सवर्ण आंदोलन से डरी कांग्रेस नहीं करेगी बसपा से गठबंधन
भोपाल/स्वदेश वेब डेस्क। अभी तक यही बात सामने आ रही थी कि बसपा ने सम्मानजनक सीटे नही मिलने के कारण कांग्रेस से चुनावी गठबंधन नही किया लेकिन यह पूरा सच नही है दरअसल एट्रोसिटी एक्ट को लेकर सवर्णों की नाराजगी व सपाक्स समाज को मिलते जनसमर्थन के चलते कांग्रेस ने ही यह गठबंधन नही किया। पार्टी पूरे सवर्ण आंदोलन पर नजर रखे हुए थी और हालातो के हिसाब से रणनीति भी बना चुकी थी। अगर सवर्ण आंदोलन तेज होने की जगह कमजोर हो जाता तो कांग्रेस बसपा से गठबंधन कर लेती लेकिन आंदोलन दिनो दिनो तेज होता गया इसके चलते कांग्रेस को चुनाव में नुकसान दिखने लगा और उसने खुद ही बसपा से दूरी बना ली।
कांग्रेस में पिछड़े वर्ग के बड़े नेता एवं राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल स्वीकार करते है कि है सपाक्स आंदोलन के बाद बसपा से गठबंधन फायदे का सौदा नहीं होता। विंध्य क्षेत्र के एक और ताकतवर नेता का मानना है कि ब्राह्मण, ठाकुर और पिछड़ा वर्ग के वोटर हमेशा भाजपा के साथ रहें है। इस आंदोलन के बाद अब उनका झुकाव कांग्रेस की ओर हो रहा है। ऐसी स्थिति में बसपा से गठबंधन होता तो यह वर्ग फिर कांग्रेस से दूर हो जाता।
पदौन्नति में आरक्षण व एट्रोसिटी एक्ट के मुद्दो पर सपाक्स समाज का आंदोलन तेज होता जा रहा है कल रविवार को राजधानी में हुई रैली व सभा में जिस तरह से प्रदेश भर से लोग जुटे उसने भाजपा व कांग्रेस को चिंता में डाला ही साथ ही कांग्रेस के मन से भी बसपा से गठबंधन का विचार पूरी तरह निकाल दिया।
पार्टी सूत्रों कि माने तो एट्रोसिटी एक्ट को लेकर सवर्णों की नाराजगी और एकजुटता को देखते हुए कांग्रेस गठबंधन के नए विकल्पों पर विचार करने लगी रही है। पिछले कुछ दिनों में सपाक्स संगठन द्वारा सवर्ण समाज को एकजुट करके जो लगातार विरोध प्रदर्शन और बंद जैसे कदम उठाए गए उससे ही कांग्रेस ने व बसपा से गठबंधन करने में जल्दीबाजी नही की। पार्टी नेताओ का मानना था कि इस समय गठबंधन होता और पार्टी बसपा के साथ खड़ी होती है तब सवर्ण समाज के मतदाताओं का उससे दूर होना तय था । यही वजह है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ गठबंधन को लेकर जल्दीबाजी में नही थे। मीडिया द्वारा बसपा से गठबंधन करने संबधि सवाल पूछे जाने पर वह इस मामले मे सीधा सीधा जवाब न देते हुए मामले को केंद्र के पाले में डालने लगे थे । वही बसपा यह बात समझ गई थी कि अब गठबंधन होना मुश्किल है इसलिए उसने अपना अकेले लडऩे का रास्ता चुन लिया। अब बदले हालात में कांग्रेस के दिग्गज नेता उस रास्ते की तलाश कर रहे हैं जिससे कि वह न सिर्फ आरक्षित वर्ग के अपने वोटर को साथ बनाए रखें बल्कि सवर्ण समाज के वोट तक भी पहुंच सके।