दो जातियों का दबदबा, ताकतवर नेता को भेजते हैं विधानसभा
अनिल शर्मा/भिंड। यह विधानसभा क्षेत्र अब ठाकुर बाहुल्य है, लेकिन ब्राह्मण वोट बराबरी से थोड़े ही कम हैं। यहां से ब्राह्मण व ठाकुर ही विधायक बनता रहा है। अभी तक किसी अन्य जाति को प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला, लेकिन ब्राम्हण व भदौरिया भी लगातार विधायक नहीं चुने गए हैं, एक विशेषता यहां के मतदाताओं की और है, यदि एक ही जाति के एक से अधिक उम्मीदवार भी मैदान में आ जाएं तो मतदाता ताकतबर उम्मीदवार का ही चयन कर मतदान करता है। उदाहरण बतौर 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्यदेव कटारे के मुकाबले ब्राह्मण समाज के ही दो उम्मीदवार शिवशंकर समाधिया और ओमप्रकाश पुरोहित भी लड़े, फिर भी जीत कटारे की हुई। इसी तरह 2008 के चुनाव में अरविन्द भदौरिया के मुकाबले बसपा से दिनेश भदौरिया चुनाव मैदान में थे और ब्राह्मण समाज के कटारे अकेले थे, फिर भी अरविन्द ही चुनाव जीते।
यदि 1957 के बाद के आंकड़ों पर नजर डालें तो गैर कांग्रेसी दल यहां काफी प्रभावी रहे हैं। 1957 में प्रसोपा के हरज्ञान बौहरे चुनाव जीते, उन्होंने कांग्रेस के बाबूराम को हराया। 1962 में कांग्रेस के रामकृष्ण से हरिज्ञान बुरी तरह चुनाव में पराजित हुए। 1967 के चुनाव में प्रसोपा के हरिज्ञान ने कांग्रेस के रामकृष्ण को बुरी तरह पराजित कर अपनी हार का न केवल बदला लिया बल्कि दो बार विधायक रहने का ऐसा इतिहास बनाया जो लंबे समय तक कोई राजनेता नहीं तोड़ पाया। 1972 के चुनाव में प्रसोपा का वजूद कम होने के बाद जनसंघ उभरकर आया। गत चुनाव में हार का अंतर काफी ज्यादा था, इसलिए कांग्रेस ने बुरी पराजय के बाद अपना प्रत्याशी ही बदल दिया। कांग्रेस नेे रामेश्वर दयाल अरेले को नया चेहरा बनाया। कांग्रेस का यह प्रयोग सफल रहा, रामेश्वर दयाल अरेले चुनाव तो जीत गए लेकिन जनसंघ के मानसिंह को भी अच्छे मत मिले, जबकि दो बार विधायक रहे एसओपी के उम्मीदवार हरज्ञान बोहरे बुरी तरह चुनाव में परास्त हुए। वे निर्दलियों से भी बहुत पीछे रह गए। 1975-76 के आपातकाल के बाद कांग्रेस की स्थिति पूरे देश में बिगड़ी, नतीजन 1977 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ सारे दल एक होकर चुनाव मैदान में उतरे। जिस तरह विपक्ष एकजुट होकर कांग्रेस से लड़ा तो उसके परिणाम अटेर में भी अच्छे निकले। यहां सम्मिलित जनता पार्टी के नए उम्मीदवार शिवशंकर समाधिया 29 हजार से अधिक मत पाकर विजयी हुए। जबकि कांग्रेस के अरेले 10 हजार मतों में ही सिमट गए।
नेताओं की राय
प्रदेश में भाजपा की सरकार है। मैं विपक्षी दल कांग्रेस से विधायक हूं, इस कारण क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण में परेशानी आना स्वभाविक है। फिर भी मेरे द्वारा विधायक की हैसियत से क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण कराया गया है। भिण्ड जिले में सर्वाधिक युवा पीढ़ी सेना में भर्ती की तैयारी करती है और यहां के लोग ही सबसे ज्यादा सेना में हैं, लेकिन पिछले वर्षों में ग्वालियर-चंबल संभाग में भर्ती सेंटर रोक दिए थे। जिसके चलते यहां के लोगों को दूर-दूर भर्ती के लिए जाना पड़ता था। मेरे द्वारा इस मामले को गंभीरता से उठाया गया और अब यह प्रक्रिया भिण्ड में ही शुरू होगी। विद्युत के मामले में भी क्षेत्र की समस्याओं के लिए सतत् प्रयासरत रहता हूं। लेकिन विपक्ष में होने के कारण उतने विकास नहीं करा पाया, जितने होने चाहिए थे। यदि अबकी बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो विकास की रफ्तार काफी तेज होगी।
