दिग्विजय-नाथ की लड़ाई में उलझी कांग्रेस!

दिग्विजय-नाथ की लड़ाई में उलझी कांग्रेस!
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प्रदीप भटनागर

स्वदेश वेबडेस्क। गांव देहात में एक कहावत है ज्यौं-ज्यौं दवा की, मर्ज बढ़ता गया। यह कहावत इन दिनों मध्यप्रदेश कांग्रेस के हालातों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। कांग्रेस की गुटबाजी और आपसी कलह के कारण ही प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया है। आपसी खींचतान व गुटबाजी के कारण ही कांग्रेस को साा से बाहर होना पड़ा है। लेकिन फिर भी गुटबाजी खत्म नहीं हो रही हैं। प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी लंबे समय से चली आ रही हैं और कांग्रेस आलाकमान भी गुटबाजी को रोक नहीं पाया है।

प्रदेश में कभी अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, सुभाष यादव के गुट के साथ कमलनाथ व माधवराव सिंधिया की जोड़ी में गुटबाजी हुआ करती थी। अर्जुनसिंह का स्थान दिग्विजय सिंह ने लिया और उसके बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक अलग गुट हुआ करता था, लेकिन विधानसभा चुनावों में कमलनाथ को सीएम बनाने में दिग्विजय सिंह ने सहयोग दिया, तो कमलनाथ ने सिंधिया का साथ छोड़ दिया। लेकिन कमलनाथ सरकार के पतन की वजह बने दिग्विजय सिंह सरकार गिर जाने और सिंधिया के कांग्रेस को अलविदा कहते ही प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में दो ही धड़े रह गए हैं, एक कमलनाथ और दूसरा दिग्विजय सिंह और अब साा की लड़ाई में कमलनाथ औऱ दिग्विजय सिंह आमने-सामने आ गए हैं। इन दोनो गुटों के बीच आपसी खींचतान इस कदर बढ़ गई है कि इनकी लड़ाई अब सडक़ पर आ गई है।

गोविंद सिंह के नाम पर नाथ का ब्रेक !

वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष व राज्य की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के साथ-साथ राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। नेता प्रतिपक्ष के लिए दिग्विजय सिंह ने डॉ.गोविंद सिंह को आगे किया, तो एक बार कमलनाथ ने उनके नाम पर अपनी सहमति की मोहर भी लगा दी। बीती 25 अप्रैल को कमलनाथ ने डॉ.गोविंद सिंह को फोन कर भोपाल आने को कहा और बताया कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की औपचारिक घोषणा कर विधानसभा सचिवालय को विधिवत पत्र भेजना है। डॉ.गोविंद सिंह भी खुशी-खुशी राजधानी के लिए कूच कर गए। लेकिन यहां आने से पहले ही कमलनाथ की एक कूटरचित योजना ने डॉ.गोविंद सिंह के अरमानों पर पानी फेर दिया। कमलनाथ की यह कूटरचित योजना थी, डॉ.गोविंद सिंह के खास मित्र कांग्रेस विधायक केपी सिंह के जरिए डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के फैसले का विरोध कराना। इस विरोध के जरिए कमलनाथ ने एक तीर से दो निशाने किए, एक तो नेता प्रतिपक्ष के नाम का ऐलान जो 25 अप्रैल को किया जाना था, टाल दिया गया। दूसरा बिना कहे डॉ.गोविंद सिंह को यह संदेश दे दिया गया कि उनके नेता प्रतिपक्ष न बन पाने के लिए केवल और केवल दिग्विजय सिंह जि मेदार हैं। दिग्विजय नहीं चाहते, कि वह नेता प्रतिपक्ष बनें इसीलिए केपी सिंह के जरिए विरोध कराया गया। लेकिन राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस कार्यालय से जो खबरें निकलकर बाहर आ रही हैं। उन पर भरोसा करें, तो मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति के नाम पर सहमति बनाने के प्रयास चल रहे हैं यहां भी एक पेंच फंसा है। प्रजापति के नाम को लेकर दिग्विजय सिंह समर्थक विधायक सहमत नही हैं।

पचौरी की महत्वपूर्ण भूमिका

नेता प्रतिपक्ष का ऐलान 25 अप्रैल को नही हो सका इसकी मुखय वजह पूर्व केन्द्रीय में सुरेश पचौरी का बीटो लगाना रही। पचौरी ने ही डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के विधायक दल के फैसले का पत्र विधानसभा सचिवालय जाने की जानकारी मिलते ही कमलनाथ को डॉ.गोविंद सिंह का नाम भेजने पर अपनी आपत्ति जताते हुआ गुटीय समीकरण समझाया। जिसके बाद ही कमलनाथ ने अपने फैसले को बदल दिया।

अगला मुख्यमंत्री कौन शुरू हुआ घमासान?

