विदेशों में कारोबार, हेलीकॉप्टर के शौकीन, 70 फीसदी विधायक हैं करोड़पति
राजलखन सिंह। मध्यप्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज चुका है और चुनाव मैदान में उतरने के लिए उम्मीदवार शक्ति-प्रदर्शन कर रहे हैं। चुनावों में जहां भारी धन-बल का उपयोग होता है तो वहीं कुछ ऐसे भी उम्मीदवार हैं, जो सादगी के साथ चुनाव लड़ते हैं। वर्ष 2013 के चुनाव की बात करें तो करीब 70 फीसदी ऐसे लोग विधायक बने थे, जो करोड़पति थे, जबकि कुछ ऐसे भी हैं, जिनकी आय सालाना मात्र तीन हजार रुपए थी। सबसे अमीर विधायकों में संजय पाठक का नाम है। उनका विदेशों में कारोबार है और स्वयं का हेलीकॉप्टर रखते हैं। वहीं सबसे गरीबों विधायकों में म.प्र. की हटा विधायक उमादेवी खटीक का नाम आता है। वह विधायक बनने से पहले शिक्षिका थीं और उन्होंने अपनी आय 3100 रुपए सालाना बताई थी। प्रत्याशियों की आय का आंकलन उनके द्वारा चुनाव में दिए गए हलफनामे से किया गया है। इस बार भी करोड़पति और गरीब उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरने के लिए लालायित हैं।
सबसे अमीर विधायकों में संजय पाठक का नाम
देश के सबसे अमीर विधायकों में प्रदेश के कटनी जिले के विजयराघवगढ़ से भाजपा विधायक संजय पाठक (मंत्री) का नाम भी सामने आया है। इनका प्रदेश में खदानों का काराबोर है। कारोबारी परिवार से आने वाले इस विधायक के पास खुद का हेलीकॉप्टर भी है। पाठक की सालाना आय 8 करोड़ 94 लाख रुपए है। वह देश के टॉप 20 में से नौवें स्थान पर हैं। उनके पास न केवल 141 करोड़ की संपत्ति है बल्कि खुद का हेलीकॉप्टर भी है। वहीं मध्यप्रदेश विधानसभा में दो-तिहाई यानी 70 फीसदी विधायक करोड़पति हैं। पिछले चुनाव में 187 करोड़पति उम्मीवार चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे थे, जिनमें सबसे अमीर उम्मीदवार कांग्रेस के संजय पाठक थे। चुनाव मैदान में उतरे 187 करोड़पति उम्मीदवारों में भाजपा के 93 और कांग्रेस के 94 उम्मीदवार करोड़पति थे। भाजपा के सबसे अमीर उम्मीदवार संजय कुमार शर्मा थे, जो तेंदुखेड़ा से चुनाव लड़ रहे थे। संजय शर्मा के पास 27 करोड़ 95 लाख रुपए की संपत्ति है। इसके बाद नम्बर आता है रतलाम शहर से भाजपा प्रत्याशी चेतना कश्यप का। उनके पास 22 करोड़ 22 लाख रुपए की घोषित संपत्ति है। देपालपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े मनोज पटेल की संपत्ति 18 करोड़ 22 लाख रुपए थी। वहीं सेमरिया से चुनाव लड़ी नीलम मिश्रा के पास 12 करोड़ की संपत्ति थी, जबकि रीवा से चुनाव लड़े प्रदेश के ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के पास 9 करोड़ 40 लाख रुपए, जबकि इन्दौर क्रमांक-1 से चुनाव लड़े प्रदीप यादव की संपत्ति 23 करोड़ दस लाख रुपए थी। भोपाल के गोविंदपुरा से चुनाव लड़े गोविंद गोयल की घोषित संपत्ति 22 करोड़ 57 लाख रुपए और कसरावद से कांग्रेस प्रत्याशी स्व. सुभाष यादव के पुत्र सचिन यादव की घोषित संपत्ति 21 करोड़ रुपए थी। वहीं इन्दौर क्रमांक-5 से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े पंकज संघवी की घोषित संपत्ति 13 करोड़ 54 लाख रुपए थी।
168 विधायकों ने घोषित किया था व्यवसाय, 57 ने नहीं दी थी जानकारी
वर्ष 2013 के विधानसभा निर्वाचन में जीतने वाले 168 विधायकों ने ही चुनावी हलफनामे में अपने व्यवसाय की जानकारी दी थी, जबकि 57 विधायक वर्तमान में ऐसे थे, जिन्होंने चुनावी हलफनामे में अपने निजी कारोबार के बारे में नहीं बताया था। इनमें 36 भाजपा, 18 कांग्रेस, 1 निर्दलीय और 2 अन्य पार्टियों के थे।
सांसदों की तुलना में विधायक तेज गति से हो रहे धनी
सांसदों की तुलना में विधायक ज्यादा तेज गति से धनी हो रहे हैं। कुछ विधायकों की संपत्ति तो 500 गुना से भी अधिक गति से बढ़ी है। एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि पैसा बनाने के मामले में विधायक सांसदों को पीछे छोड़ चुके हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 में लोकसभा में 168 सांसद दोबारा चुनकर आए। इनमें से 165 की औसत संपत्ति 12.78 करोड़ रुपए थी। यह वर्ष 2009 की उनकी संपत्ति से 137 फीसदी ज्यादा थी, लेकिन इस दौरान मध्यप्रदेश के विधायकों की औसत संपत्ति 290 फीसदी बढ़ गई। छत्तीसगढ़ के विधायकों की औसत संपत्ति 147 फीसदी बढ़ी।
अमीर उम्मीदवारों के जीतने की संभावना ज्यादा
मतदाताओं के बीच भी अमीर विधायकों और सांसदों की पसंद बढ़ती जा रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हर पांच उम्मीदवारों में से एक की संपत्ति 5 करोड़ रुपए से ज्यादा थी। अमीर उम्मीदवारों के जीतने की संभावना आम उम्मीदवारों की तुलना में 10 गुना ज्यादा होती है। गरीब राज्यों में भी मतदाताओं के बीच अमीर उम्मीदवारों को तरजीह मिल रही है। नवम्बर 2013 के विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश में एक करोड़ की संपत्ति वाले विधायकों के जीतने की संभावना 46 फीसदी, जबकि छत्तीसगढ़ में 42 फीसदी थी। हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विधायकों के अधिक तेजी से अमीर होने की बात इसलिए भी सामने आ रही है कि सांसदों की संपत्ति के ब्योरों के बारे में ज्यादा पता नहीं चलता है। विधायक स्थानीय राजनीति से जुड़े होते हैं, इसलिए उन्हें संपत्ति छिपाना मुश्किल होता है। पर्चा दाखिल करते समय उनकी संपत्ति का ऐलान वास्तविकता के काफी करीब होता है।