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90 की कारसेवा और वह भावुक पल: जिसने पुलिस, अधिकारी, ग्राम्य यहां तक की हर जन को राममय बना दिया था
रिटायर्ड प्रोफेसर सदानंद दामोदर सप्रे
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (मैनिट) के रिटायर्ड प्रोफेसर सदानंद दामोदर सप्रे जैसे तमाम रामभक्त हैं जोकि राम के काज के लिए कुछ दिन का शाासकीय अवकाश लेकर कारसेवा के लिए निकल पड़े थे, फिर उन्हें भी नहीं पता चला कि निकले तो कुछ दिन के लिए पर कई माह तक ये सभी अलग-अलग जेलों में बंद रहे । आज इन सभी की तपस्या एवं नित्य साधना का ही प्रभाव है जो भगवान राम अपने भवन में 22 जनवरी को विराजमान होने जा रहे हैं। इस वक्त प्रो. सप्रे प्रज्ञा प्रवाह जैसे संगठन से जुड़कर राष्ट्रीय मुद्दों पर वैचारिकी के लिए देश भर में अलख जगाने के लिए भ्रमण करते हैं, और बीच-बीच में कुछ क्षण की विश्रांति पाने भोपाल चले आते हैं । उन्होंने यहां राम मंदिर को लेकर अपने जीवन से जुड़े जीवन्त अनुभव को हमारे साथ आज साझा किया है।
कभी कबड्डी हो रही है, तो कहीं ताश की गड़डियों में से भिन्न प्रकार के खेल निकल रहे हैं । कहीं बीड़ी-सिगरेट के धुंए निकल रहे हैं, तो कहीं भजन के स्वर आकाश के उड़ते परिंदों को भी अपनी सुमधुर आवाज से ठिठकरने पर मजदूर कर रहे हैं । ये थे नजारे जौनपुर के "कृष्ण मंदिर (कारागृह) के, जहां वे कारसेवक बंदी थे, जो रामजन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण के लिये जाते हुए मार्ग में ही उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पकड़ लिये गये थे। भांति-भांति के लोग यहां थे। सबके अपने-अपने तौर-तरीके थे और वे इतने अलग-अलग कि कुल मिलाकर वहां शिवजी की बारात जैसा दृश्य उपस्थित हो रहा था।
जौनपुर निवासियों की वो सह्दयता
अलग-अलग स्थानों से आये हुए कारसेवकों को गत 30 अक्टूबर को रीवा के पास हनुमना से उत्तरप्रदेश की सीमा में प्रवेश करते समय पकड़ा गया था। जौनपुर कारागृह के अंदर आलू की खेती को थोड़ा समतल करके शामियाने लगाये गये और उनमें कारसेवकों को ठहराया गया। इस तरह वहा 2000 कारसेवकों का शिविर लग गया था। खानेपीने की कुछ अव्यवस्था तो होनी ही थी। लेकिन 'कारसेवक असुविधाओं को हंसते-खेलते सहते रहे। पहले दिन का खाना बहुत ही खराब था। अत: उसके बारे में शिकायत की गई। उसके बाद से खाने के स्तर में कुछ सुधार हुआ।
जौनपुर निवासियों ने भी बीच-बीच में कारसेवकों के लिये खाद्य सामग्री की व्यवस्था की। भोजन व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिये कारसेवकों ने खुद होकर वहां के काम में हाथ बटाया। वैसे भी इतने लोगों की भोजन व्यवस्था करना जेल अधिकारियों के बूते भी नहीं था ।1 नवम्बर को वहां अफवाह उड़ी कि कल सब को छोड़ा जायेगा। उस दिशा में कुछ कदम भी उठते हुए दिखे। उससे सभी कारसेवकों में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी और सभी ने निश्चय किया कि वे सीधे अयोध्या जायेंगे, क्योंकि कारसेवा शुरू हो गयी, यह समाचार वहां प्राप्त हो गया था। शायद अधिकारियों को इसकी भनक लग गयी और 2 नवम्बर को छोड़नेवाली बात समाप्त हो गयी। आखिर में जब कारसेवा स्थगित करने की घोषणा हुयी, तो उसके बाद ही 7 नवम्बर को सबको छोड़ा गया।
