क्या सिंधिया की राह में रोड़ा बन रही "तिकड़ी" ?

क्या सिंधिया की राह में रोड़ा बन रही तिकड़ी ?
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टिकट वितरण के मामले में नहीं बन पा रही एक राय, अपनों - अपनों को लेकर बड़े नेताओं में खींचतान

स्वदेश वेब डेस्क। एकजुटता की बात करने वाली कांग्रेस टिकट वितरण में ही छिन्न-भिन्न होती दिखाई दे रही है। हालत ये हो गई है कि टिकट वितरण को लेकर ही पार्टी में 3: 1 होने लगा है। सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और अजय सिंह एक तरफ है और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक तरफ। हालाँकि टिकट राहुल गांधी ही तय करेंगे लेकिन उसमें नेताओं की सिफारिश और सर्वे रिपोर्ट को महत्व दिया जायेगा।

कांग्रेस की भ्रामक सूचियाँ बहुत वायरल हो रहीं हैं लेकिन असली सूची 1 नवम्बर को आने की उम्मीद है। बताया जा रहा है कि छानबीन समिति ने 148 सीटों पर एक नाम तय कर लिया है और इसपर राहुल गांधी की मुहर लगना शेष है। राहुल गांधी के दौरे से लौटने के बाद 31 अक्टूबर को छानबीन समिति की बैठक होना है जिसमें बाकी 92 सीटों पर फैसला लिया जायेगा।

सवाल ये नहीं है कि उम्मीदवार कौन होगा ? यहाँ सवाल ये है कि प्रत्याशी किसका होगा अर्थात किस गुट का होगा। वो दिग्विजय समर्थक होगा या अजय सिंह या फिर कमलनाथ या सिंधिया गुट का। राहुल गांधी जबकि स्पष्ट कर चुके हैं कि प्रदेश में एकजुट रहकर चुनाव जीतना है। लेकिन राहुल गांधी की सभाओं में ही प्रदेश में अधिकांश जगह एकजुटता नहीं दिखाई दी। यानि सिंधिया, कमलनाथ ,दिग्विजय, अजय सिंह एक साथ शायद ही कभी दिखाई दिए हों। समझा जा सकता है कि जब सभाओं में ही कांग्रेस के बड़े नेता एक साथ नहीं बैठ सकते तो टिकट वितरण पर एक राय कैसे बन सकती है।

चूँकि पार्टी ने सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाकर ये जताया कि मध्यप्रदेश में पार्टी का यही चेहरा सामने होगा। सिंधिया ने भी शिवराज सरकार पर ताबड़तोड़ हमले करना शुरू कर दिए। उसके कुछ दिनों बाद ही अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाकर प्रदेश के सबसे अनुभवी नेता में से एक सांसद कमलनाथ को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। अब संकट ये कि पार्टी आलाकमान किसे आगे करे सिंधिया को या कमलनाथ को। ऐसे में दिग्विजय सिंह बीच में आये और अपने बयानों से कांग्रेस को ऊर्जा देने का प्रयास किया। साथ ही ये कहकर भी आश्वस्त कर दिया कि ना मुझे मुख्यमंत्री बनना है ना कोई पद चाहिए। उधर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने अपने प्रयास जारी रखे। अब जब राहुल गांधी को लगा कि मध्यप्रदेश में मामला गड़बड़ हो सकता है तो उन्होंने ग्वालियर चम्बल, मालवा, महाकौशल, विन्ध्य सहित सभी अंचलों में खुद ही चुनावों से पहले दौरा करना उचित समझा। हालाँकि ये तो समय ही बताएगा कि राहुल गांधी के इन दौरों का पार्टी को कितना लाभ होता है।

जानकार बताते हैं कि पिछले दिनों जब दिल्ली में राहुल गांधी की उपस्थिति में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में भी इन चारों नेताओं में अपने अपने प्रत्याशी को टिकट दिलाने की बात पर तनातनी हो गई थी। सूत्रों की बात पर भरोसा करें तो अधिकांश नामों पर कमलनाथ, दिग्विजय और अजय सिंह एकराय हो रहे थे लेकिन जैसे ही सिंधिया कोई नाम रखते कोई ना कोई उसका विरोध कर देता। सूत्र बताते हैं कि बैठक के दौरान किसी प्रत्याशी को लेकर अजय सिंह और सिंधिया के बीच हॉट टॉक भी हो गई जिसे राहुल गांधी ने सुलाझ्वाया। यानि नाम फायनल करने के लिए जब प्रदेश के चार बड़े नेता साथ बैठे तो मामला 3: 1 का हो गया। राहुल गांधी इस प्रयास में हैं कि टिकट वितरण में इन चारों नेताओं को भी संतुष्ट किया जाये साथ ही पार्टी को जिताऊ उम्मीदवार भी मिल जाएँ। अब देखना ये होगा कि राहुल गांधी और उनके क्षत्रप भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार को हटाकर प्रदेश में सत्ता की कुर्सी पर बैठने के लिए क्या रणनीति अपनाते। हालाँकि ये उतना आसान दिखाई नहीं देता जितना कांग्रेस समझ रही है।

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