कंगाली में आटा गीला करने की जुगत में सरकार, खाली खजाने को 100 करोड़ की चोट

कंगाली में आटा गीला करने की जुगत में सरकार, खाली खजाने को 100 करोड़ की चोट
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भोपाल/ श्याम चोरसिया। मप्र सरकार आरसीआई और सिविल सर्विस कॉपरेशन के भावों में ख़रीब 06 सो रुपये क्विंटल का भारी अंतर रख खुदरा व्यापारियों की बजाय 03 बड़ी कम्पनियों को करीब 02 लाख टन गेंहू बेचने की जुगत में है। सरकार के बेतुके फ़ेसले के खिलाफ हाइकोर्ट में दायर जनहित याचिका ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए है।

बेतुके फैसले से सरकार को करीब 100 करोड़ की चोट लगने की आशंका जताई है। सरकार 03 बड़ी कम्पनियो को 1580 प्रति क्विंटल की दर से बेच गोदाम खाली करना चाहती है। जबकि प्रदेश के खुदरा व्यापारी नगद भुगतान करके उसी गेंहू को 1980 रुपये क्विंटल में गोदाम से उठाने के लिए तैयार है। मगर नौकरशाही की शर्तों,नियमो ने प्रदेश के खुदरा व्यापारियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया।

शर्त बनी अड़चन

मूल शर्त 10000 करोड़ के टर्न ओवर की रखी है। इस कठोर शर्त की पूर्ति प्रदेश का कोई भी खुदरा व्यापारी तो क्या बड़ा व्यापारी भी नही कर सकता। इन कठोर ओर बेतुकी शर्त पर आईटीसी, पारले एग्रो, अडानी विल्मार खरे उतरे। किसानों से 368 करोड़ में खरीदे 02 लाख टन गेंहू का सौदा 320 करोड़ में बेचने का किया है। इसमें 45 करोड़ की हिम्माली, वेयर हाउस का किराया, ढुलाई भाड़ा अलग है।

गोदाम खाली करना उद्देश्य -

वर्ष 2019-20 में प्रदेश ने 10 लाख टन की गेंहू खरीदी की थी। केंद्रीय पुल से 07 लाख टन केंद्र सरकार ने उठा लिया। बाकी बचा 03 करोड़ टन। 03 करोड़ टन में से 368 करोड़ का 02 लाख टन गेंहू सरकार भारी घाटा उठा कर बेचने पर क्यो उतारू है? इस बाबत खाद्य विभाग के प्रमुख सचिव नए गेंहू को रखने के लिए वेयर हाउस जल्दी से जल्दी खाली करने का तर्क दे रहे है। उनका मत है की पुराना गेंहू कब तक रखेंगे। गोदाम जल्दी खाली ये 03 बड़ी कम्पनियां ही कर सकती है? प्रदेश के खुदरा व्यापारी नही? इसके पूर्व खुदरा व्यापारियों ने हर समय सरकार का हर स्तर पर सहयोग किया है। बड़ी कम्पनियो के मुकाबले खुदरा व्यापारियों का तंत्र ज्यादा पुख्ता,मजबूत,सक्रिय है।

जनहित याचिका में उठे मुद्दे -

दायर जनहित याचिका में ये तमाम व्यवहारिक,आर्थिक, सरकारी भेदभाव,नीयत के मुद्दे उठाए है। जिसकी वजह से खरीदी अधर में झूल रही है।एक बड़ा सवाल। जब एफसीआई 2100 रुपये क्विंटन में गेहूं बेच रहा है तो मप्र का सिविल सर्विस कॉपरेशन भारी घाटा उठा कर 1580 रुपये प्रति क्विटल में क्यो बेचना चाहता है? कही साठगांठ तो नही है? यही गेंहू प्रदेश के खुदरा व्यापारी 1980रूपए प्रति क्विंटल में उठाने के लिए सहमत है। हर संकट काल मे खुदरा व्यापारी बड़ी कम्पनियो के मुकाबले हर अग्नि परीक्षा में खरे उतरे।

बारिश का शिकार -

सरकार ने 03 लाख टन में से 01 लाख टन कोरोना महामारी काल मे आर्थिक रूप से कमजोर,मजदूरों,किसानों को मुफ्त बांट दिया।2020-21 में हुई बम्पर खरीदी का गेंहू सुरक्षित भंडारण की अवस्था मे अनेक जिलों में खुले में पड़ा बारिश का शिकार हो रहा है। एक तरफ गेंहू भींग बर्बाद हो रहा है। दूसरी तरह अनेक निजी वेयर हाउस खाली पड़े है।

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