मतदाताओं को हमेशा लुभाते रहे हैं नारे
चुनाव डेस्क/दिनेश राव। चुनाव हों और नारे न लगे। ऐसा तो हो ही नहीं सकता। हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियां कभी पुराने नारे तो कभी नये-नये नारे गढ़कर मतदाताओं को अपनी ओर प्रभावित कर वोट बटोरने का काम करते हैं। चुनाव आयोग की सख्ती के चलते भले ही यह नारे दिन रात नहीं सुनाई देते हों लेकिन एक समय था जब गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले एक से बढ़कर एक लाजवाब नारों की गूंज सुनाई देती थी। कभी कभी तो यह नारे जनमानस पर इतना असर डालते थे कि सत्ता भी पलट
जाती थी। हालांकि इस बार पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में कोई प्रभावी नारा सुनाई नहीं दे रहा है, लेकिन पिछले हुए चुनावी नारों पर नजर डालें तो एक से बढ़कर एक गढ़े गए नारों ने जनता का मानस बदलने का बखूबी काम किया है। चुनाव वाले पांच राज्यों में सबसे बड़े राज्य मध्यप्रदेश की बात करें तो इस बार अभी तक कोई प्रभावी नारा सुनाई नहीं पड़ा है। विभिन्न दलों की ओर से ऐसे नारे का इंतजार है जो जनता को लुभा सके और मतदाताओं को अपनी ओर खींच सके।
हार जीत का कारण भी बनें
जब देश पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझा तो खाद्य पदार्थों की भारी कमी पड़ गई। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान जय किसान का नारा देकर देश को तरक्की की दिशा दिखाई तो कांग्रेस को बड़ी जीत भी हासिल हुई। 1971 के चुनाव में 'गरीबी हटाओ, देश बचाओ के करिश्मे से इंदिरा अपने समकालीन नेताओं पर भारी पड़ीं। लेकिन, 1977 में जनता पार्टी के नारे 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ की आंधी में आयरन लेडी टिक न सकीं। हालत यह हो गई कि खुद रायबरेली में ही हार गईं, लेकिन श्रीकांत वर्मा ने जब नारा दिया, 'जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मोहर लगेगी हाथ पर तो जनता ने फिर इंदिरा का साथ दिया। 'इंदिरा तेरी यह कुर्बानी याद करेगा हिंदुस्तानी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए चुनाव में इस नारे तो कमाल कर दिया। सहानुभूति के इस नारे का जबर्दस्त असर रहा और जनता की पूरी सहानुभूति कांग्रेस को मिल गई और कांग्रेस को प्रचंड वोट मिले। जब राजीव गांधी पहला चुनाव लड़े तो उनका नारा था 'उठे करोड़ों हाथ हैं राजीव जी के साथ हैं इसका पार्टी को खूब लाभ मिला। भाजपा ने 'अबकी बार अटल बिहारी नारे से कांग्रेस को ऐसा जोर का झटका दिया कि अटल बिहारी वाजपेयी सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जा बैठे। 1996 में वाजपेयी की भ्रष्टाचार मुक्त छवि को लेकर बनाए गए नारों को लेकर सत्ता में आई भाजपा 2004 में 'इंडिया शाइनिंग के अपने ही नारे में चमक खो बैठी और सत्ता से दूर हो गई।
यह भी रहे चर्चा में
-जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू
-जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा
-सोनिया नहीं ये आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है
-कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ
-गुंडा चढ़ गया हाथी पर, गोली मारा छाती
-पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा
-चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल
-चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगा दो हाथी पर
-यूपी हुई हमारी है, अब दिल्ली की बारी है।
भाजपा की चुनावी चौसर
नारों से चुनावी चौसर बिछाने में भाजपा भी पीछे नहीं रही। उसने भी सत्ता तक पहुंचने के लिए कांग्रेस को चुभते नारे गढ़े-'ये देखो इंदिरा का खेल, खा गई शक्कर पी गई तेल, 'आपका वोट राम के नाम, हम सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे, 'राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, 'ये तो केवल झांकी है, काशी मथुरा बाकी है। इस तरह के कई ऐसे नारे थे जो चुनावी परिदृश्य में काफी चर्चित रहे। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अबकी बार, मोदी सरकार और अच्छे दिन आएंगे अब भी आम आदमी को लुभाते हैं। अच्छे दिन आएंगे का नारा तो विदेशों में भी लोकप्रिय हुआ था। 2014 में इस नारे ने भाजपा के लिए कैसा असर किया इसका नतीजा सब देख चुके हैं। अब जब मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं तब ऐसे में कुछ नारे इन दिनों चल रहे हैं, हालांकि इनका असर पुराने नारों जैसा तो नहीं है लेकिन कुछ लुभावना जरूर है। भाजपा ने नारा दिया है- अबकी बार 200 पार। बाकी पार्टियों के लिए इसके जवाब में नारा लाना चुनौती है। इसी तरह और भी नारे बनाए गए हैं। हर बार, भाजपा सरकार। युवाओं का संदेश, समृद्ध मध्यप्रदेश। लेकिन इनमें 1996 और 2014 जैसा जादू नजर नहीं आता है। कांग्रेस ने एक नारा दिया है किसानों का कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ और प्रदेश से बीजेपी साफ। थोड़ा बड़ा है लेकिन प्रभावी नजर आता है। कांग्रेस की ओर से दिया गया स्लोगन, क्योंकि यहां भाजपा है....भी खूब चल रहा है। पहली बार मैदान में उतर रही सपाक्स का नारा है- जय जय सपाक्स, घर-घर सपाक्स।