खादी और गांधी पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो रहे हैं - रघु ठाकुर

खादी और गांधी पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो रहे हैं - रघु ठाकुर
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भोपाल/वेब डेस्क। खादी केवल वस्त्र नहीं बल्कि वह अनेक आयामों से जुड़ा हुआ है. जैसे जैसे समय गुजरता जा रहा है, वैसे वैसे खादी और गांधी अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं. यह बात रघु ठाकुर ने आज स्वराज भवन में शोध पत्रिका समागम द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही. उन्होंने कहा कि खादी की ताकत थी कि अंग्रेजों को नतमस्तक होना पड़ा. स्वाधीनता संग्राम में खादी की भूमिका विषय पर उनका कहना था कि खादी के उत्पादन एवं उपयोग को बढ़ावा देकर गांधीजी ने अंग्रेजों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया था. इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर ने कहा कि आज बाजार में उत्पाद बेचते समय इस बात पर जोर दिया जाता है कि यह घर का बना है. अर्थात मशीनों के उत्पाद से किनारा किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि खादी और गांधी सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे. इस अवसर पर इतिहास लेखक घनश्याम सक्सेना ने अपने पुराने दिनों का स्मरण किया कि कैसे उनका खादी और गांधी से परिचय हुआ. उन्होंने खादी के अर्थशास्त्र को समझाते हुए अनेक किताबों का उल्लेख भी किया. संगोष्ठी में 'समागम' का खादी पर एकाग्र अंक का लोकार्पण अतिथि वक्ताओं ने किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में स्वदेशी विचार, खादी संस्कार पर रोजगार निर्माण के संपादक पुष्पेन्द्रपाल सिंह ने कहा कि खादी का संबंध अर्थ, मानवता, पर्यावरण एवं आत्मनिर्भरता से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि विषमता के खिलाफ खादी एक सूत्र की तरह गांधी जी हमें दे गए हैं. इस अवसर प्रो. दिवाकर शुक्ला ने खादी के संदर्भ में अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि एक बार उन्हें गांधीजी पर निबंध लिखना था. इस बारे में अपने ताऊजी श्रीलाल शुक्ल से मदद चाही तो उन्होंने एक सवाल के साथ गांव वालों से चर्चा करने भेज दिया. इस बातचीत के निष्कर्ष से जो तैयार हुआ, वह स्वदेशी अवधारणा को पुष्ट करता है. कार्यक्रम का संचालन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर की मीडिया विभाग की प्रमुख डॉ. सोनाली नरगुंदे ने किया. आभार प्रदर्शन संपादक मनोज कुमार ने किया.

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