रास्ते भर एक ही अनुभव आया - "राम राष्ट्र है- राष्ट्र राम है"
राममय जनता कारागृह का वर्णन करने के साथ-साथ वहां पहुंचने तक का वर्णन करना भी यहां मुझे लगता है बहुत आवश्यक है, क्योंकि मार्ग में जो भी अनुभवन आये, उनसे "राम राष्ट्र है- राष्ट्र राम है" इस बात का साक्षात्कार हुआ। कारसेवकों से भरी हुई बसें जिस मार्ग से भी जाती थी, वहां की जनता खुले दिल से हाथ उठाकर 'जय श्रीराम कहकर कारसेवकों का अभिवादन करती थी। जहां कहीं भी बसे रुकतीं, आसपास के लोगों में कारसेवकों की सेवा करने की होड़ लग जाती। कोई पानी पिलाता, तो कोई भोजन एवं अन्य आवश्यक सामग्री देने के लिए कारसेवकों के समझ उपस्थित हो उठता।
चीजें इतनी अधिक होजाती थीं कि कई बार तो कार सेवक को स्वयं से आगे होकर उन्हें लेने से मना करना पड़ता लेकिन लोगों की श्रद्धा रहे जोकि यही कहे कि ये तो आपके लिए ही है, इसलिए अब आप ही इसे रखें। वस्तुएं देने के बाद देने वाले की आंखों में धन्यता के भाव उभरकर आ जाते थे। क्या उनके मन की रामभक्ति कारसेवकों से कम थी ?
एक तरफ अन्याय से मोर्चा ले रहे स्व. अशोक सिंहल जी, सुश्री उमा भारती जैसे लोग रहे तो दूसरी ओर आम जन
वास्तव में इन्हें देखकर लंका जाने के लिये सेतु निर्माण की घटना का स्मरण हो आता है। एक ओर जहा हनुमान- अंगद जैसे महावीर बड़ी-बड़ी शिलाए ला रहे थे, वहीं एक छोटी सी गिलहरी अपने शरीर को लगे बालुकण सेतु पर जाकर झाड़ आती थी और कृतकृत्य होती थी। रामभक्ति में वह क्या बड़े-बड़े महावीरों से कम थी? इसी तरह रामजन्मभूमि के संपूर्ण समर में एक ओर जहां कारसेवा करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग करनेवाले और घायल होने वाले रामभक्त थे, जिसमें कि स्व. अशोक सिंहल जी तथा सुश्री उमा भारती जैसे सभी बाधाओं को पार करके अग्रिम पंक्ति में रहने वाले बड़े नेता महावीरों जैसे रहे तो दूसरी ओर श्रद्धापूर्वक कारसेवकों को पानी पिलानेवाले, अन्य आवश्यक जरूरतों को पूरा करनेवाले छोटे-छोटे बच्चे गिलहरी जैसे हैं। सभी के अंतकरण मे रामभक्ति लबालब भरी हुई थी। कारसेवा के समय में चहुंओर राममय भाव ही दिखाई दे रहा था।
हनुमना के ग्रामीणों की राम भक्ति के हो गए थे सभी मुरीद
