नोटा से डर लागे रे...
राजलखन सिंह/ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। मध्यप्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा के बाद सियासी पारा चढ़ा हुआ है। कांग्रेस का सपा-बसपा व अन्य दलों से गठबंधन न होने से जहां भाजपा गदगद है तो वहीं कांग्रेस इसे अपनी चुनावी रणनीति बता रही है। वहीं अनुसूचित जाति-जनजाति कानून में संशोधन को लेकर सवर्णों के विरोध ने दोनों ही दलों के नेताओं की नींद उड़ा रखी है। इस विरोध के चलते एक नई पार्टी भी अस्तित्व में आती दिख रही है।
प्रदेश भर में इस समय नोटा की हवा भी चल रही है। दोनों प्रमुख दलों के नेता इस समय सबसे अधिक नोटा से डरे हुए हैं। आरक्षण विरोधी संगठन नोटा का बटन दबाने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में नोटा पर वोट गिरने के बाद दोनों पार्टियों के समीकरण बिगड़ सकते हैं। वर्ष 2013 के चुनाव में नोटा ने करीब दो दर्जन प्रत्याशियों का गणित बिगाड़ दिया था और वह नोटा को मिले वोट से कम अंतर से हार गए थे, इसलिए सबसे अधिक नोटा का डर इन्हीं प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा है।
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने वर्ष 2013 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में जगह दी थी। इस विधानसभा चुनाव में राज्य के 1.91 फीसदी लोगों ने 6,43,171 मतों को नोटा के रूप में प्रयोग किया था। राज्य में इन लोगों ने किसी भी उम्मीदवार को वोट पाने के योग्य नहीं मानकर नकार दिया था। नोटा ने इस चुनाव में बड़ा उलटफेर किया था, इसलिए दोनों पार्टियां नोटा से डरी हुई हैं। खासकर वह उम्मीदवार, जो नोटा के चलते मामूली अंतर से हार गए थे। साल 2013 में राज्य की करीब दो दर्जन सीटों पर नोटा के कारण बड़ा उलटफेर हुआ था। यहां जीत-हार का अंतर 1,000 से 4,000 वोटों तक था, जो नोटा से भी कम रहा। यानी मतदाताओं ने उम्मीदवारों के चयन से ज्यादा रुचि उनको खारिज करने में दिखाई। इस चुनाव में भी नोटा तीसरे विकल्प के रूप में उभरता दिखाई दे रहा है। अजा-अजजा कानून में संशोधन को लेकर सवर्ण समाज इस समय मैदान में है। सवर्णों की नाराजगी से चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का समीकरण बिगड़ सकता है। सवर्ण समाज भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक रहा है, लेकिन इस बार यह वोट बैंक भाजपा से कहीं न कहीं छिटकता दिख रहा है। वहीं सवर्ण समाज के विरोध का असर कांग्रेस पर भी पड़ेगा, इसलिए इस बार नोटा तीसरे विकल्प के रूप में उभरता दिखाई दे रहा है। इस बार सवर्ण आंदोलन और जयस की मौजूदगी के कारण नोटा के उपयोग के ज्यादा आसार दिख रहे हैं।
क्या है नोटा
अगर चुनाव में मतदाता को पार्टियों के प्रत्याशी पसंद नहीं आते हैं तो वह उन्हें नोटा के माध्यम से वोट डालकर खारिज कर सकता है।
नोटा के कारण जीता निर्दलीय
कुछ विधानसभा क्षेत्रों में तो नोटा ने दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों का गणित ही बिगाड़ दिया। सीहोर विधानसभा क्षेत्र में नोटा पर 2,379 मत पड़े। इसके चलते भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशी हार गए। यहां पर निर्दलीय प्रत्याशी सुदेश राय ने 1626 मतों से जीत दर्ज की। एक विधानसभा में नोटा का आंकड़ा नौ हजार से भी अधिक पहुंच गया था। पानसेमल विधानसभा में नोटा को 9,288 मत मिले थे, जबकि यहां पर जीत का अंतर 7,382 रहा। यानी जितने मतों से भाजपा प्रत्याशी जीते थे, उससे अधिक नोटा को वोट मिले।
इन सीटों पर जीत से अधिक नोटा को मिले थे वोट
विधानसभा हार का अंतर नोटा मत हारा प्रत्याशी
ग्वालियर पूर्व 1,147 2,112 मुन्नालाल गोयल (कांग्रेस)
सुरखी 141 1,558 गोविंद राजपूत (कांग्रेस)
जतारा 233 1,755 हरिशंकर खटीक (भाजपा)
गुन्नौर 1,337 2,991 शिवदयाल (कांग्रेस)
मनगवां 275 2,215 पन्नाबाई प्रजापति (भाजपा)
सीधी 2,360 2,761 कमलेश्वर द्विवेदी (कांग्रेस)
कोतमा 1,546 1,704 राजेश सोनी (भाजपा)
बड़वारा 3,287 4,390 विजय राघवेन्द्रसिंह (कांग्रेस)
विजयराघवगढ़ 929 4,112 पद्मा शुक्ला (भाजपा)
जबलपुर पूर्व 1,155 2,761 लखन घनघोरिया (कांग्रेस)
जबलपुर पश्चिम 923 3,693 हरेन्द्रजीत सिहं (भाजपा)
बरघाट 269 3,895 अर्जुनसिंह (कांग्रेस)
अमरवाड़ा 4,063 8,232 उत्तम प्रेमनरायण ठाकुर (भाजपा)
पांढुर्ना 1,478 4,251 टीकाराम कोराची (भाजपा)
सिरोंज 1,584 2,224 लक्ष्मीकांत (भाजपा)
इछावर 744 1,989 करनसिंह (भाजपा)
सीहोर 1,626 2,379 ऊषा रमेश सक्सेना (भाजपा)
शाजापुर 1,938 2,401 कारादा हुकुमसिंह (कांग्रेस)
भीकनगांव 2,399 3,719 नंदा ब्राम्हने (भाजपा)
भगवानपुरा 1,820 5,166 गजेन्द्र सिंह (भाजपा)
पानसेमल 7,382 9,288 चन्द्रभाग किराडे (कांग्रेस)
सरदारपुर 529 2,911 प्रताप गरेवाल (कांग्रेस)
मनावर 1,639 2497 निरंजन दावर लोनी (कांग्रेस)
सैलाना 2,079 4,588 गुड्डू गहलोत (कांग्रेस)