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"माय " की काट-"यादव चला मोहन के संग…..
भोपाल। लालू यादव और स्व.मुलायम सिंह के एक दौर में अपराजेय समझे जाने वाले "माय"समीकरण यानी मुस्लिम-यादव को अब नई राजनीतिक चुनौती मध्यप्रदेश से मिल रही है।यूपी और बिहार की इस जमीनी जातीय गोलबंदी को भाजपा ने मध्यप्रदेश से तगड़ी घेराबंदी करनी शुरू कर दी है ,माध्यम बने हैं मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव।गत रोज अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के नामांकन में मुख्य नेता के रूप में डॉ मोहन यादव का मौजूद रहना अपने आप में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है।तथ्य यह है कि डॉ मोहन यादव राष्ट्रीय फलक पर नए यादव नेता के रूप में भी स्थापित हो रहे हैं।इस साल जनवरी में वे बिहार की राजधानी पटना में आयोजित समारोह में गए थे उसके बाद लखनऊ में यादव महाकुंभ के दौरान भी डॉ मोहन यादव सर्वाधिक आकर्षण के केंद्र रहे।लखनऊ में तो बकायदा नारा लगा था "यादव चला मोहन के संग"।इस महाकुंभ में बड़ी भारी भीड़ उमड़ी थी।
बिहार औऱ यूपी का 16/8 गणित-
बिहार में 16 फीसदी यादव मतदाता हैं और यह आंकड़ा यूपी में 08 फीसदी है।एक दौर में बिहार का हर चौथा विधायक यादव जाति का था।2005 तक बिहार में लालू यादव का दबदबा जगजाहिर है लेकिन बाद में उनके माय समीकरण को भाजपा और नीतीश ने अन्य पिछड़ी जातियों के जरिये तोड़ दिया,इसके बाबजूद आज भी बिहार में यादव बड़ा चुनावी फैक्टर हैं।कमोबेश उप्र में 08 फीसदी यादव वोटरों के बाबजूद तीन बार मुलायम सिंह और एक बार अखिलेश सीएम बनने में कामयाब रहे हैं।इन दोनों राज्यों में चुनावी लिहाज से यादव लालू और मुलायम परिवार के साथ आज भी मजबूती से डटा हुआ।भाजपा ने पिछले साल शिवराजसिंह चौहान की जगह डॉ मोहन यादव को सीएम बनाकर असल में इसी वोटबैंक को इन परिवारों से मुक्त कराने की रणनीति को अंजाम दिया।
टारगेट पर हिट कर रहे हैं मोहन यादव-
मुख्यमंत्री यूपी के लगातार दौरों में एक ही बात कर रहे हैं कि भाजपा ने उन्हें सीएम बनाकर यादव समाज को सम्मानित किया।वे खुद ही सवाल उठा रहे है कि बताइये उन्हें भाजपा ने क्यों मुख्यमंत्री बनाया?क्या उनके पिता कोई मुख्यमंत्री थे?जबाब भी खुद देते हुए डॉ मोहन यादव बड़े यादव वर्ग को पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि खानदानी लोगों ने कभी परिवार के आगे समाज की परवाह नही की जबकि भाजपा ने एक गरीब के बेटे को सीएम बना दिया है।वह जोर देकर यह भी जताते हैं कि उज्जैन की जिस सीट से वह विधायक और मंत्री बने है वहा यादव समाज के 500 वोट भी नही है।असल में डॉ मोहन यादव दोनो राज्यों के यादवों को यही समझाने की कोशिशें कर रहे हैं कि किसी परिवार के पीछे बंधुआ बनकर राजनीतिक पहचान बनाने से कोई फायदा नही है।वे अखिलेश औऱ तेजस्वी को विरासत में मिली राजनीति पर भी सीधी चोट कर रहे हैं।मोहन यादव की इन बातों का असर यूपी में नजर भी आ रहा है।अमेठी में बड़ी संख्या में यादव उन्हें सुनने आये। 03 मार्च को लखनऊ में तो हजारों की भीड़ ने स्वप्रेरित होकर "यादव चला मोहन के संग"का नारा लगाया था।
आजमगढ़ में भी हुंकार
सीएम डॉ. मोहन यादव 13 फरवरी को आजमगढ़ क्लस्टर के अंर्तगत आने वाले 5 लोकसभा क्षेत्रों आजमगढ़-लालगंज-घोसी-बलिया और सलेमपुर लोकसभा क्षेत्रों के पार्टी पदाधिकारियों की बैठकों में शामिल हुए थे।डॉ. मोहन यादव अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ में जाकर भी हुंकार भर चुके हैं। जहां उनके स्वागत में बड़ी भीड़ उमड़ी थी। 24 अप्रेल को डॉ मोहन यादव मुलायम परिवार के गढ़ मैंनपुरी में भी भाजपा उम्मीदवार जयवीर सिंह का पर्चा दाखिल कराने गए थे।जाहिर है भाजपा सुनियोजित रणनीति के तहत यूपी और बिहार में यादव वोटरों को खानदानी चंगुल से निकालने के काम में जुट गई है ।इसके शुभंकर डॉ मोहन यादव साबित हो रहे हैं।
सर्वस्वीकार्यता और लोकप्रियता तेजी से बढ़ी
डॉ. मोहन यादव ने अपने बेहद कम समय में अपने कामकाज के माडल से पूरे देश और प्रदेश में एक नई पहचान बनाई है। समाज के ओबीसी तबके में उनकी सर्वस्वीकार्यता और लोकप्रियता हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी है। भाजपा उनकी इस लोकप्रियता को यूपी,बिहार में भुनाने की तैयारी में है, जहां यादव वोट निर्णायक है। इसके जरिए भाजपा सपा और कॉंग्रेस के जातीय जनगणना के दांव को भी चित करना चाहती है।