सारे मार्ग में ''जन-जन के मन में राम बसे'' इस बात की सत्यता सामने आती रही। रीवा जिले का उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ छोटासा गांव हनुमना। वहां बैरियर लगा हुआ था। वहीं पर गिरफ्तारियां हो रही थीं। हजारों की संख्या में कारसेवक गिरफ्तार हो रहे थे। लेकिन अपने गांव से कारसेवक भूखे पेट जेल जा रहे हैं, यह बात हनुमनावासियों को कैसे अच्छी लगती ? गांव छोटा है तो क्या, दिल तो बड़ा है। बस, फिर गया था। घर-घर से सब्जी-पूड़ी बनने लगी कारसेवकों को परोसी जाने लगी + अक्षरश: अखण्ड चक्र चलता रहा।
कई कारसेवकों का व्रत है यह मालूम हुआ तो तुरन्त उनके लिये पर्याप्त फलों की व्यवस्था की गयी। इसतरह एक भी कारसेवक खालीपेट जेल में नहीं गया। यह तो था मध्यप्रदेश का उदाहरण। लेकिन क्या उत्तरप्रदेश किसी मामले में कम था ? हनुमना से जौनपुर का रास्ता 4-5 घण्टे का है। रास्ते में एक जगह किसी कारण बसों का काफिला रूका। वहां 40-50 मकानों का छोटा सा गांव था। ग्रामवासी तुरन्त सबको पानी पिलाने में जुट गये।
राम भक्ति इतनी कि दुकानदार अपनी पूरी दुकान ही कार सेवकों पर लुटा दे रहे थे
यहीं एक छोटी सी दुकान थी। दुकानदार बोला कि वहां जेल में न जाने कुछ खाने को मिले या न मिले, आप ये ले जाओ। ऐसा कहकर उसने मुरमुरों से भरे दो बोरे खोले और सब को बांटने लगा, क्योंकि मुरमुरों के अलावा और कुछ खाने का सामान उसकी दुकान में नहीं था। उसे बहुत समझाया कि सबका भोजन हो चुका है। लेकिन रामभक्त ऐसी बात थोड़े ही मानते हैं। उसने तो दोनों बोरे खाली करके ही दम लिया।
श्रीराम की भक्ति में पुलिस भी पीछे नहीं रही
घर से चल कर, घर वापसी तक जितने भी पुलिस वाले सम्पर्क में आए उनमें से कुछ अपवादों को छोड़कर बाकी सभी कारसेवकों से सहानुभूति रखने वाले मिले। हनुमना के आगे जहां गिरफ्तारी हो रही थी, वहां के पुलिस वालों ने ही लगभग एक बजे समाचार दिया कि अयोध्या में कारसेवा शुरू हो गयी है । समाचारों में तो कारसेवा शुरू नहीं हो पाई, ऐसा कहा गया था, लेकिन वायरलेस के द्वारा उन्हें वह सूचना प्राप्त हुई थी, जो उन्होंने अविलम्ब कारसेवकों को दे दी। सबसे महत्व की बात यह है कि सूचना देते समय उनके चेहरे पर भाव ऐसे थे कि मानों कारसेवकों के साथ-साथ उनकी भी जीत ही हो।
वी. पी. सिंह और मुलायम सिंह के विरोध का भरपूर आनन्द लेते थे पुलिस वाले
जेल में भी वहां के पुलिस अधिकारियों ने कारसेवकों के लिये समाचार पत्र, दूरदर्शन इत्यादि की व्यवस्था की थी। ऊपर से उन्हें ऐसे आदेश थे कि कारसेवकों को अधिक से अधिक कष्ट दिया जाए, लेकिन वे यथासंभव सहायता करने का ही प्रयास करते थे। यहां तक कि कार सेवकों द्वारा वी. पी. सिंह और मुलायम सिंह के विरोध में जो आक्रोश व्यक्त होता था, उसे रोकने के प्रयास तो छोड़ ही दीजिये, हंस-हंस कर उसका आनन्द भी लेते थे। इसके बाद जब कारसेवक रिहा होकर अपने घरों को वापिस जाने लगे तो उनमें से कुछ से रहा नहीं गया और वे कारसेवकों के पास आकर बोले कि आप लोगों के जाने के बाद हमें अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि यहां का राममय वातावरण समाप्त हो जायेगा ।