क्या चुनावी रण में अकेले पड़े "नाथ" ?
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कमलनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा है। "अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता"। सो कमोवेश यही स्थिति मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ है। पार्टी आलाकमान उन्हें "सुपरमैन" मानकर उम्मीदें पाले हुए है और कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रप कांग्रेस की लुटिया कैसे डूबे इस जुगत को भिड़ाने में लगे हुए हैं।
भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। अपने रणनीतिक कौशल से मध्यप्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कराने वाले मुख्यमंत्री कमलनाथ को लोकसभा चुनाव में कठिन अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना होगा। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदों पर खरा उतरने के के कारण कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें मध्यप्रदेश में लोकसभा के रण का रणनीतिकार बनाया है। मध्यप्रदेश की कमान संभालने के बाद से पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की दोहरी भूमिका निभा रहे कमलनाथ के लिए परिस्थितियां थोड़ी कठिन नजर आ रही हैं। जानकार मानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव में चार तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। बेटे नकुलनाथ को लोकसभा पहुंचाने के साथ ही उन्हें खुद भी विधानसभा में बतौर विधायक प्रवेश के लिए चुनावी जंग में उतरना है। इसके साथ-साथ विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस के वचन पत्र के वादे निभाने का कठिन लक्ष्य और पूरे प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी भी कमलनाथ के कंधों पर है। यही वजह है कि कमलनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा है। अगर लोकसभा चुनाव कमलनाथ के लिए अग्निपरीक्षा ही माना जा रहा है। वह इस अग्निपरीक्षा में कितना खरा उतर पाएंगे यह बात तो कांग्रेस उम्मीदवारों का सभी 29 सीटों पर ऐलान होने के बाद ही तय हो सकेगा। क्योंकि कांग्रेस इतिहास हमेशा दोहराती रही है।
खास बात यह है कि विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस की परिस्थितियां तेजी से बदली हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तरप्रदेश का प्रभारी बनाने के बाद प्रदेश में उनकी नामौजूदगी नाथ के लिए किसी चुनौती से कम नही है। नाथ के साथ-साथ कांग्रेस को उनकी कमी खलती दिख रही है। तो किसी अनिष्ट की आशंका उन्हें हमेशा सताती रहेगी। सिंधिया के अलावा नाथ को सहारा देने वाला कोई दूसरा ऐसा चेहरा फिलहाल कांग्रेस के पास नही है।ए जो जन को आकर्षित कर वोट में बदल सके।
इसके साथ ही दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे बड़े जैसे नेताओं से नाथ को खुदबखुद उम्मीदें नहीं हैं। ये नेता विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में अब तक सक्रिय नहीं दिखे हैं, जिससे कमलनाथ की चुनौतियां बढ़ गयी हैं, हालांकि कांग्रेस को भरोसा है कि अपने तीन महीने के कार्यकाल और वचन पत्र के वादों को पूरा करने का दावा करने वाले कमलनाथ इन सभी चुनौतियों पर खरा उतरेंगे, लेकिन गांव देहात में एक कहावत प्रचलित है "अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता"। सो कमोवेश यही स्थिति मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ है। पार्टी आलाकमान उन्हें "सुपरमैन" मानकर उम्मीदें पाले हुए है और कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रप कांग्रेस की लुटिया कैसे डूबे जिससे प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की बयार चले, इस जुगत को भिड़ाने में लगे हुए हैं।
वहीं कांग्रेस के वचन पत्र के वादे निभाने के मामले में मुख्यमंत्री कमलनाथ दावा कर चुके हैं कि सरकार के 76 दिनों के कार्यकाल में ही वे 13 बड़े वचन निभा चुके हैं। कर्ज माफी और पिछड़ा वर्ग आरक्षण जैसे बड़े वचनों को पूरा करने का दावा किया जा रहा है। उनका यह वादा कितना सार्थक रहा इसका जबाब तो वह किसान और युवा बेरोजगार ही भली-भांति दे सकते हैं। जिनकी इच्छापूर्ति का दावा मुख्यमंत्री कमलनाथ कर रहे हैं। यही वजह है कि कमलनाथ के बतौर मुख्यमंत्री किए गए कामों का लोकसभा चुनाव में एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कमलनाथ विधानसभा की तरह ही लोकसभा में अपना दम दिखा पाएंगे या कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रपों की रणनीति कारगर साबित होगी।