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राजगढ़ लोकसभा सीट दिग्गी के गढ़ को फिर से भेदने की तैयारी में भाजपा
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भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। प्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाली सीट माना जाता है। वर्तमान में यह लोकसभा सीट भाजपा के पास है। यहां से भाजपा के सांसद रोडमल नागर हैं। इस बार उनका क्षेत्र में विरोध है, लेकिन पार्टी उन्हें ही फिर से मैदान में उतार सकती है। इधर कांग्रेस दिग्गी के गढ़ राजगढ़ पर फिर से अपना कब्जा जमाने के इरादे से तैयारियों में जुटी है। हालांकि इस बार इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा खुद दिग्विजय सिंह ने जताई थी, लेकिन पार्टी उन्हें भोपाल से चुनाव लड़ा रही है। अब राजगढ़ सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों की ही नजर है।
राजगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ही अब तक जीत दर्ज करते रहे हैं। ज्यादातर यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार ही विजयी हुए हैं। दिग्विजय सिंह भी यहां से दो बार सांसद रहे हैं तो वहीं उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी यहां से सांसद रहे हैं। हालांकि दोनों को यहां से हार का सामना भी करना पड़ा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रोडमल नागर ने कांग्रेस प्रत्याशी नारायण सिंह अम्लाबे को 2 लाख 28 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। रोडमल नागर को कुल 5,96,727 मत मिले थे। यह कुल मतदाताओं का लगभग 59.65 प्रतिशत था। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी नारायण सिंह अम्लाबे को 3,67,990 मत प्राप्त हुए थे और यह कुल मतदाताओं का करीब 37 प्रतिशत था। इनके अलावा बसपा प्रत्याशी डॉ. शिवनारायण वर्मा को 13864, आम आदमी पार्टी के डॉ. प्रशांत त्रिपाठी को 8699, निर्दलीय प्रत्याशी रोडजी को 8818 और इमामुद्दीन खान निर्दलीय उम्मीदवार को 4334 वोट मिले थे। नोटा में भी करीब 10292 वोट पड़े थे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी नारायण सिंह अम्लाबे को जीत मिली थी। हालांकि उस समय उनके सामने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह मैदान में थे। उस समय नारायण सिंह अम्लाबे को 3,19,371 और लक्ष्मण सिंह को 2,94,983 मत प्राप्त हुए थे।
ये है सांसद का रिपोर्ट कार्ड
59 साल के रोडमल नागर 2014 में जीतकर पहली बार सांसद बने। संसद में उनकी उपस्थिति 95 प्रतिशत रही। इस दौरान उन्होंने 261 बहस में हिस्सा लिया। उन्होंने 463 सवाल भी किए और 1 प्राइवेट मेंबर बिल भी संसद में लेकर आए। उन्होंने आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, कच्चे तेल की कीमत जैसे अहम मुद्दों पर संसद में सवाल किया। रोडमल नागर को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपए आवंटित हुए थे, जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 25.35 करोड़ हो गई थी। इसमें से उन्होंने 22.50 यानी मूल आवंटित राशि का 90.02 प्रतिशत खर्च किया। उनका करीब 2.84 करोड़ रुपए का फंड बिना खर्च किए रह गया।
सामाजिक समीकरण
राजगढ़ जिले को प्रदेश के पिछड़े जिलों में शामिल किया जाता है। हालांकि अब जिले को इस श्रेणी से निकालने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। यहां पर नेवज नदी बहती है, जिसे शास्त्रों में 'निर्विन्ध्या' कहा गया है। राजगढ़ जिले में स्थित नरसिंहगढ़ के किले को कश्मीर-ए-मालवा कहा जाता है। ये मध्यप्रदेश का सर्वाधिक रेगिस्तान वाला जिला है। यह मालवा पठार के उत्तरी छोर पर पार्वती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। 2011 की जनगणना के मुताबिक राजगढ़ में 24,89,435 जनसंख्या है। यहां की 81.39 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण इलाके में रहती है और 18.61 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। इस क्षेत्र में गुर्जर, यादव और महाजन मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। ये चुनाव में किसी भी उम्मीदवार की जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। राजगढ़ में 18.68 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग हैं और 5.84 अनुसूचित जनजाति के हैं। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में इस सीट पर 15,78,748 मतदाता थे। इनमें से 7,51747 महिला मतदाता और 8,27,001 पुरुष मतदाता थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 57.75 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार यहां पर कुल मतदाता 16,81,353 है। इनमें से पुरुष मतदाता 8,74,258, महिला मतदाता 807064 और तृतीय लिंग 31 मतदाता हैं।
राजनीतिक समीकरण
साल 1962 में यहां पर हुए पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार भानुप्रकाश सिंह को जीत मिली। उन्होंने कांग्रेस के लीलाधर जोशी को हराया था। कांग्रेस को इस सीट पर पहली बार जीत 1984 में मिली, जब दिग्विजय सिंह ने बीजेपी के जमनालाल को मात दी थी। हालांकि इसका अगला चुनाव दिग्विजय सिंह हार गए थे। बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल ने कांग्रेस के इस दिग्गज नेता को हरा दिया था। इसके बाद 1991 में दिग्विजय सिंह ने इस हार का बदला लिया और प्यालेलाल को हरा दिया। दिग्विजय के मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद यह सीट खाली हो गई और 1994 में यहां पर उपचुनाव हुआ। कांग्रेस की ओर से दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह मैदान में उतरे और बीजेपी के दत्ताराय रॉव को मात दी। 1994 में जीत हासिल करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भी जीत हासिल की। 2004 के चुनाव में सिंह को जीत तो मिली थी, लेकिन उन्होंने इस बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इसके अगले चुनाव में भी वह बीजेपी के टिकट पर लड़े और इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के नारायण सिंह ने उन्हें मात दी। इस सीट पर कांग्रेस को 6 बार जीत मिली है और बीजेपी को 3 बार, ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। ये चाचौड़ा, ब्यावरा, सारंगपुर, राघोगढ़, राजगढ़, सुसनेर, नरसिंहगढ़ और खिलचीपुर है। इन 8 सीटों में से 5 पर कांग्रेस और 2 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि 1 सीट पर निर्दलीय विधायक है।