: सत्ता में काबिज रही कांग्रेस के पास फिलहाल जो स्टार प्रचारकों का अभाव बना हुआ है, वह कहीं न कहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उदासीनता को दर्शाता है। यहां बताना गौरतलब होगा कि कांग्रेस में स्टार प्रचारकों की खासी किल्लत बनी हुई है। पार्टी में गिने-चुने चेहरे ही ऐसे बचे हैं, जिनके नाम पर भीड़ जुटाई जा सके। ऐसे में चुनावी दौर में कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए यह परेशानी का कारण बन सकता है कि वह अपने क्षेत्र की जनता को रिझाने के लिए आखिर किस नेता की सभा या रोड शो कराए क्योंकि पार्टी के स्टार प्रचारकों में सिर्फ दो-चार नेता ही हैं, जो पार्टी प्रत्याशी को लाभ दिला सकें।
इन नेताओं पर रहेगा दारोमदार
कांग्रेस में प्रचार का मुख्य दारोमदार सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, सुरेश पचौरी व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर ही रहेगा। इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह पर विगत् दिनों में जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोप लगे हैं, उसे देखकर नहीं लगता कि कोई भी प्रत्याशी उन्हें अपने क्षेत्र में बुलाना चाहे। वहीं दिग्गज नेताओं में शामिल डॉ. गोविंद सिंह व रामनिवास रावत खुद विधानसभा चुनाव लडऩे के कारण अपने-अपने क्षेत्रों में व्यस्त रहेंगे। इसके अलावा बाला बच्चन, जीतू पटवारी, अरुण यादव आदि में एक तो वह बात नहीं है कि उन्हें स्टार प्रचारक की सूची में शामिल किया जा सके वैसे भी वह स्वयं भी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाएंगे। वहीं यदि प्रदेश के बाहर की बात करें तो राहुल गांधी, सचिन पायलट, रणदीप सिंह सुरजेवाला आदि नेता आखिर कहां-कहां प्रचार करने जाएंगे। यदि कांग्रेस के मोर्चा-प्रकोष्ठों की बात करें तो युवक कांग्रेस, महिला कांग्रेस, एनएसयूआई व सेवादल में भी कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जो पार्टी प्रत्याशी के लिए जिताऊ साबित हो सकें। इसके विपरीत भाजपा में प्रदेश व केन्द्रीय स्तर पर स्टार नेताओं की लंबी-चौड़ी फौज शामिल है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं, जो अपने बूते पर नतीजों को पलटने का दम रखते हैं। अत: स्टार प्रचारकों की दृष्टि से भाजपा प्रत्याशियों के लिए मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशियों की तुलना में आसान नजर आता है। बहरहाल अब देखना यह है कि स्टार प्रचारकों की कमी से जूझ रही कांग्रेस चुनावों में इससे निपटने को आखिर क्या कदम उठाती है?