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हमें पाश्चात्य की ओर देखने की जरूरत नहीं, हमारे पास कालिदास हैं : वामन केंद्रे
भोपाल। चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल में पांचवी मास्टर क्लास 'अभिनय' पर केंद्रित रही, जिसे मराठी सिनेमा के चर्चित निर्देशक-रंगकर्मी एवं पद्मश्री से सम्मानित श्री वामन केंद्रे ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अमूर्त चरित्र को जिंदा कर लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया ही अभिनय है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक नए इंसान को दर्शकों के सामने लाने को ही मैं अभिनय मानता हूं। एक प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री केंद्रे ने कहा कि हमें पाश्चात्य की ओर देखने की ज़रूरत नहीं है। हमारे पास कालिदास हैं, भरतमुनि हैं, भवभूति और रवींद्रनाथ टैगोर हैं। हमारे पास एक्टिंग, डायरेक्शन सभी की परंपरा है। यही हमारी अमीरी है।श्री केंद्रे ने प्रशिक्षण के महत्व को समझाते हुए कहा कि अप्रशिक्षित अभिनेता अभिमन्यु की तरह होते हैं और प्रशिक्षण उन्हें चक्रव्यूह तोड़ने के लिए ज़रूरी है।
यह प्रण करें कि टिकट खरीद कर ही थियेटर देखेंगे -
श्री वामन केंद्रे ने कहा कि अगर हिन्दी थियेटर को सिनेमा की तरह लोकप्रिय बनाना है तो पैसे देकर टिकट लेकर देखने जाएं और दूसरों से भी यही कहें कि वह भी टिकट लेकर ही थिएटर देखने जाएं। इस मास्टर क्लास का संचालन भारतीय चित्र साधना के महासचिव श्री अतुल गंगवार ने किया।
सिनेमा को समाधान ढूंढना चाहिए : श्री अभिनव कश्यप
चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल में आयोजित खुले मंच (ओपन फोरम) में सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक श्री अभिनव कश्यप ने युवा फिल्मकारों एवं विद्यार्थियों के साथ सिनेमा और उससे जुड़े पहलुओं पर संवाद किया। अपनी बात को शुरू करते हुए श्री कश्यप ने कहा कि वे फिल्म के पार्ट्स या सीक्वल बनाने में यकीन नहीं रखते। गन्ने की तरह बार-बार निचोड़कर रस निकालने की कोशिश की जाती है और पब्लिक से पैसा खींचा जाता है। उन्होंने कहा कि फिल्मों का उद्देश्य समाधान देना होना चाहिए।
एक लॉबी यह निश्चित करती है कि क्या दिखाया जाएगा -
श्री कश्यप आगे कहते हैं कि ओटीटी और विभिन्न विकल्प आ जाने के बाद आप अब वह कंटेंट नहीं देखेंगे जो दिखाया जाएगा। अब आपको जो देखना है, आप उधर जाएंगे। आप एक ही चीज देखने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि फ़िल्म निर्माताओं को लोगों के बीच में जाकर यह जानना पड़ेगा कि आखिर लोग क्या देखना क्या चाहते हैं?
कमल बनना चाहते हैं तो कीचड़ को अनुपयोगी से उपयोगी बनाना पड़ेगा -
बॉलीवुड में फैली गंदगी को लेकर पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री कश्यप ने कहा कि अगर कमल बनना चाहते हैं तो कीचड़ को अनुपयोगी से उपयोगी बनाना पड़ेगा। आप भी साथ आइए, गंदगी हटाई जा सकती है। इस प्रतीक्षा में मत रहिए कोई आएगा और आपका काम करेगा, आप खुद आगे आइए और गंदगी को बाहर करिए। इस कार्यक्रम के मॉडरेटर राकेश मित्तल थे।
इन्हें मिले अवार्ड -
चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल के चतुर्थ संस्करण में पांच विभिन्न श्रेणियों में कुल 10 लाख के नगद पुरस्कार भारतीय चित्र साधना की ओर से दिए गए। लघु फिल्म 'छोटी सी बात' एवं डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'भारत- प्रकृति का बालक' के निर्माता क्रमशः कबीर शाह और दीपिका कोठारी को 1-1 लाख रुपये राशि के सबसे बड़े पुरस्कार दिए गए।
शॉर्ट फिल्म श्रेणी में मुकेश कुमार की फ़िल्म 'ब्रूनो' को द्वितीय और स्मिता भाटी की फ़िल्म 'विसलिंग मशीन' को तृतीय पुरस्कार दिया गया। इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए आनंद कुमार चौहान (वाशिंग मशीन), सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता राज अर्जुन (पीलीभीत) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अश्विनी कसर (पाउली) को दिया गया। वहीं, हरि प्रसाद की फ़िल्म 'अमेय', विकास गौतगुटिया की फ़िल्म 'अननॉन नंबर' और जगन्नाथ बिस्वास की फ़िल्म 'चुड़का मुर्मू' का विशेष उल्लेख किया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा फ़िल्म निर्देशक श्री आकाशादित्य लामा ने की और पुरस्कार सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री श्री एल. मुरुगन ने प्रदान किये।
डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म श्रेणी में मयंक सिंह की फ़िल्म 'नानाजी का गांव' को द्वितीय, सरमाया आर्ट फाउंडेशन की फ़िल्म 'थोलु बोमलत्ता' को तृतीय पुरस्कार दिया गया। जबकि तुषार अमरीष गोयल की फ़िल्म 'द पोस्टर', अक्षय गौरी की फ़िल्म 'साइंस थ्रू प्ले' और प्रज्ञा सिंह की फ़िल्म 'सेरेंगसिया 1837' का विशेष उल्लेख्य किया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा फ़िल्म निर्देशक श्री विवेक अग्निहोत्री ने की।
एनिमेशन श्रेणी में अशोक पटेल की फ़िल्म 'द लास्ट होप' को प्रथम, हरि प्रसाद की फ़िल्म 'पावर ऑफ चेंज' को द्वितीय और धीरेंद्र पखुरिया की फ़िल्म 'हग ऑफ लाइफ' को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा प्रख्यात रंगकर्मी श्री वामन केंद्रे ने की।
कैंपस नॉन प्रोफेशनल फ़िल्म श्रेणी में पार्थ बागुल की फ़िल्म 'मास्क' को प्रथम, सुशोभित मिश्रा की फ़िल्म 'आजादियां' को द्वितीय, नलिनी मेधी की फ़िल्म 'माते' को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। वहीं, इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए पार्थ बागुल (मास्क), सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता मंथन केनेकर (कपाट) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अवंतिका पांडेय (पनही) को दिया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा प्रख्यात अभिनेत्री सुश्री पल्लवी जोशी ने की।
कैंपस प्रोफेशनल फ़िल्म श्रेणी चंदन सिंह की फ़िल्म 'संसार' को प्रथम, अनुराज राजाध्यक्ष की फ़िल्म 'रोपत' को द्वितीय, मानव सिंह की फ़िल्म 'अंतिम बद्दुआ' को तृतीय पुरस्कार दिया गया। वहीं, इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन मानव सिंह (अंतिम बद्दुआ), सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता मुकेश मुसाफिर (छाया) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अनुराधा राजाध्यक्ष (रोपते) को दिया गया। पुरस्कारों की घोषणा प्रख्यात अभिनेता डॉ. गजेंद्र चौहान ने की।