केपी सिंह के किले को भेदने की रणनीति में जुटी भाजपा

केपी सिंह के किले को भेदने की रणनीति में जुटी भाजपा
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पिछोर विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के लिए आसान नहीं 2018 का चुनाव

शिवपुरी/उमेश भारद्वाज। जिले की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने वाले पिछोर विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस पार्टी का गढ़ कहें तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी क्योंकि मध्य प्रदेश की स्थापना से लेकर 2013 के विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस पार्टी के 9 बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। वहीं भाजपा, जनसंघ और अपना दल से मात्र 5 बार विधायक निर्वाचित होने में सफल हुए हैं। पिछले 25 साल से कांग्रेस के विधायक केपी सिंह अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं। उनके गढ़ को भेदने के लिए भाजपा हर बार के चुनाव में पूरा जोर अजमाईश करती हैं फिर भी गढ़ को भेदने में सफल नहीं हो पा रही हैं, लेकिन इस बार भाजपा अलग ही रणनीति से काम कर रही है। भाजपा इस बार अपने मुखिया मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान एवं विकास के दम पर किला फतह करनेे की तैयारी में है।

18 से 20 हजार मतों से जीतने वाले विधायक केपी सिंह का 2013 के चुनाव में उमा भारती के भतीजे प्रीतम लोधी ने अवश्य पसीना छुड़ा दिया था। उनके जीत का अंतर सिमटकर करीब 7 हजार रह गया, इसलिए कांग्रेस को इस बार बेचैनी है। क्षेत्र के लोगों का आरोप हैं कि यदि भाजपा का स्थानीय नेतृत्व प्रीतम लोधी का खुलकर साथ दे देते तो केपी के गढ़ को भेदना कठिन नहीं था। हालांकि पिछोर विधानसभा क्षेत्र में बदलाव की हवा बह रही है। हवा के रूख को भाजपा समय रहते समझते हुए चुनाव जीतने के क्षेत्रीय समीकरणों पर अध्ययन करते हुए 2018 के चुनाव में किसी ऐसे नेता को उम्मीदवार बनाकर मैदान उतारे जिसको सभी समाज का समर्थन हासिल होने के साथ-साथ जनता को यह भरोसा और विश्वास दिला सके कि वह विधायक केपी सिंह से कमतर नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाल के पिछोर दौरे में जो जनसैलाव उमड़ा वह कांग्रेस खेमे में चिंता करने के लिए काफी है। इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के लिए 2018 में मुकाबला आसान नहीं रहने वाला है। कांग्रेस के वर्चस्व वाली विधानसभा सीटों पर भाजपा जिस तरीके से अधिक फोकस कर चुनाव तैयारी में जुटी है, उससे कांग्रेस में हलचल है। इस सीट पर भी भाजपा कुछ इसी ही रणनीति पर काम कर रही है।

ईमानदार छवि व विकास की वजह से जीतते हैं केपी सिंह

1993 से लगातार पिछोर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले केपी सिंह का जीत का आधार उनकी ईमानदार, विकास की छवि के साथ-साथ लोधी वर्सेस अन्य समाज को बताया जाता हैं। लोगों का मानना है कि लोधी समाज चुनाव के समय अपने समाज के उम्मीदवार को वोट करता है। जिसका विरोध ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, कुशवाह, यादव सहित अन्य समाज एकमत होकर केपी सिंह वोट करता हैं।

नहीं है उद्योग, शिक्षित बेरोजगार कर रहे शहरों की ओर पलायन

जीविका उपार्जन के लिए पिछोर क्षेत्र की जनता पूरी तरह खेती पर निर्भर बनी हुई है। शिक्षित बेरोजगार और श्रमिकों के लिए मध्य प्रदेश की स्थापना से लेकर अभी तक एक भी उद्योग क्षेत्र में स्थापित नहीं हुआ है। कृषि सिंचाई के लिए भी अपेक्षा कृत संसाधन उपलब्ध नहीं हो सके। नतीजा जनता जीविकाउपार्जन के लिए भारी परेशान हैं। शिक्षित बेरोजगार रोजगार की तलाश में अपने गांव से पलायन कर अन्य जिले और प्रांतों में निवास कर रहे हैं। खदानों पर भी दबंगों का कब्जा होने के कारण मध्यम व गरीब परिवारों को लाभ प्राप्त नहीं हो रहा।

नेताओं की राय

विधायक केपी सिंह अंग्रेजों की नीति पर चल रहे हैं। क्षेत्र में समाजों के बीच फूट डालकर अपना राजनैतिक बर्चस्व कायम किए हुए हैं। उन्होंने 25 साल के विधायकी कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में कोई विकास कार्य नहीं किया। गांव-गांव में लोग मूलभूत समस्याओं से त्रस्त हैं। पिछोर क्षेत्र में जो विकास भाजपा की सरकार ने किए हैं वहीं विकास कार्य दिखाई देते हैं। 2018 का चुनाव भाजपा अपने विकास के दम पर जीतकर आएगी।

प्रीतम लोधी

निकटतम प्रत्याशी, भाजपा

मतदान केंद्र 309

कुल मतदाता 2,30,412

पुरुष मतदाता 1,23,197

महिला मतदाता 1,07,213

जातीय समीकरण

जातीय समीकरण के हिसाब से पिछोर विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाताओं में लोधी समाज, आदिवासी समाज, यादव समाज, ब्राह्मण समाज, वैश्य समाज, क्षत्रिय समाज का काफी दबदबा है। इसके अलावा क्षेत्र में अन्य सामाज भी जीत में भागीदारी निभाते हैं।

संभावित प्रत्याशी

कांग्रेस- केपी सिंह।

भाजपा- प्रीतम लोधी, नरेन्द्र बिरथरे, राघवेन्द्र शर्मा, धैर्यवर्धन शर्मा, भैया साहब लोधी, नवप्रभा पडय़ा, श्रीमती ज्योति धर्मेन्द्र गुप्ता।

2013 चुनाव परिणाम

केपी सिंह कक्काजू कांग्रेस 78,995

प्रीतम लोधी भाजपा 71,882

जीत का अंतर 7113

अभी तक के विधायक

पहली बार 1957 में विधानसभा क्षेत्र का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में हिन्दू महासभा के बैनर तले लक्ष्मीनारायण गुप्ता विधायक निर्वाचित हुए। 1962 एवं 67 के चुनाव में भी लगातार लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने अपनी जीत दर्ज कराई। 1972 में कांग्रेस के भानू प्रताप सिंह, 1977 में जनता पार्टी के कमल सिंह पडेरिया, 1980 कांग्रेस के भैया साहब लोधी, 1985 में पुन: कांग्रेस के भैया साहब लोधी, 1990 में भाजपा के लक्ष्मीनारायण गुप्ता, 1993 से लेकर 2013 तक कांग्रेस के केपी सिंह चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचते रहे हैं।

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