उप चुनाव की तैयारियों के बीच कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर घमासान शुरु हो गया है। यही वजह है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाना चाहते हैं, जिससे विधायकों की संख्या अधिक होने के कारण विधायक दल की बैठक में खुद मुख्यमंत्री पद का दावेदार बना सकें और प्रदेश में साा पर कजा बना रहे। दिग्विजय सिंह अपने विरोधियों को आगे नहीं बढऩे देते हैं और अपनी राजनीतिक चालों से उनके पर कतरनें का प्रयास कर उनको कमजोर कर देते हैं। उपचुनाव में कांग्रेस की पराजय होती है, तो नैतिकता के आधार पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से इस्तीफे की मांग की जाएगी। इसके विपरीत अगर कांग्रेस जीत जाती है, तो विधायकों की सं या का गणित दिग्विजय सिंह के साथ होने के कारण उनकी पसंद के नेता को विधायक दल का नेता बनाने के लिए आगे कर दिया जायेगा।जबकि कमलनाथ और सुरेश पचौरी यही दांव अपने लिए खेल रहे हैं।

अगली पीढ़ी है इस तकरार का कारण !

कांग्रेस में सिंधिया के रहते कमलनाथ व दिग्विजय सिंह एक साथ दिख रहे थे। सिंधिया के रहते इनके बेटे प्रदेश में आगे नहीं बढ़ सकते थे। लेकिन अब सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया तो अब कांग्रेस में कमलनाथ व दिग्विजय सिंह ही बचे जो अपने बेटों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इन दोनों के बीच प्रतिस्पद्र्धा चल रही है। एक ओर दिग्गी अजय सिंह को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं और अजय सिंह के साथ में बेटे जयवर्धन सिंह के लिए प्रदेश कांग्रेस में वर्चस्व कायम करने के लिए तैयार है। वहीं कमलनाथ भी अपने बेटे व छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ को प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते हैं।

टिकट वितरण पर घमासान

प्रदेश में गुटबाजी व आपसी खींचतान का ही असर रहा कि पिछले दिनों प्रदेश के ग्यारह जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति दिल्ली से की गई, जबकि आमतौर पर यह जि मा प्रदेश कांग्रेस का रहता है। प्रदेश के कई बड़े चेहरे फिलहाल कमलनाथ के साथ हैं। जिनमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति, बाला बच्चन, सज्जन सिंह वर्मा, तरुण भनोत, सुखदेव पांसे जैसे नेता शामिल हैं। ये सभी कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी भी नाथ के साथ हैं। दूसरी ओर दिग्विजय सिंह के खेमे में डॉ. गोविंद सिंह, जयवर्धन सिंह, जीतू पटवारी, अजय सिंह, आरिफ अकील और केपी सिंह जैसे नेता हैं। उपचुनाव में प्रत्याशियों के चयन को लेकर गुटबाजी उभर कर सामने आ रही है। गुटबाजी के चलते जल्द ही प्रदेश में होने वाले उपचुनावों के लिए प्रत्याशियों के नाम भी तय नहीं हो पा रहे हैं। दोनों ही खेमे अपने-अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए एकदूसरे का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गए नेता चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी व प्रेमचंद गुड्डू की घरवापसी में भी अड़ंगेबाजी चल रही हैं। कमलनाथ खेमा चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को भिंड की मेहगांव सीट से उतारना चाहता है। लेकिन अजय सिंह सहित दिग्विजय खेमे के कई नेता उन्हें टिकट दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। राज्यसभा सीट को लेकर भी कमलनाथ व दिग्विजय सिंह आमने-सामने हो गए है।

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