हेमंत कटारे
विधायक कांग्रेस
अटेर से वह चुनाव हारे नहीं, बल्कि अपनों ने ही हराया है। 2017 के उपचुनाव में आम जनता का भरपूर आशीर्वाद मिला है। सर्वहारा वर्ग के वोट मिले हैं, कई गांव जो कांग्रेसी अपना गढ़ मानते थे वहां भी चुनाव जीता हूं, जिस तरह का अटेर के लोगों का अपार स्नेह व आशीर्वाद मिला, उसके अनुरूप बेशक विधायक नहीं चुन पाया, लेकिन जन-जन की आकाक्षाओं के अनुरूप क्षेत्र के विकास के लिए तत्पर हूं। प्रदेश व केन्द्र में भाजपा सरकार है, वह क्षेत्र में अधिक से अधिक विकास कराने के लिए जुटे हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि अटेर पुल निर्माण की है। इस पुल निर्माण से अटेर चहुमुखी विकास की मुख्यधारा से जुड़ेगा। अब अटेर की पर्यटन नगरी आगरा से दूरी काफी कम होगी। अटेर को भी पर्यटन से जोडऩे के लिए योजना प्रगति पर है। अटेर प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहां पर्यटन विभाग का एक होटल प्रस्तावित हो गया है। क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण विकास की उपलब्धि यह है, पूर्व में शासन में रहे जनप्रतिनिधि जो नहीं करा पाए, वह हमने किया। अटेर का वह हिस्सा जो पहुंचमार्ग से काफी दूर था, उसे पहुंचमार्ग से जोड़ा गया। समूचे क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाया है। सड़क, बिजली, पानी के मामले में पहले से काफी बेहतर हुआ है। यहां सिंचाई सुविधा बढ़़ी है, जिन नहरों में पानी नहीं आता था, उसमें अंतिम टेल तक पानी पहुंचा।
अरविंद भदौरिया
निकटतम प्रत्याशी, भाजपा
अटेर में विकास की स्थिति
ग अटेर-चंबल पुल निर्माण- 66 करोड़
ग कमई- सिमराव पुल निर्माण- सात करोड़
ग गोरमी से बूढऩपुर सड़क निर्माण- 39 करोड़
ग 33 केवी विद्युत स्टेशन- 22
ग 220 केवी प्रतापपुरा स्टेशन- एक
ग विद्युत फीडर सेपरेशन- 90 करोड़
मतदान केंद्र 288
कुल मतदाता 2,07,700
पुरुष मतदाता 1,17,457
महिला मतदाता 90,240
जातीय समीकरण
भाजपा- अरविन्द सिंह भदौरिया, मुन्नासिंह भदौरिया, अक्षय सिंह भदौरिया, उमेश सिंह भदौरिया बड़ापुरा, उमेश सिंह भदौरिया, आशीष सिंह भदौरिया, विक्रम जादौन, रमेश पाठक, ओमप्रकाश पुरोहित, विजय दैपुरिया।
कांग्रेस- हेमंत कटारे, श्रीमती मीरा कटारे, अरुण कटारे, शिवशंकर समाधिया, मनोज दैपुरिया, अंशू अरेले, डॉ. तरुण शर्मा, प्रिंस दुबे।
जातीय समीकरण
यंू कहें कि अटेर विधानसभा के चुनाव में जातिवाद की राजनीति की शुरूआत 1980 से ही हो गई थी। इस चुनाव के बाद राजनैतिक पार्टियों ने जातियता को ध्यान में रखते हुए टिकिट देना शुरू कर दिए। वहीं 1980 में जनसंघ को समाप्त कर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। यहां भाजपा ने रामकुमार चौधरी वकील को अपना उम्मीदवार बनाया। तो कांग्रेस ने क्षत्रिय समाज के परशुराम भदौरिया को चुनाव मैदान में उतारा और सफलता हासिल की। हालांकि भाजपा के रामकुमार चौधरी को भी सम्मानजनक बोट मिले, लेकिन जीत का सेहरा परशुराम सिंह के सिर पर ही बंधा।
2017 के उप-चुनाव की स्थिति
हेमंत कटारे कांग्रेस 59,228
अरविन्द भदौरिया भाजपा 58,371
जीत का अंतर 857